मध्य प्रदेश चुनावः बड़े दलों के लिए बागी बन रहे हैं मुसीबत, मान-मनोव्वल के बाद भी खतरा बरकरार

By शिवअनुराग पटैरया | Published: November 16, 2018 05:01 AM2018-11-16T05:01:55+5:302018-11-16T05:01:55+5:30

दोनों ही दल नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख गुजर जाने के बाद भी बागियों के मनाने की उम्मीद के साथ अब भी प्रयास कर रहे हैं.

MP Elections: Rebel leader is big concern for BJP and Congress | मध्य प्रदेश चुनावः बड़े दलों के लिए बागी बन रहे हैं मुसीबत, मान-मनोव्वल के बाद भी खतरा बरकरार

मध्य प्रदेश चुनावः बड़े दलों के लिए बागी बन रहे हैं मुसीबत, मान-मनोव्वल के बाद भी खतरा बरकरार

भोपाल, 15 नवंबरः मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन जारी करने की आखिरी तारीख गुजरने के साथ ही मैदान और मोर्चे स्पष्ट हो गए हैं. राज्य के दोनों बड़े दलों भाजपा और कांग्रेस के लिए बागी बड़ी मुसीबत बने हुए हैं. दोनों ही दलों के नेतृत्व ने तमाम बागियों को बैठा तो दिया पर वे क्या जिनके पक्ष में बैठे हैं. उनके लिए काम करेंगे कहा नहीं जा सकता है. वैसे माना जा रहा है कि घर बैठ गए बागी अपनी फितरत से बाज नहीं आएंगे.

मध्यप्रदेश के चुनावी मैदान पर ज्यादातर सीटों पर आमने-सामने का मुकाबला है. चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड की सीमांत सीटों पर जरूर सपा और बसपा के प्रत्याशियों की मौजूदगी चुनाव को दिलचस्प बना रही है. मालवा के जनजातीय क्षेत्रों में जयस के एक धड़े ने भी कुछ प्रत्याशी खड़े किए हैं. सपाक्स के उम्मीदवार भी राज्य के तमाम विधानसभा क्षेत्रों में मोर्चा खोले हुए हैं लेकिन दोनों ही बड़े दलों के लिए तीसरे दलों की तुलना में बागी बड़ी मुसीबत हैं. जो घर बैठ गए हैं उनके बारे में भी पार्टियां और प्रत्याशी अस्वस्थ नहीं हैं कि वे उनके पक्ष में काम करेंगे.

कांग्रेस की तुलना में भाजपा को बगावत और विद्रोहियों का ज्यादा सामना करना पड़ रहा है. भाजपा ने नामांकन की तारीख गुजर जाने के बाद कल 50 से अधिक बागियों को पार्टी से निष्कासित कर दिया. इसके अलावा लगभग इतने ही और बागी हैं जिन पर कार्रवाई होना शेष है या भाजपा का नेतृत्व कोई रणनीतिक फैसला लेकर उन पर कार्रवाई करेगा या उन्हें बैठाएगा. भाजपा से बगावत कर सपाक्स पार्टी के प्रत्याशी हो गए राघवजी भाई ने विदिशा जिले के शमशाबाद क्षेत्र से नामांकन दाखिल किया था. 

कल भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री रामलाल ने उन्हें समझाया तो उन्होंने अपना नामांकन तो वापस ले लिया लेकिन आज कहा कि वे भाजपा के लिए काम नहीं करेंगे. उन्होंने कहा कि शमशाबाद से भाजपा ने जिसे प्रत्याशी बनाया है उस परिवार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी पर पत्थर फेंके थे और पांच बार हमारे खिलाफ चुनाव लड़ चुका था. इसीलिए 8 नवंबर को भाजपा के जिले के 1 हजार से ज्यादा कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने उसे हराने के लिए मुझे खड़ा किया था. वह प्रत्याशी ऐसा नहीं है जिसे जिताया जाए. 

राघव जी भाई ने लोकमत समाचार से बातचीत करते हुए कहा कि वे भाजपा के सदस्य नहीं हैं इसलिए उसके प्रत्याशियों के लिए प्रचार नहीं करेंगे. वैसे माना यह जा रहा है कि राघव जी भाई ने भले ही नामांकन वापस ले लिया हो लेकिन वे शमशाबाद में प्रत्याशी को हराने के लिए पूरा जोर लगाएंगे. कुछ इसी तरह राजधानी के हुजूर विधानसभा क्षेत्र से बागी हो गए पूर्व विधायक जितेंद्र डागा मुख्यमंत्री की समझाइश पर मान तो गए पर वे भाजपा प्रत्याशी रामेश्वर शर्मा के लिए काम करेंगे, यह नहीं माना जा रहा है. क्योंकि वे दोनों ही परस्पर प्रतिद्वंद्वी हैं. 

पिछले दिनों डागा ने शिकायत की थी कि रामेश्वर शर्मा उनके कमर्शियल काम्पलेक्स में बाधा खड़ी कर रहे हैं. जबलपुर उत्तर मध्य से बागी प्रत्याशी के तौर पर खड़े धीरज पटेरिया, दमोह जिले की दमोह और पथरिया विधानसभा क्षेत्र से राज्य के पूर्व मंत्री डा. रामकृष्ण कुसमरिया, ग्वालियर दक्षिण से खड़ी हुई पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता, भिण्ड से सपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे पूर्व विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाहा, बैरसिया से बागी विधायक ब्रह्मानंद रत्नाकर, चंबल क्षेत्र के बम्होरी से बागी पूर्व मंत्री केएल अग्रवाल प्रमुख तौर पर चुनौती देते नजर आ रहे हैं. 

भाजपा ने प्रत्याशियों को मनाने के लिए पदों को देने का भी खूब प्रयोग किया. छतरपुर जिले के राजनगर से बागी हो गए पूर्व सांसद जितेंद्र सिंह बुंदेला को भाजपा ने छतरपुर जिले का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया तब वे मैदान से हटने के लिए तैयार हुए. कुछ इसी तरह की नियुक्तियां भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही की हैं. कांग्रेस में तो इतनी नियुक्तियां हुई कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के लैटरपैड तक कम पड़ गए.

कांग्रेस का भी संकट चुनावी मैदान में कम नहीं है. भाजपा की तुलना में उनके बागी भी कम थे और जो खड़े थे उनमें से ज्यादातर मान भी गए, पर कुछ प्रभावशाली बागी अभी भी मैदान में हैं. इनमें झाबुआ से पूर्व विधायक जेवियर मेड़ा, छतरपुर जिले के राजनगर से सपा प्रत्याशी के तौर पर उतरे पूर्व सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी के बेटे नितिन चतुर्वेदी, छतरपुर जिले के बिजावर से बागी होकर सपा प्रत्याशी के तौर पर उतरे राजेश शुक्ल बबलू, उज्जैन उत्तर से बागी हो गर्इं माया त्रिवेदी, उज्जैन जिले के महिदपुर से महेंद्र जैन, बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी से बागी होकर सपा प्रत्याशी के तौर पर प्रतापसिंह उईके प्रमुख हैं. 

दोनों ही दल नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख गुजर जाने के बाद भी बागियों के मनाने की उम्मीद के साथ अब भी प्रयास कर रहे हैं. मप्र भाजपा के प्रदेश प्रभारी और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे ने कल संवाददाताओं से कहा कि हम अंतिम क्षणों तक बागियों को मनाने के लिए काम करते रहेंगे. वैसे भाजपा के संविधान में बागियों से निपटने के लिए तमाम प्रावधान तो हैं ही.

भाजपा के बागी

- डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया    दमोह एवं पथरिया
- धीरज पटैरिया    जबलपुर उत्तर मध्य
- समीक्षा गुप्ता    ग्वालियर दक्षिण
- नरेंद्र सिंह कुशवाहा    भिण्ड
- ब्रह्मानंद रत्नाकर    बैरसिया
- केएल अग्रवाल    ब्रम्होरी
- राजकुमार गेव    महेश्वर
- जेपी मंडलोई शाजापुर
- मनोज डहेरिया    आमला बैतूल

कांग्रेस के बागी

- नितिन चतुर्वेदी    राजनगर
- राजेश शुक्ल बबलू    विजावर
- दिनेश जैन    महिदपुर
- जेवियर मेड़ा    झाबुआ
- माया त्रिवेदी    उज्जैन उत्तर
- प्रताप सिंह उईके    घोड़ाडोंगरी बैतूल

Web Title: MP Elections: Rebel leader is big concern for BJP and Congress

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