कश्मीर: मुस्लिमों ने किया कश्मीरी पंडित का अंतिम संस्कार, नम आंखों से दी विदाई

By सुरेश एस डुग्गर | Published: May 9, 2021 04:01 PM2021-05-09T16:01:57+5:302021-05-09T16:02:58+5:30

दक्षिण कश्मीर में स्थानीय मुस्लिमों ने एक कश्मीरी पंडित के निधन पर न सिर्फ उसकी अर्थी को कंधा दिया बल्कि उसकी अंत्येष्टि का भी प्रबंध किया। दिवंगत के परिजन जम्मू में रहते हैं जबकि वह पुलवामा स्थित अपने पुश्तैनी गांव में ही रह रहा था।

Muslim neighbours help perform last rites of 70-year-old Hindu man in Kashmir village | कश्मीर: मुस्लिमों ने किया कश्मीरी पंडित का अंतिम संस्कार, नम आंखों से दी विदाई

(फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)

Highlights 70 साल के चमन लाल पुलवामा के ताहाब गांव में रहते थे।शनिवार को उनका निधन हो गया।

चाहे पिछले 33 सालों से पाक समर्थक आतंकियों ने लाख कोशिशें की हों पर कश्मीर में आज भी कश्मीरियत जिन्दा है। कश्मीरियत के मायने होते हैं आपसी सौहार्द और भाई चारा जिसमें धर्म नहीं होता और धर्म की चर्चा नहीं होती। ऐसी ही मिसाल एक बार फिर कश्मीर के उस इलाके से देखने को मिली है जहां सिर्फ बारूद की गंध ही फिजां में महका करती है।

पुलवामा जिला सिर्फ आतंकियों के हमलों, बम विस्फोटों, हत्याओं, केसर क्यारियों में केसर की खुशबू की जगह बारूद की गंध के लिए हीं नहीं जाना जाएगा बल्कि कश्मीरियत की उस मिसाल के लिए भी पहचान बना चुका है जिसे नेस्तनाबूद करने की साजिशें अभी भी रची जा रही हैं। मुस्लिमों द्वारा कश्मीरी पंडित का अंतिम संस्कार करना, उसके अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियों तथा अन्य सामग्रियों का इंतजाम कोरोना काल में करना वाकई कश्मीरियत को सलाम ठोंकने जैसा है।

पुलवामा जिले के टहाब में 70 वर्षीय चमन लाल की शुक्रवार की देर शाम गए मृत्यु हो गई थी। दूरसंचार विभाग से सेवानिवृत्त चमन लाल और उसके भाई ने 1990 में जब कश्मीर से कश्मीरी पंडितों ने आतंकियों के फरमान पर कश्मीर से पलायन किया था तो अपने पुश्तैनी घर को न छोड़ने का फैसला किया था। चमन लाल और उसका भाई अपने पुश्तैनी मकान में अपने बचपन के मुस्लिम दोस्तों और पड़ोसियों के साथ ही रहे। चमन लाल का परिवार बाद में जम्मू चला गया,लेकिन उसने अपना गांव नहीं छोड़ा। उसकी बेटी और बेटा दोनों ही जम्मू में रहते हैं।

साल भर पहले 23 मई को भी पुलवामा जिले के बुचू त्राल गांव के निवासी कश्मीरी पंडित जागर नाथ बट का उनके पैतृक गांव में निधन हो गया था। उनकी मृत्यु की खबर मिलते ही, लोग घर पहुंचे। मुस्लिम युवाओं ने मृतक के दाह संस्कार में इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी और अन्य महत्वपूर्ण सामान की व्यवस्था की थी। वैसे चमन लाल और जागर नाथ ऐसे अकेले कश्मीरी पंडित नहीं थे।  

कश्मीर के रहने वाले जिनके अंतिम संस्कार को उनके मुस्लिम पड़ौसियों ने अंजाम दिया हो बल्कि कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद से ही बचे खुचे कश्मीरी पंडितों के लिए आज भी उनके कश्मीरी मुस्लिम पड़ौसी उनके काम आते हैं, चाहे खुशी का मौका हो या फिर गम की रात। दरअसल इन कश्मीरी पंडितों ने तमाम बाधाओं और कोशिशों के बावजूद अपनी माटी का त्याग नहीं किया था।

Web Title: Muslim neighbours help perform last rites of 70-year-old Hindu man in Kashmir village

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