मध्यप्रदेश चुनावः भाजपा का इस तरह गिर रहा है ग्राफ, RSS ने अपने हाथों में ली कमान
By राजेंद्र पाराशर | Published: November 21, 2018 07:13 AM2018-11-21T07:13:55+5:302018-11-21T07:16:54+5:30
मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल अंचल की ऐसी 34 विधानसभा सीटें हैं जिसे लेकर संघ की चिंता बढ़ गई है। वर्तमान में भाजपा के कब्जे में इस अंचल की 22 सीटें हैं, जबकि कांग्रेस का 10 और बसपा का 2 सीटों पर कब्जा है।
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल अंचल की विधानसभा सीटों को लेकर भाजपा और संघ चिंतित हैं। संघ ने यहां पर भाजपा के गिरते ग्राफ पर चिंता जताई। संघ की चिंता के बाद राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल, मध्य प्रदेश के चुनाव प्रभारी एवं केंद्रीय मंत्री धर्मेद्र प्रधान और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इस अंचल में सक्रिय हुए और रूठों को मनाने की कवायद भी तेज कर दी है। संघ की चिंता यहां पर नोटा को लेकर सवर्ण वर्ग के चलाए गए अभियान को लेकर ज्यादा है।
मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल अंचल की ऐसी 34 विधानसभा सीटें हैं जिसे लेकर संघ की चिंता बढ़ गई है। वर्तमान में भाजपा के कब्जे में इस अंचल की 22 सीटें हैं, जबकि कांग्रेस का 10 और बसपा का 2 सीटों पर कब्जा है। चुनाव प्रचार अभियान के तेज होते ही अधिकांश सीटों पर एक बार फिर भाजपा के खिलाफ सवर्ण वर्ग के मतदाता का विरोध देखा गया साथ ही भाजपा के अपने नाराज नेताओं के घर बैठने की बातें भी सामने आईं।
वहीं, संघ ने इस अंचल को लेकर संगठन को इस आशय का फीडबैक दिया कि अंचल में भाजपा का ग्राफ लगातार गिर रहा है। संघ द्वारा संगठन को दी जानकारी के मुताबिक भाजपा को यहां पर करारा झटका लग सकता है। भाजपा के कब्जे वाली 22 सीटों में से 10 से 12 सीटें ऐसी हैं, जहां भाजपा प्रत्याशी के विपक्ष में माहौल बनता जा रहा है।
संघ के इस फीडबैक के बाद संगठन यहां सक्रिय हुआ और आनन-फानन में राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल, भाजपा के मध्य प्रदेश चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेद्र प्रधान और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पहुंचे। तीनों के साथ प्रदेश संगठन मंत्री सुहास भगत और अंचल के नेताओं की बैठक में अंचल की सभी 34 विधानसभा सीटों पर मंथन किया और कमियों को जाना। सूत्रों की मानें तो नेताओं ने सारी रात चर्चा कर अंचल में भाजपा के गिरते ग्राफ को रोकने पर मंथन किया।
राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल भी सक्रिय
राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल ने अंचल के नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए स्थानीय नेताओं को सक्रिय किया। इसके साथ ही वे खुद भी इस काम में जुटे। उन्होंने अटेर विधानसभा से टिकट के दावेदार मुन्नासिंह भदोरिया और सेवढ़ा के प्रदीप अग्रवाल से मुलाकात कर उन्हें मनाया और उनकी नाराजगी को दूर कर फिर से प्रत्याशी के पक्ष में जुटने को कहा। दोनों नेताओं ने संगठन मंत्री को आश्वस्त किया है कि वे पार्टी के पक्ष में काम करेंगे।
इसके अलावा डबरा से टिकट न मिलने को लेकर नाराज चल रहे हरीश और विवेक तोमर की नाराजगी को भी रामलाल ने दूर किया। इन नेताओं के अलावा रामलाल ने करीब आधा दर्जन उन नेताओं की वापसी कराई जिन्हें संगठन ने निष्कासित किया था। साथ ही हर विधानसभा क्षेत्र की सूची तैयार कर स्थानीय नेताओं से कहा गया है कि निष्कासितों की वापसी कराई जाए। साथ ही रूठे लोगों पर नाराज होने के बजाय उन्हें मनाया जाए।
नोटा का प्रचार बना मुसीबत
ग्वालियर-चंबल अंचल में एट्रॉसिटी एक्ट का इस अंचल में खासा प्रभाव देखा गया था। इसके अलावा दलित आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा का भी असर अंचल में दिखाई देने लगा है, जिसने संघ और संगठन की चिंता को बढ़ा दिया है। संघ को सवर्ण समाज द्वारा सोशल मीडिया पर चलाए गए नोटा बटन दबाने के अभियान की जानकारी ने चिंतित किया है तो दलित आंदोलन की चपेट में आए लोगों की नाराजगी का भी पता चला है। इन दोनों घटनाओं के चलते इस अंचल में भाजपा का खासा ग्राफ गिरने की बात संघ के सामने आई। इसके बाद संघ ने कवायद शुरू की है।
संघ करेगा समीक्षा, देगा फीडबैक
संघ ने चुनाव को लेकर अब प्रदेश में भाजपा के लिए कमान अपने हाथ में संभाल ली है। संघ के विस्तारक मैदान में उतरे हैं। वे बूथ मैनेजमेंट से लेकर मैदानी तैयारी में जुटकर भाजपा का सहयोग कर रहे हैं। संघ अब लगातार समीक्षा करेगा और निरंतर भाजपा संगठन को अपना फीडबैक देगा। इस फीडबैक के आधार पर भाजपा संगठन मैदान में जुटेगा। ग्वालियर-चंबल अंचल के नेताओं को राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल ने निर्देशित भी किया है कि वे लगातार संघ से फीडबैक लेते रहें और संघ के बताए अनुसार अपनी गतिविधियों को अंजाम दें।
राजस्थान में अब चलेगा बागी उम्मीदवारों को मनाने का दौर
राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा, दोनों प्रमुख दलों के उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र पेश कर दिए है और अब नामांकन वापस लेने की तारीख तक बागी उम्मीदवारों को मनाने का दौर चलेगा, जिसके बाद सभी उम्मीदवार जोरशोर से चुनाव प्रचार में लग जाएंगे।
इस बार किस्मत से कांग्रेस उम्मीदवारों के नाम घोषित होने में इतनी देर हुई कि टिकट से वंचित नाराज उम्मीदवारों के लिए भाजपा के रास्ते तो बंद हो ही गए थे, शेष दलों में जाने का भी कोई बड़ा फायदा नहीं था, लिहाजा कांग्रेस में बहुत बड़ी बगावत नहीं हुई।
जिन्हें टिकट के अभाव में भाजपा छोड़नी पडी, उन्होंने भाजपा छोड़ दी तो जिन्हें कांग्रेस ने नाराज किया वे कांग्रेस छोड़ कर चले गए। अब जो चुनावी तस्वीर उभरी है, उस पर नजर डालें तो राजस्थान में कई कारणों से कांग्रेस बेहतर स्थिति में नजर आ रही है।