मध्य प्रदेश चुनावः प्रत्याशियों से ज्यादा क्षेत्रीय नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर
By शिवअनुराग पटैरया | Published: November 17, 2018 05:15 AM2018-11-17T05:15:42+5:302018-11-17T05:15:42+5:30
मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के कई विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशियों से ज्यादा उनके कुनबों के मुखिया नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है.
भोपाल, 16 नवंबरः मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के कई विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशियों से ज्यादा उनके कुनबों के मुखिया नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. मध्यप्रदेश के सागर संभाग के 5 जिले सागर, दमोह, पन्ना, टीकमगढ़ और छतरपुर बुंदेलखंड के तहत आते हैं. इस क्षेत्र में कुल 26 विधानसभा क्षेत्र हैं. 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 20 और कांग्रेस ने 6 सीटों पर अपनी जीत दर्ज कराई थी.
पारंपरिक रूप से बुंदेलखंड का यह इलाका 2003 के पूर्व तक कांग्रेस के गढ़ रहा है. 2003 में इस क्षेत्र की तासीर भाजपा के साथ हो ली. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि 2003 में उमा भारती को मुख्यमंत्री का चेहरा प्रस्तुत किया गया था वह बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले से आती हैं. उसके बाद हुए 2008 और 2013 के चुनाव में भाजपा ने इस इलाके की ज्यादातर सीटों पर अपना कब्जा बनाए रखा. यह कब्जा तब भी बना रहा जब 2008 के चुनाव में उमा भारती ने खुद बागी होकर भारतीय जनशक्ति पार्टी के तहत प्रत्याशी खड़े किए थे. 26 सीटों में से 2 सीटों पर उनके प्रत्याशियों ने जीत दर्ज कराई थी.
उमा भारती अब भाजपा में फिर वापस आ गई हैं और अपनी पूरी ताकत के साथ भाजपा के पक्ष में चुनाव मैदान में प्रचार कर रही हैं. उमा भारती के भतीजे राहुल सिंह लोधी टीकमगढ़ जिले के खरगापुर से प्रत्याशी हैं. उन्हें भाजपा ने 2013 में भी प्रत्याशी बनाया था लेकिन वे उमा भारती की पूरी ताकत लगाने के बाद भी कांग्रेस की चंदासिंह गौड़ से हार गए थे. इस बार फिर उनका मुकाबला चंदासिंह गौड़ से ही है. जो इस क्षेत्र के एक रसूखदार राजपूत परिवार से आती हैं. खरगापुर में राहुल सिंह लोधी से कहीं ज्यादा उमा भारती की प्रतिष्ठा दांव पर है. इसीलिए वे खुद पूरी सावधानी से इस क्षेत्र के गुणाभाग पर ध्यान रख रही हैं.
बुंदेलखंड के छतरपुर जिले की राजनगर सीट से पूर्व सांसद और मप्र के कांग्रेस के एक बड़े नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने अपने बेटे को कांग्रेस से टिकट दिलाने की भरपूर कोशिश की पर वह टिकट नहीं दिला पाए. इसके बाद उन्होंने अपने बेटे नितिन चतुर्वेदी उर्फ बंटी को समाजवादी पार्टी से चुनाव मैदान में उतार दिया. यहां नितिन चतुर्वेदी से ज्यादा सत्यव्रत चतुर्वेदी जिन्हें लाड़ में लोग विनोद चतुर्वेदी भी कहते हैं, की प्रतिष्ठा दांव पर है.
सत्यव्रत चतुर्वेदी कांग्रेस के स्टार प्रचारक रहते हुए भी अपने बेटे के पक्ष में प्रचार अभियान में डटे हैं. वे कहते हैं कि मैं न केवल नितिन का बल्कि आसपास के दूसरे सपा प्रत्याशियों का प्रचार करूंगा. उनकी टीस इस बात को लेकर है कि राज्य के कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता दिग्विजय सिंह के साथ बैठकर उनके बेटे को राजनगर से कांग्रेस के टिकट देने यहां के स्थानीय कांग्रेस विधायक विक्रम सिंह नातीराजा को लोकसभा का चुनाव लड़वाने और विजावर से शंकरप्रताप सिंह को कांग्रेस का प्रत्याशी बनवाकर चुनाव लड़ने का जो समझौता हुआ था उसको तोड़ दिया गया. इसलिए उन्होंने बगावत कर सपा से अपने बेटे को प्रत्याशी बनवा दिया. अब कांग्रेस की सांसत यह है कि सत्यव्रत खुलेआम सपा का प्रचार कर रहे हैं और कांग्रेस अपने इस स्टार प्रचार को पार्टी से बाहर का रास्ता भी नहीं दिखा पा रही है.
बुंदेलखंड के दमोह जिले के दमोह और पथरिया विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के पूर्व मंत्री रामकृष्म कुसमरिया बागी के तौर पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में बागी हैं. वे भाजपा को खम ठोककर चुनौती दे रहे हैं. इसके कारण भाजपा के प्रत्याशी और वित्तमंत्री जयंत मलैया सांसत में पड़ गए हैं. दरअसल कुसमरिया का आरोप है कि दमोह जिले में अपनी एक छत्र राजनीति करने के लिए मलैया ने ही उन्हें टिकट नहीं मिलने दिया.
बुंदेलखंड का यह इलाका अपनी जुझारू प्रवृत्ति के साथ साथ विपदा और विपन्नता के लिए मशहूर रहा है यहां जातिगत गणित और प्रतिबद्धताएं बहुत ही शख्त हैं. इस इलाके में सामान्य रूप से मतदाता अपने जातिगत समीकरणों के अनुरूप व्यवहार करते हैं. इस इलाके का सबसे बड़ा जातिगत समूह ओबीसी है जो यहां की कुल संख्या के 44 फीसदी से ज्यादा है. इसी तरह अनुसूचित जाति के जातिगत आधार 22 फीसदी के आसपास माना जाता है. इसके अलावा अनुसूचित जनजात्ति के मतदाताओं का आकार 9.93 और सामान्य वर्ग का 23 फीसदी के आसपास माना जाता है. इसी कारण बुंदेलखंड में जब राजनीतिक दल अपने प्रत्याशियों का चयन करते हैं तो वे जातिगत समूहों और उनके वोटिंग पैटर्न को ध्यान में रखते हैं.
बुंदेलखंड के 26 विधानसभा क्षेत्रों में से अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के बीच है. वैसे कुछ स्थानों पर सपा और बसपा के प्रत्याशी त्रिकोणीय संघर्ष उपस्थित कर रहे हैं. इन क्षेत्रों में राजनगर, बिजावर जैसे स्थान प्रमुख हैं.
भार्गव नहीं करते चुनाव के दौरान प्रचार
बुंदेलखंड के सागर जिले के तहत आने वाले रहली विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी और प्रदेश सरकार में पंचायत ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव चुनाव की घोषणा होने के बाद कभी प्रचार नहीं करते हैं. इस दौरान वे अपने घर में ही रहते हैं. उनका तर्क है कि मैंने पूरे पांच साल जब जनता की सेवा की और कार्यकर्ताओं की अपेक्षा अनुसार काम किया तो चुनाव के दौरान प्रचार क्यों करना. गोपाल भार्गव रहली विधानसभा क्षेत्र से 1985 से लगातार 7 बार से चुनाव जीत रहे हैं. वे इस बार यहां से फिर भाजपा के प्रत्याशी हैं और उनका अंदाज वही कि चुनाव के दौरान प्रचार नहीं करूंगा. यह काम तो कार्यकर्ताओं और जनता को करना है.