वीर सावरकर पर विवादः जयराम रमेश और असदुद्दीन औवैसी ने राजनाथ सिंह पर किया हमला, शिवसेना सांसद संजय राउत बोले-आदर्श हैं और रहेंगे
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 13, 2021 08:32 PM2021-10-13T20:32:15+5:302021-10-13T20:34:51+5:30
शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि वीर सावरकर ने कभी भी अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी। इससे एक दिन पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया था कि स्वतंत्रता सेनानी सावरकर ने महात्मा गांधी के अनुरोध पर अंग्रेजों को दया याचिका लिखी थी।
नई दिल्लीः विपक्ष के कुछ नेताओं ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा महात्मा गांधी और वीर सावरकर के संदर्भ में की गई एक टिप्पणी को लेकर बुधवार को उन पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि वह ‘इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश कर रहे हैं।’
इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश और एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन औवैसी ने महात्मा गांधी द्वारा से 25 जून, 1920 को सावरकर के भाई को एक मामले में लिखे गए पत्र की प्रति ट्विटर पर साझा की और आरोप लगाया कि भाजपा के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह गांधी द्वारा लिखी गई बात को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं।
वीर सावरकर ने कभी भी अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी
शिवसेना सांसद संजय राउत ने बुधवार को कहा कि वीर सावरकर ने कभी भी अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी। इससे एक दिन पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया था कि स्वतंत्रता सेनानी सावरकर ने महात्मा गांधी के अनुरोध पर अंग्रेजों को दया याचिका लिखी थी। पुणे में पत्रकारों से बात करते हुए राउत ने कहा कि दस साल से अधिक समय तक जेल में रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी यह सोचकर अपनी रणनीति बनाते थे कि जेल में रहने के बजाय वे बाहर निकलकर कुछ कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि जेल में सजा काटने के दौरान एक अलग रणनीति अपनाई जाती है।
राउत ने कहा, ''यदि सावरकर ने ऐसी रणनीति अपनाई थी, तो इसे माफी मांगना नहीं कह सकते। हो सकता है कि सावरकर ने ऐसी रणनीति अपनाई हो। सावरकर ने अंग्रेजों से कभी माफी नहीं मांगी।'' राउत कई मौकों पर वी डी सावरकर को भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व के सिरमौर सावरकर हमेशा से उनकी पार्टी के लिये आदर्श रहे हैं।
सावरकर को लेकर राजनाथ सिंह के बयान के बारे में पूछे जाने पर राउत ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। राजनाथ सिंह ने मंगलवार को वीर सावरकर को एक कट्टर राष्ट्रवादी और 20वीं सदी में भारत का पहला सैन्य रणनीतिकार बताते हुए कहा था उन्होंने गांधी के अनुरोध पर अंग्रेजों को दया याचिकाएं लिखीं और मार्क्सवादी और लेनिनवादी विचारधारा के लोगों ने फासीवादी होने का गलत आरोप लगाया।
दो राष्ट्र की बात सबसे पहले सावरकर ने की थी : बघेल
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि वीर सावरकर ने वर्ष 1925 में जेल से बाहर आने के बाद अंग्रेजों के 'फूट डालो और राज करो' के एजेंडे पर काम किया और उन्होंने सबसे पहले 'दो राष्ट्र' की बात कही थी। राजधानी रायपुर के हेलीपैड पर बुधवार को संवाददाताओं से बातचीत के दौरान मुख्यमंत्री बघेल ने यह बात मंगलवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की उस टिप्पणी के संबंध में जवाब कही जिसमें कहा गया है कि महात्मा गांधी के अनुरोध पर सावरकर ने दया याचिका दी थी।
बघेल ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘मुझे एक बात बताइए। महात्मा गांधी उस समय कहां वर्धा में थे, और ये (वीर सावरकर)कहां सेल्युलर जेल में थे। इनका संपर्क कैसे हो सकता है। जेल में रहकर ही उन्होंने दया याचिका मांगी और एक बार नहीं आधा दर्जन बार उन्होंने मांगी। एक बात और है सावरकर ने माफी मांगने के बाद वह पूरी जिंदगी अंग्रेजों के साथ रहे। उसके खिलाफ एक शब्द नहीं बोले। बल्कि जो अंग्रेजों का एजेंडा है ‘फूट डालो राज करो’। उस एजेंडे पर काम करते रहे।’’
मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 1925 में जेल से बाहर आने के बाद 'दो राष्ट्र' की जो बात है उसे सबसे पहले सावरकर ने ही की थी। यह जो पाकिस्तान और हिंदुस्तान की बात है उसे सावरकर ने 1925 में कही थी। देश के विभाजन का प्रस्तावना सावरकर ने दी, और उसके बाद मुस्लिम लीग ने 1937 में एक प्रस्ताव पारित किया। दोनों जो सांप्रदायिक ताकत है उन्होंने देश के 1947 में बंटवारे की पृष्ठभूमि तैयार की।
रमेश और ओवैसी ने उन पर निशाना साधा
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश और एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन औवैसी ने महात्मा गांधी द्वारा से 25 जून, 1920 को सावरकर के भाई को एक मामले में लिखे गए पत्र की प्रति ट्विटर पर साझा की और आरोप लगाया कि भाजपा के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह गांधी द्वारा लिखी गई बात को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं। रमेश ने कहा, ‘‘राजनाथ सिंह जी मोदी सरकार की कुछ गंभीर और शालीन लोगों में से एक हैं। परंतु लगता है कि वह भी इतिहास के पुनर्लेखन की आरएसएस की आदत से मुक्त नहीं हो सके हैं।
उन्होंने महात्मा गांधी ने 25 जनवरी, 1920 को जो लिखा था, उसे अलग रूप से पेश किया है।’’ ओवैसी ने कहा कि सावरकर की ओर से पहली दया याचिका 1911 में जेल जाने के छह महीनों बाद दी गई थी और उस समय महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में थे। इसके बाद सावरकर ने 1913-14 में दया याचिका दी। भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने सावरकर का बचाव करते हुए ट्वीट कर कहा, ‘‘कांग्रेस सावरकर जी का विरोध करती है जो ब्रिटिश प्रशासन के साथ कभी नहीं जुड़े और मातृभूमि के लिए सर्वोच्च बलिदान का उदाहरण प्रस्तुत किया।
बहरहाल, कुछ लोग माउंटबेटन के घर पर नियमित रूप से रात्रिभोज करते थे।’’ भाजपा के आईटी प्रकोष्ठ के प्रमुख अमित मालवीय ने सावरकर के बारे में गांधी की एक टिप्पणी को उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘वह बहुत समझदार हैं। वह बहादुर हैं, वह देशभक्त हैं। मौजूदा सरकार में निहित बुराई को उन्होंने मुझसे पहले देख लिया था। वह भारत से बहुत प्रेम करने के कारण अंडमान में हैं।
वह सरकार में वह बड़े पद पर आसीन रहे होते।’’ राजनाथ सिंह ने मंगलवार को कहा था कि राष्ट्र नायकों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में वाद-प्रतिवाद हो सकते हैं लेकिन विचारधारा के चश्मे से देखकर वीर सावरकर के योगदान की उपेक्षा करना और उन्हें अपमानित करना क्षमा योग्य और न्यायसंगत नहीं है। राजनाथ सिंह ने उदय माहूरकर और चिरायु पंडित की पुस्तक ‘‘वीर सावरकर हु कुड हैव प्रीवेंटेड पार्टिशन’’ के विमोचन कार्यक्रम में यह बात कही । उन्होंने यह भी कहा था कि महात्मा गांधी के कहने पर सावरकर ने अंग्रेजों के समक्ष दया याचिका दी थी ।