जानिए ईश्वरचंद्र विद्यासागर के बारे में, जिनकी मूर्ति टूटने पर बंगाल की सियासत सुलगी
By सतीश कुमार सिंह | Published: May 15, 2019 02:01 PM2019-05-15T14:01:21+5:302019-05-15T17:08:55+5:30
कोलकाता के विद्यासागर महाविद्यालय स्थित समाज सुधारक ईश्वर चंद विद्यासागर की प्रतिमा भी राजनीतिक हिंसा की भेंट चढ़ गई। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ईश्वर चंद विद्यासागर की प्रतिमा को बंगाल माटी से जोड़ते हुए मुद्दा बना लिया है। बंगाल पुर्नजागरण काल की प्रमुख हस्ती और जाने-माने सुधारवादी ईश्वरचंद्र विद्यासागर की आवक्ष प्रतिमा कथित तौर पर तोड़े जाने के विरोध में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के कई शीर्ष नेताओं ने बुधवार को अपने-अपने फेसबुक और ट्विटर अकाउंट पर उनकी ‘प्रदर्शित तस्वीर’ (डिस्पले पिक्चर या डीपी) लगाई है।
लोकसभा चुनाव 2019 आते-आते आखिरकार बंगाल में राजनीतिक लड़ाई हिंसा में बदल गई। मंगलवार को कोलकाता में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान जमकर बवाल हुआ।
इस बवाल में कोलकाता के विद्यासागर महाविद्यालय स्थित समाज सुधारक ईश्वर चंद विद्यासागर की प्रतिमा भी राजनीतिक हिंसा की भेंट चढ़ गई। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ईश्वर चंद विद्यासागर की प्रतिमा को बंगाल माटी से जोड़ते हुए मुद्दा बना लिया है।
बंगाल पुर्नजागरण काल की प्रमुख हस्ती और जाने-माने सुधारवादी ईश्वरचंद्र विद्यासागर की आवक्ष प्रतिमा कथित तौर पर तोड़े जाने के विरोध में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के कई शीर्ष नेताओं ने बुधवार को अपने-अपने फेसबुक और ट्विटर अकाउंट पर उनकी ‘प्रदर्शित तस्वीर’ (डिस्पले पिक्चर या डीपी) लगाई है।
सोशल नेटवर्किंग मंचों ट्विटर और फेसबुक पर तृणमूल कांग्रेस के अधिकारिक प्रोफाइल की डीपी को बदलकर उनकी जगह ईश्वरचंद्र विद्यासागर की तस्वीर लगाई गई है। उत्तर कोलकाता में मंगलवार को कथित भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की प्रतिमा तोड़े जाने के विरोध में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बुधवार को एक विरोध रैली निकालेंगी।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के बचपन का नाम ईश्वर चन्द्र बन्दोपाध्याय था
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के बचपन का नाम ईश्वर चन्द्र बन्दोपाध्याय था। वह बंगाल के पुनर्जागरण के स्तम्भों में से एक थे। इनका जन्म बंगाल में हुआ था, करमाटांड इनकी कर्मभूमि थी। वह उच्चकोटि के विद्वान थे। उनकी विद्वता के कारण ही उन्हें विद्यसागर की उपाधि दी गई थी।
ईश्वरचंद्र विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर, 1820 को कोलकाता में हुआ था। वह एक प्रसिद्ध समाज सुधारक, शिक्षा शास्त्री और स्वाधीनता संग्राम के सेनानी थे।
वह नारी शिक्षा के समर्थक थे। उनके प्रयास से ही कलकत्ता में एवं अन्य स्थानों में बहुत अधिक बालिका विद्यलयों की स्थापना हुई। उस समय हिन्दू समाज में विधवाओं की स्थिति बहुत ही सोचनीय थी। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए लोगमत तैयार किया।
उन्हीं के प्रयासों से 1856 ई. में विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित हुआ। उन्होंने अपने इकलौते पुत्र का विवाह एक विधवा से ही किया। उन्होंने बाल विवाह का भी विरोध किया। विद्यासागर एक दार्शनिक, शिक्षाशास्त्री, लेखक, अनुवादक, मुद्रक, प्रकाशक, उद्यमी, सुधारक एवं मानवतावादी व्यक्ति थे।
गरीबों और दलितों का संरक्षक माना जाता था
उन्हें गरीबों और दलितों का संरक्षक माना जाता था। उन्होंने स्त्री शिक्षा और विधवा विवाह के खिलाफ आवाज उठाई थी। उन्होंने 'मेट्रोपोलिटन विद्यालय' सहित अनेक महिला विद्यालयों की स्थापना की और साल 1848 में वैताल पंचविंशति नामक बंगला भाषा की प्रथम गद्य रचना का भी प्रकाशन किया था।
नैतिक मूल्यों के संरक्षक और शिक्षाविद विद्यासागर का मानना था कि अंग्रेजी और संस्कृत भाषा के ज्ञान का समन्वय करके भारतीय और पाश्चात्य परंपराओं के श्रेष्ठ को हासिल किया जा सकता है। विद्यासागर का जन्म पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के गरीब लेकिन धार्मिक परिवार में हुआ था।
उनके पिता का नाम ठाकुरदास बन्धोपाध्याय और माता का नाम भगवती देवी था। उनका बचपन काफी गरीबी में बीता। गांव के स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद वह अपने पिता के साथ कोलकाता आ गए थे। वह चीजों को जल्दी सीख लिया करते थे।
पढ़ाई में अच्छे होने की वजह से उन्हें कई संस्थानों से छात्रवृत्तियां मिली थीं। वह काफी विद्वान थे जिसके कारण उन्हें विद्यासागर की उपाधि दी गई थी।
21 साल की उम्र में साल 1841 में उन्होंने फोर्ट विलियम कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया था
साल 1839 में विद्यासागर ने कानून की पढ़ाई पूरी की। 21 साल की उम्र में साल 1841 में उन्होंने फोर्ट विलियम कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया था। यहां पांच साल तक अपनी सेवा देने के बाद उन्होंने इसे छोड़ दिया और संस्कृत कॉलेज में सहायक सचिव के तौर पर नियुक्त हुए।
पहले साल से ही उन्होंने शिक्षा पद्धति को सुधारने के लिए प्रशासन को अपनी सिफारिशें सौंपी। जिसके कारण उनके और तत्कालीन कॉलेज सचिव रसोमय दत्ता के बीच तकरार पैदा हो गया। इस वजह से उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा। 1949 में एक बार फिर वह साहित्य के प्रोफेसर के तौर पर संस्कृत कॉलेज से जुडे़।
समाज सुधार योगदान के तहत ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने स्थानीय भाषा और लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूलों की एक श्रृंखला के साथ कोलकाता में मेट्रोपॉलिटन कॉलेज की स्थापना की। उनके लगातार प्रचार का नतीजा था कि विधवा पुनर्विवाह कानून-1856 पारित हुआ। उन्होंने खुद एक विधवा से अपने बेटे की शादी करवाई थी। उन्होंने बहुपत्नी प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई थी।