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महाराष्ट्र राजनीतिः पाला बदलना, अलग हुए गुटों के फिर से मिलने की कवायद, खोई जमीन वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहा विपक्ष, जानें

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 11, 2025 17:24 IST

Maharashtra Politics: शरद पवार(शरद और अजित) और ठाकरे (राज और उद्धव) के बारे में चर्चा पर टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी।

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ठळक मुद्देमहा विकास आघाड़ी (एमवीए) पिछले साल के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार गया था।288 सीट में से सिर्फ 46 सीट ही जीत पाया था। अगली चुनौती निकाय चुनाव है।विधानसभा चुनावों के बाद रांकापा (एसपी) और शिवसेना (उबाठा) को दलबदल का सामना करना पड़ा है।

मुंबईः राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महाराष्ट्र में नेताओं के पाला बदलने, अलग हुए गुटों के फिर से मिलने और गठबंधन में मतभेदों की चर्चा के बीच राज्य में विपक्ष को अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना (उबाठा) और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसपी) वाला गठबंधन महा विकास आघाड़ी (एमवीए) पिछले साल के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार गया था और 288 सीट में से सिर्फ 46 सीट ही जीत पाया था। अगली चुनौती निकाय चुनाव है।

उच्चतम न्यायालय ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण के मुद्दे पर कई वर्षों से रुके निकाय चुनावों को चार सप्ताह में अधिसूचित करने के लिए मंगलवार को राज्य निर्वाचन आयोग को आदेश दिया था। हालांकि, विधानसभा चुनावों के बाद रांकापा (एसपी) और शिवसेना (उबाठा) को दलबदल का सामना करना पड़ा है।

पुणे जिले से कांग्रेस के एकमात्र वरिष्ठ नेता संग्राम थोपटे ने हाल में पार्टी छोड़ दी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रत्नाकर महाजन ने कहा कि स्थिति की एक साझा समझ और चुनावी एकता विपक्ष के खुद को मजबूत करने के प्रयासों को आगे बढ़ाएगी। राजनीतिक जानकारों के अनुसार जब तक एक स्पष्ट नेतृत्व रणनीति और एकीकृत एजेंडा सामने नहीं आता, तब तक विपक्ष के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की राकांपा के सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति से मुकाबला करना थोड़ा मुश्किल है।

एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, ‘‘विपक्ष के लिए सबसे बड़ी चुनौती खुद को फिर से खड़ा करना है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘महंगाई, बेरोजगारी और किसान जैसे मुद्दों पर लोगों में असंतोष है, लेकिन इन मुद्दों को दिशा देने के लिए कोई एक चेहरा या एकजुट ताकत नहीं है।’’ वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश अकोलकर ने कहा कि इस पर सभी की नजरें हैं कि वरिष्ठ नेता शरद पवार क्या कदम उठाते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘इसके केंद्र में (पवार की बेटी) सुप्रिया सुले हैं। हमेशा की तरह, शरद पवार का स्पष्ट रुख नहीं है और उन्होंने राजनीतिक रूप से अलग हुए अपने भतीजे अजित पवार के साथ पुन: जुड़ने के बारे में एक हल्की टिप्पणी करके हलचल मचा दी है, जैसा कि मीडिया के एक वर्ग की खबरों में बताया गया है।’’

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 84 वर्षीय शरद पवार राकांपा के गढ़ों में अपनी पार्टी को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दलबदल भले ही कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती न हो, लेकिन यह नए विकल्प तलाश रहे युवा मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने के लिए संघर्ष कर रही है।

एक समय महाराष्ट्र की राजनीति में एक ताकत रही कांग्रेस की अब थोड़ी बहुत पकड़ केवल विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र में है। शिवसेना (यूबीटी) को मुंबई और कोंकण क्षेत्र के कुछ हिस्सों में बाल ठाकरे द्वारा स्थापित शिवसेना के पारंपरिक मतदाताओं के बीच भावनात्मक समर्थन प्राप्त है। हालांकि 2022 में शिंदे द्वारा किए गए विभाजन के बाद इसकी संगठनात्मक ताकत कम हो गई है।

एक विश्लेषक ने कहा कि देश के सबसे अमीर नगर निकाय बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) पर राज करने की लड़ाई ठाकरे के लिए सबसे बड़ी राजनीतिक लड़ाई होगी। इस नगर निकाय पर दो दशक से अधिक समय तक अविभाजित शिवसेना का शासन रहा था। उन्होंने कहा, ‘‘विपक्ष के पास अगले विधानसभा चुनावों के लिए साढ़े चार साल हैं।

हालांकि अगर कोई सुधारात्मक उपाय नहीं किए गए तो 2029 के चुनाव फिर से सत्तारूढ़ गठबंधन के पक्ष में हो सकते हैं। फिलहाल विपक्ष के लिए स्थानीय निकाय चुनाव काफी महत्वपूर्ण हैं।’’ कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने ‘पीटीआई-भाषा से कहा कि उनकी पार्टी भाजपा के खिलाफ लड़ाई जारी रखेगी और उन लोगों को साथ लेकर चलेगी जो ‘‘लोकतंत्र और संविधान की रक्षा’’ करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव विपक्षी एकता की अग्निपरीक्षा होंगे।

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे और उनके चचेरे भाई उद्धव के बीच संभावित सुलह की चर्चा ने महाराष्ट्र की राजनीति में नया आयाम जोड़ दिया है। हालांकि, कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​है कि दोनों भाई, खासकर मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) में सहयोग के तरीके तलाश रहे हैं जहां दोनों पार्टियों का मराठी मतदाताओं पर प्रभाव है।

एक विश्लेषक ने कहा, ‘‘पार्टी के विभाजित होने के बाद उद्धव मराठी मतदाताओं को एकजुट करना चाहते हैं। हाल के वर्षों में सीमित चुनावी सफलता के बावजूद, मनसे अभी भी शहरी मराठी भाषी मतदाताओं, खासकर मुंबई, ठाणे और नासिक के कुछ क्षेत्रों में प्रभाव बनाए हुए है।’’ हाल में, राज ठाकरे ने कक्षा एक से हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने पर सरकार का विरोध किया था। एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि राज ठाकरे ने हाल में पहलगाम हमले के बाद भी केंद्र पर निशाना साधा था।

विश्लेषक ने कहा कि अगर गठबंधन रणनीतिक रूप से संभाला नहीं गया तो ठाकरे बंधुओं को महंगा पड़ सकता है। मनसे महासचिव वागीश सारस्वत ने कहा, ‘‘इस दिशा में अभी तक कोई आधिकारिक बातचीत नहीं हुई है।’’ सपकाल ने कहा कि पवार(शरद और अजित) और ठाकरे (राज और उद्धव) के बारे में चर्चा पर टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी।

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