अयोध्या: मुस्लिम पक्षकारों ने भगवान राम के ‘जन्मस्थल’ को पक्ष बनाये जाने का किया विरोध
By भाषा | Published: September 17, 2019 05:04 AM2019-09-17T05:04:24+5:302019-09-17T05:04:24+5:30
राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले में प्रतिदिन हो रही सुनवाई के 24वें दिन शीर्ष अदालत ने ‘‘भौतिक’’ संपत्ति को भी पक्षकार बनाये जाने संबंधी धवन की दलील का संज्ञान लिया।
उच्चतम न्यायालय में मुस्लिम पक्षकारों ने भगवान राम की ‘जन्मभूमि’ को एक पक्ष बनाये जाने के निर्णय का सोमवार को विरोध किया और साथ ही आरोप लगाया कि ऐसा केवल यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया गया है कि कोई अन्य व्यक्ति विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि पर दावा नहीं कर सके।
इससे पहले ‘राम लला विराजमान’ के वकील ने दावा किया था कि भगवान राम का जन्म स्थान भी एक देवता है और मुसलमान 2.77 एकड़ की विवादित भूमि पर दावा नहीं कर सकते हैं क्योंकि संपत्ति का किसी भी तरह विभाजन देवता को ‘खंड़ित’’ करने के समान होगा।
सुन्नी वक्फ बोर्ड और मूल वादी एम सिद्दिक समेत अन्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ को बताया कि जन्मस्थान एक न्यायिक इकाई नहीं हो सकता है और इसके अलावा, यह 1989 में एक पार्टी बना दिया गया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई कानून इस पर लागू न हो और अन्य दावेदारों को दावा करने से रोका जा सके।
इस मामले की सुनवाई करने वाली पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर शामिल हैं। उन्होंने पीठ को बताया, ‘‘यदि यह केवल मूर्ति होती, तो इस मामले को बहुत आसानी से हल किया जा सकता था। लेकिन, अगर यह जन्मभूमि है, तो इसका मतलब है कि सभी हाथ इस अदालत सहित उस जगह से दूर होने चाहिए। कोई कानूनी उपाय नहीं हो सकता है।’’
राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले में प्रतिदिन हो रही सुनवाई के 24वें दिन शीर्ष अदालत ने ‘‘भौतिक’’ संपत्ति को भी पक्षकार बनाये जाने संबंधी धवन की दलील का संज्ञान लिया। मुस्लिम पक्षकारों के वकील ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि सोशल मीडिया पर एक व्यक्ति लिख रहा है कि उसने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को 117 पत्र लिखे हैं, जिसमें राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर सुनवाई के लिए शीर्ष अदालत के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया गया है।
विवाद की सुनवाई के 24वें दिन प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ जैसे ही बैठी तो वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का पत्रकार होने का दावा करने वाला एक व्यक्ति फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया साइट पर लिख रहा है कि उसने सीजेआई को 117 पत्र लिखे हैं कि यह अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। पीठ ने कहा कि रजिस्ट्री द्वारा ऐसे किसी भी तरह के पत्र से अवगत नहीं कराया गया है।