मेडिकल शाधार्थियों को केंद्र के नोरी प्रमाण पत्र की नीति से बाहर नहीं रखा जाना चाहिए : बंबई उच्च न्यायालय
By भाषा | Published: September 15, 2021 08:07 PM2021-09-15T20:07:56+5:302021-09-15T20:07:56+5:30
मुंबई, 15 सितंबर बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि केंद्र सरकार द्वारा ‘भारत नहीं लौटने का इकरारनामा’ (नोरी) प्रमाण पत्र नहीं देने की नीति को मेडिकल के उन शोधार्थियों पर लागू नहीं किया जाना चाहिए जो मेडिसिन की प्रैक्टिस नहीं करना चाहते हैं। यह प्रमाण पत्र मेडिकल के उन डिग्रीधारकों को जारी नहीं किया जाता है जो अमेरिका में ग्रीन कार्ड हासिल करना चाहते हैं।
न्यायमूर्ति आर. डी. धानुका और न्यायमूर्ति आर. आई. चागला की खंडपीठ ने केंद्र को निर्देश दिया है कि 27 वर्षीय अवनी वैष्णव को पांच हफ्ते के अंदर नोरी प्रमाण पत्र जारी किया जाए।
अदालत ने वर्तमान में न्यूयॉर्क में रह रही वैष्णव की तरफ से दायर याचिका पर आदेश पारित किया, जिन्होंने शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग के अवर सचिव (छात्रवृत्ति) की तरफ से जारी पत्र को चुनौती दी है। अवर सचिव ने नोरी प्रमाण पत्र के लिए उनके आवेदन को खारिज कर दिया था।
केंद्र ने आवेदन खारिज करते हुए इस नीति का हवाला दिया था कि नोरी प्रमाण पत्र डॉक्टरों और मेडिकल डिग्री धारकों को जारी नहीं किया जा सकता क्योंकि इसके बाद वे दूसरे देशों में चले जाते हैं और भारत में चिकित्सकों की कमी हो जाती है।
नोरी प्रमाण पत्र गृह देश द्वारा किसी आवेदक को जारी किया जाता है जिसमें प्रमाणित किया जाता है कि आवेदक अपने गृह देश लौटने के लिए बाध्य नहीं है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता ने अपनी एमबीबीएस की डिग्री एक निजी कॉलेज से पूरी की और उनके इस वचन पत्र को स्वीकार किया कि वह भारत या अमेरिका में मेडिसिन की प्रैक्टिस नहीं करेंगी और केवल शोध कार्य करेंगी।
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