'रोम है पोप का और मधेपुरा है गोप का', मंडलवादी राजनीति की प्रयोगभूमि मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र पर टिकी है सभी की निगाहें
By एस पी सिन्हा | Published: February 28, 2019 05:54 AM2019-02-28T05:54:09+5:302019-02-28T06:31:47+5:30
मधेपुरा सीट का एक समृद्ध राजनीतिक इतिहास रहा है. यहां सत्ता विरोधी सियासत की आंधी चलती रही है. यहां कभी नेहरू की आंधी में यहां से किराय मुसहर जीते तो 2014 में मोदी की सुनामी में पप्पू यादव जीते.
बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट हाईप्रोफाइल सीट मानी जाती है. कहावत है, 'रोम है पोप का और मधेपुरा है गोप का'. इसका सीधा मतलब यह है कि मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में यादव जाति के वोटर सबसे ज्यादा हैं. मंडलवादी राजनीति की प्रयोग भूमि और 'यादव लैंड' के नाम से मशहूर मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र समाजवादी पृष्ठभूमि के नेताओं के लिए उर्वर रहा है. बीपी मंडल से लेकर शरद यादव, लालू प्रसाद यादव, राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने बारी-बारी से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है. यहां सत्ता विरोधी सियासत की आंधी चलती रही है. यहां कभी नेहरू की आंधी में यहां से किराय मुसहर जीते तो 2014 में मोदी की सुनामी में पप्पू यादव जीते.
मधेपुरा का ऐतिहासिक महत्व
मधेपुरा बिहार का महत्वपूर्ण लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है इसे 1967 में लोकसभा सीट बनाया गया. देश के लिए चौथी लोकसभा के चुनाव में यहां के लोगों ने पहली बार मतदान किया. दो बार परिसीमन कर इस लोकसभा में आने वाले विधानसभा क्षेत्रों को बदला गया. जिला मुख्यालय होने के कारण यहां यह क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण है. प्राचीन काल में मधेपुरा मिथिला राज्य का हिस्सा था. बाद में मौर्य वंश का भी यहां शासन रहा. यहां कुषाण वंश और मुगलों ने भी राज किया. यह क्षेत्र धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध है. चंडी स्थान, सिंघेश्वर स्थान, श्रीनगर, रामनगर, बसन्तपुर, बिराटपुर और बाबा करु खिरहर आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं.
राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव का ये गढ़ रहा है तो बाहुबली पप्पू यादव और शरद यादव के बीच की सियासी जंग भी यहां के वोटरों के लिए हमेशा रुचि का विषय रहता है. मधेपुरा जिला उत्तर में अररिया और सुपौल, दक्षिण में खगडिया और भागलपुर जिला, पूर्व में पूर्णिया तथा पश्चिम में सहरसा जिले से घिरा हुआ है. राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव मधेपुरा से सांसद हैं.
मंडलवादी राजनीति का गढ़
यह जिला मंडल आयोग के अध्यक्ष रहे बी. पी. मंडल का पैतृक जिला है. जो द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष भी रहे जिसे मंडल आयोग के नाम से जाना जाता है और जिनकी रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी वर्ग को देश में आरक्षण मिला. राजद प्रमुख लालू यादव दो बार मधेपुरा सीट से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. मधेपुरा से 2014 में पप्पू यादव ने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा था और जीते थे. अब पप्पू यादव अपनी अलग पार्टी बना चुके हैं. तब शरद यादव जदयू के नेता थे अब वे भी अपनी अलग पार्टी बना चुके हैं. दोनों की नजदीकी अब कांग्रेस के साथ है मतलब महागठबंधन की ओर से टिकट पर दोनों की दावेदारी होगी.
समाजवादी नेताओं का रहा है दबदबा
1967 के चुनाव में मधेपुरा सीट से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नेता बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने चुनाव जीता. 1968 के उपचुनाव में भी जीत उन्हीं के हाथ लगी. 1971 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के चौधरी राजेंद्र प्रसाद यादव ने चुनाव जीता. 1977 के चुनाव में फिर भारतीय लोक दल के टिकट पर बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने चुनाव जीता. 1980 के चुनाव में फिर इस सीट को चौधरी राजेंद्र प्रसाद यादव ने छीन लिया.
1984 के चुनाव में मधेपुरा सीट पर कांग्रेस के चौधरी महावीर प्रसाद यादव विजयी रहे. 1989 में जनता दल ने इस सीट से चौधरी रमेंद्र कुमार यादव रवि को उतारा और उन्होंने जीत का परचम लहराया. इसके बाद जेपी आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले शरद यादव ने मधेपुरा को अपनी सियासी कर्मभूमि के रूप में चुना. 1991 और 1996 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर यहां से जीतकर शरद यादव लोकसभा पहुंचे. 1998 में राजद प्रमुख लालू यादव ने यहां से चुनाव जीता. 1999 में फिर शरद यादव जदयू के टिकट पर यहां से चुनाव जीते.
2004 में फिर लालू प्रसाद यादव ने इस सीट से विजय पताका फहराई. लालू ने इस चुनाव में छपरा और मधेपुरा दो सीटों से लोकसभा का चुनाव जीता. हालांकि, मधेपुरा से उन्होंने इस्तीफा दे दिया और इसके बाद फिर उपचुनाव हुए. इस बार राजद के टिकट पर राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव जीतकर लोकसभा पहुंचे. 2009 में यहां से जदयू के शरद यादव फिर जीतने में कामयाब रहे. लेकिन 2014 में यहां से पप्पू यादव की चुनावी किस्मत एक बार फिर खुली और वे राजद के टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे. हालांकि बाद में उन्होंने राजद से नाता तोड़ लिया और अपनी अलग पार्टी बना ली.
मधेपुरा का राजनीतिक इतिहास
1 मई 1981 को मधेपुरा जिला का गठन किया गया. जबकि 1967 में मधेपुरा लोकसभा सीट अस्तित्व में आया. यहां विधानसभा की 6 सीटें हैं. मधेपुरा जिले का सोनवर्षा, आलमनगर, बिहारीगंज, मधेपुरा तो सहरसा जिले का सहरसा और महिषी विधानसभा क्षेत्र आता है. यहां से पहली बार लोकसभा में नुमाइंदगी करने का गौरव दिग्गज समाजवादी नेता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और मंडल आयोग के अध्यक्ष रहे बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल को हासिल है. वह संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर यहां से चुनाव जीते थे. समाजवादी नेता बीएन मंडल और बीपी मंडल की जन्मस्थली.
लालू यादव और शरद यादव की कर्मस्थली मधेपुरा में आज की तारीख में सबसे ज्यादा बुरा हाल छात्र और नौजवानों का है. चुनाव में सबसे ज्यादा उत्साह दिखाने वाला यह वर्ग आज खुद को छला महसूस कर रहा है. छात्रों की शिकायत है कि कॉलेज में शिक्षकों की कमी है. विश्वविद्यालय का सत्र समय पर नहीं चल रहा है. महिलाओं को खराब लॉ एंड ऑर्डर से शिकायत है. हिमालय से आने वाली नदियां बाढ़ से तबाही मचाती हैं. बाढ़ से बच गए तो सिंचाई के अभाव में फसलों का मर जाना आम है. भूपेन्द्र नारायण मंडल, बीपी मंडल, लालू यादव, शरद यादव, पप्पू यादव जैसे दिग्गजों की कर्मभूमि होने के बाद भी मधेपुरा विकास के मामले में पिछड़ा हुआ है.
मधेपुरा की गिनती बिहार के पिछड़े जिले के रूप में होती है. यहां समस्याओं का अंबार है. एनएच-106 सालों से जर्जर है. इस सड़क पर चलना मुश्किल है. एनएच- 106, 107 और बायपास की हालत भी बदतर है. दो महीने पहले पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एपी शाही ने इसको लेकर बिहार सरकार को फटकार भी लगाई थी. मधेपुरा संसदीय क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या 1,508,361 है. इसमें पुरुष मतदाता 790,185 है, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 718,176 है.
मधेपुरा सीट का राजनीतिक समीकरण
2008 के परिसीमन के बाद मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की 6 सीटें आती हैं- आलमनगर, बिहारीगंज, मधेपुरा, सोनबरसा, सहरसा और महिषी. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इन 6 सीटों में से 3 पर जदयू और 3 पर राजद की जीत हुई थी. 16वीं लोकसभा के लिए 2014 में हुए चुनाव में पप्पू यादव को 368937 वोट मिले. तब जदयू के टिकट पर शरद यादव उनके सामने थे. शरद यादव को 312728 वोट मिले. भाजपा के विजय कुमार सिंह 2,52,534 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे. इससे पहले 2009 के चुनाव में शरद यादव को 370585 वोट मिले थे. तब उनके सामने थे राजद उम्मीदवार प्रो. रविन्द्र चरण यादव जिन्हें 192964 वोट हासिल हुए थे.
पप्पू यादव का उभार और अजीत सरकार हत्याकांड
मधेपुरा से सांसद और जन अधिकार पार्टी के मुखिया पप्पू यादव पहले बाहुबली नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा काल में उनका उभार लालू यादव की छत्रछाया में हुआ था. करीब डेढ़ दशक के सियासी साथ के बाद पप्पू यादव की राहें लालू से अलग हो गईं. लेकिन इसे सियासत का संयोग ही कहिए जिस कांग्रेस के साथ लालू यादव की पार्टी ने महागठबंधन बनाया है पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन उसी कांग्रेस पार्टी की सांसद हैं.
सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 2008 में सीपीएम नेता अजीत सरकार हत्याकांड में पप्पू यादव, राजन तिवारी और अनिल यादव को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी. इस फैसले के खिलाफ पप्पू यादव ने पटना हाईकोर्ट में अपील की थी, जहां से उन्हें जनवरी 2008 में ज़मानत मिली थी. सबूत न मिलने के कारण बाद में पप्पू यादव को बेउर जेल से रिहा कर दिया गया. सीपीएम विधायक अजीत सरकार और पप्पू यादव के बीच किसानों के मुद्दे पर तीखे मतभेद थे. अजीत सरकार की 14 जून 1998 को पूर्णिया शहर में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. बाद में पप्पू यादव इस केस में बरी हो गए.
क्या है जातीय समीकरण
मधेपुरा की जमीन ज्यादा उर्वर नहीं है. किसानी कमजोर होने से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली ज्यादातर आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बरस करती है. यहां के मेहनतकश लोग रोजगार के लिए पलायन को मजबूर हैं. बता दें कि मंडलवादी राजनीति की प्रयोग भूमि मधेपुरा में 1967 में अब तक यादव जाति के उम्मीदवार चुनाव जीतते आ रहे हैं. मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र के जातीय गणित पर एक नजर डालें तो- यादव - 3,30,000, मुस्लिम- 1,80,000, ब्राह्मण- 1,70,000, राजपूत- 1,10,000, कायस्थ- 10,000, भूमिहार- 5,000, मुसहर- 1,08,000, दलित- 1,10,000, कुर्मी- 65,000, कोयरी- 60,000, धानुक- 60,000 और वैश्य /पचपनियां- 4,05,000 मतदाता हैं.