नीर भरी दुख की बदलीः आधुनिक समय की 'मीराबाई' महादेवी वर्मा का जीवन और कुछ चुनिंदा कविताएं
By आदित्य द्विवेदी | Published: September 11, 2019 10:45 AM2019-09-11T10:45:33+5:302019-09-11T10:45:33+5:30
‘मैं नीर भरी दुख की बदली’। आधुनिक काल की मीरा कही जाने वाली महादेवी वर्मा ने महज इस एक पंक्ति में अपना परिचय समेट दिया है। महादेवी वर्मा की गिनती हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ सुमित्रानन्दन पन्त, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के साथ की जाती है। आधुनिक हिन्दी कविता में महादेवी वर्मा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरीं। आज उनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को फर्रुखाबाद के एक रूढ़िवादी परिवार में हुआ था। उन्होंने अपना बचपना इलाहाबाद के करीब ही गुजारा। उनके पिता प्रोफेसर थे। अपनी मां की प्रेरणा से महादेवी वर्मा ने लिखना शुरू किया। महादेवी वर्मा जब महज 9 साल की थी तभी उनका विवाह कर दिया गया लेकिन उन्होंने अपने माता-पिता के साथ ही रहने का फैसला किया।
उन्होंने कविता, कहानी, संस्मरण और लेखों के जरिए महिलाओं के अनुभव को साझा किए। 'यामा' में उनके प्रथम चार काव्य-संग्रहों की कविताओं का एक साथ संकलन हुआ है जिसे ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
'स्मृति की रेखाएं' (1943 ई.) और 'अतीत के चलचित्र' (1941 ई.) उनकी संस्मरणात्मक गद्य रचनाओं के संग्रह हैं। 'शृंखला की कड़ियाँ' (1942 ई.) में सामाजिक समस्याओं, विशेषकर अभिशप्त नारी जीवन के जलते प्रश्नों के सम्बन्ध में लिखे उनके विचारात्मक निबन्ध संकलित हैं। रचनात्मक गद्य के अतिरिक्त 'महादेवी का विवेचनात्मक गद्य' में तथा 'दीपशिखा', 'यामा' और 'आधुनिक कवि-महादेवी' की भूमिकाओं में उनकी आलोचनात्मक प्रतिभा का भी पूर्ण प्रस्फुटन हुआ है।
1943 में उन्हें 'मंगला प्रसाद पुरस्कार' एवं उत्तर प्रदेश सरकार के 'भारत भारती पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। 'यामा' नामक काव्य संकलन के लिए उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' प्राप्त हुआ। महादेवी वर्मा का निधन 11 सितंबर 1987 को हुआ था।
महादेवी वर्मा की कुछ चुनिंदा कविताएंः- (साभार- कविता कोष)
जो तुम आ जाते एक बार
कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार
हँस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार
*****
कौन तुम मेरे हृदय में?
कौन मेरी कसक में नित
मधुरता भरता अलक्षित?
कौन प्यासे लोचनों में
घुमड़ घिर झरता अपरिचित?
स्वर्ण-स्वप्नों का चितेरा
नींद के सूने निलय में!
कौन तुम मेरे हृदय में?
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बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ!
नींद थी मेरी अचल निस्पन्द कण कण में,
प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पन्दन में,
प्रलय में मेरा पता पदचिन्ह जीवन में,
शाप हूँ जो बन गया वरदान बंधन में
कूल भी हूँ कूलहीन प्रवाहिनी भी हूँ!
बीन भी हूँ मैं...
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अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!
यह न समझो देव पूजा के सजीले उपकरण ये,
यह न मानो अमरता से माँगने आए शरण ये,
स्वाति को खोजा नहीं है औ' न सीपी को पुकारा,
मेघ से माँगा न जल, इनको न भाया सिंधु खारा!
शुभ्र मानस से छलक आए तरल ये ज्वाल मोती,
प्राण की निधियाँ अमोलक बेचने का धन नहीं है।
अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!
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मैं नीर भरी दु:ख की बदली!
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झरिणी मचली!
मेरा पग-पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली,
मैं क्षितिज भॄकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन अंकुर बन निकली!
पथ को न मलिन करता आना,
पद चिन्ह न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन बन अंत खिली!
विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली!
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सुनें महादेवी वर्मा को ऑल इंडिया रेडियो की इस दुर्लभ रिकॉर्डिंग में...