मुजफ्फरपुर शेल्टर होम केस: आज फिर टला फैसला, साकेत कोर्ट 14 जनवरी को सुनाएगा निर्णय
By स्वाति सिंह | Published: December 12, 2019 12:59 PM2019-12-12T12:59:17+5:302019-12-12T12:59:17+5:30
एक गैर सरकारी संगठन द्वारा संचालित इस बालिका गृह में कई लड़कियों से कथित तौर पर बलात्कार और यौन उत्पीड़न किया गया था। यह मामला टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) की एक रिपोर्ट के बाद प्रकाश में आया था। यह रिपोर्ट 26 मई 2018 को बिहार सरकार को सौंपी गई थी जिसमें बालिका गृह की लड़कियों से कथित यौन उत्पीड़न का जिक्र किया गया था।
बिहार में मुजफ्फरपुर के बालिका गृह कई लड़कियों का कथित यौन उत्पीड़न किये जाने के मामले में आज फिर फैसला टल गया। साकेत कोर्ट के एडिशनल जज सौरभ कुलश्रेष्ठ के छुट्टी पर होने के चलते आज भी फैसला नहीं सुनाया जा सका। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक इस मामले पर 14 जनवरी को फैसला सुनाया जाएगा।
बिहार में मुजफ्फरपुर के इस बालिका गृह को बिहार पीपुल्स पार्टी (बीपीपी) का पूर्व विधायक ब्रजेश ठाकुर संचालित करता था। मामले में सीबीआई के वकील और 11 आरोपियों की अंतिम दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने 30 सितंबर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। बिहार की पूर्व समाज कल्याण मंत्री एवं जदयू की तत्कालीन नेता मंजू वर्मा को भी इस मामले को लेकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था।
दरअसल, मामले के मुख्य आरोपी ठाकुर के तार उनके पति से जुड़े थे। वर्मा को आठ अगस्त 2018 को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। सीबीआई ने विशेष अदालत से कहा कि मामले में सभी 21 आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं।
मामले के आरोपियों ने दावा किया था कि सीबीआई ने मामले में निष्पक्ष जांच नहीं की। यह मामला यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज है और इसके तहत अधिकतम सजा के रूप में उम्र कैद हो सकती है। बलात्कार एवं शारीरिक नुकसान पहुंचाने वाले यौन उत्पीड़न की आपराधिक साजिश रचने के तहत भी मामले दर्ज किये गये हैं।
Muzaffarpur shelters home case: The pronouncement of judgement is now to be passed on 14th January, 2020.
— ANI (@ANI) December 12, 2019
Earlier, it was scheduled to be passed today but due to the unavailability of the concerned judge, it has been deferred. #Bihar
अतिरिक्त सत्र न्यायधीश सौरभ कुलश्रेष्ठ ने बंद कमरे में चली सुनवाई के दौरान मामले में हुई जिरह संपन्न की, जो इस साल 25 फरवरी को शुरू हुई थी। उच्चतम न्यायालय के निर्देशों पर यह मामला मुजफ्फरपुर की एक स्थानीय अदालत से दिल्ली में साकेत जिला अदालत परिसर स्थित एक पॉक्सो अदालत को हस्तांतरित किया गया था।
सुनवाई के दौरान सीबीआई के वकील ने अदालत से कहा कि नाबालिग लड़कियों के बयानों के मुताबिक सभी आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं और उन्हें दोषी ठहराया जाना चाहिए। वहीं, अधिवक्ता प्रमोद कुमार दूबे ने मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर की ओर से पेश होते हुए अदालत से कहा कि सभी मामले अस्पष्ट प्रकृति के हैं और सीबीआई ने निष्पक्ष जांच भी नहीं की।
दूसरे आरोपी के वकील ज्ञानेंद्र मिश्रा ने अदालत से कहा कि सीबीआई ने त्रुटिपूर्ण और एकतरफा जांच की। मुजफ्फरपुर बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष दिलीप कुमार वर्मा और इसके सदस्य विकास कुमार की ओर से पेश होते हुए मिश्रा ने कहा कि यह एक ऐसा मामला है जिसमें कोई साक्ष्य नहीं है और पीड़िता के बयान किसी भी आरोपी के खिलाफ आरोपों की पुष्टि नहीं करते।
अदालत ने मामले में 21 लोगों के खिलाफ विभिन्न आरोप तय किये थे। मामले में मुख्य आरोपी ठाकुर पर पॉक्सो कानून की धाराओं के तहत आरोप लगाया गया था। आरोपियों में उसके बालिका गृह के कर्मचारी और बिहार समाज कल्याण विभाग के अधिकारी शामिल हैं।
गौरतलब है कि एक गैर सरकारी संगठन द्वारा संचालित इस बालिका गृह में कई लड़कियों से कथित तौर पर बलात्कार और यौन उत्पीड़न किया गया था। यह मामला टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) की एक रिपोर्ट के बाद प्रकाश में आया था। यह रिपोर्ट 26 मई 2018 को बिहार सरकार को सौंपी गई थी जिसमें बालिका गृह की लड़कियों से कथित यौन उत्पीड़न का जिक्र किया गया था। पिछले साल 29 मई को राज्य सरकार ने लड़कियों को वहां से अन्य आश्रय गृहों में भेज दिया। 31 मई 2018 को मामले के 11 आरोपियों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।