बिहार में विपक्षी दलों की बैठक 12 जून को, एनडीए को एकजुट करने में जुटी भाजपा, आरसीपी सिंह, कुशवाहा, सहनी और मांझी हो सकते हैं शामिल!

By एस पी सिन्हा | Published: June 1, 2023 07:41 PM2023-06-01T19:41:41+5:302023-06-01T19:42:31+5:30

भाजपा ने नीतीश कुमार के लव-कुश समीकरण यानि (कोईरी-कुर्मी) वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है।सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया।

lokshabha elections 2024 Meeting opposition parties June 12 BJP working unite NDA, RCP Singh, Upendra Kushwaha, Mukesh Sahni Jitan Ram Manjhi may be included | बिहार में विपक्षी दलों की बैठक 12 जून को, एनडीए को एकजुट करने में जुटी भाजपा, आरसीपी सिंह, कुशवाहा, सहनी और मांझी हो सकते हैं शामिल!

आरसीपी के जरिए भाजपा की मंशा नीतीश की कुर्मी वोट बैंक में सेंधमारी करने की है।

Highlightsउपेन्द्र कुशवाहा ने जदयू से नाता तोड़कर अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल बनाई। एनडीए में शामिल होने की घोषणा कर सकते हैं।आरसीपी के जरिए भाजपा की मंशा नीतीश की कुर्मी वोट बैंक में सेंधमारी करने की है।

पटनाः बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक ओर जहां देश में विपक्षी एकता की मुहिम चला रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर भाजपा बिहार में अपना कुनबा बढ़ाने में जुट गई है। इसी क्रम में भाजपा ने पहले उपेन्द्र कुशवाहा को जदयू से नाता तोड़वाया, फिर आरसीपी सिंह को पार्टी में शामिल किया।

इस बीच भाजपा ने सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। इस तरह से भाजपा ने नीतीश कुमार के लव-कुश समीकरण यानि (कोईरी-कुर्मी) वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है। उपेन्द्र कुशवाहा ने जदयू से नाता तोड़कर अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल बनाई। वे किसी भी समय एनडीए में शामिल होने की घोषणा कर सकते हैं।

आरसीपी के जरिए भाजपा की मंशा नीतीश की कुर्मी वोट बैंक में सेंधमारी करने की है। आरसीपी नीतीश कुमार की ही जाति से हैं और वह नालंदा के ही रहने वाले हैं। नालंदा से उनके लोकसभा चुनाव लडने की संभावना जताई जा रही है। भाजपा ने अब विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) प्रमुख मुकेश सहनी पर भी डोरा डालना शुरू कर दिया है।

मुकेश सहनी को भी उपेन्द्र कुशवाहा की तरह "वाय प्लस" की सुरक्षा प्रदान की गई है। इसबीच मुकेश सहनी ने अब अपना सरकारी बंगला भी खाली कर दिया है। इससे उनके एनडीए गठबंधन में जाने की चर्चा तेज हो गई है। वह कभी भी एनडीए में शामिल होने की घोषणा कर सकते हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए की जीत के बाद सहनी को मत्स्य एवं पशुपालन मंत्री बनाया गया था। इसके बाद में सरकारी बंगला मिला था। बाद में उन्हें विधान परिषद के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया था। बाद में भाजपा के साथ मतभेद के कारण उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया था।

उसके कुछ दिन बाद उनकी विधान परिषद की सदस्यता भी चली गई थी, लेकिन वह उसी बंगले में रह रहे थे। मुकेश सहनी की पार्टी का कोई नेता फिलहाल किसी सदन का सदस्य नहे है। हालांकि 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को चार सीटों पर विजय हासिल हुई थी। इससे सहनी को बिहार की राजनीति में नई ताकत मिली थी।

भाजपा को मुकेश सहनी जातीय ताकत के बारे में पता है। सहनी 2014 से ही भाजपा का साथ दे रहे थे। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचार भी किया था। बिहार में उनकी पहचान एक निषाद नेता की बन चुकी है। राज्य में इस समाज की लगभग पांच फीसदी आबादी है।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही वे(निषाद समाज) एक सीट नही जीते, लेकिन दस लोकसभा सीटों उनका प्रभाव है और वे वोटों का विखराव रोक सकते हैं। बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 सीटों में 39 लोकसभा सीटों पर एनडीए गठबंधन को जीत हासिल हुई थी।

इनमें 17 में भाजपा, 16 जदयू और 06 सीटों पर लोजपा को मिली थी। लेकिन इसबार परिस्थितियां बदली हुई हैं। जदयू के एनडीए छोडकर महागठबंधन में जाने से स्थितियां बदली हुई हैं। उधर, लोजपा भी टूटकर दो भागों में बंट गई है। हालांकि दोनों एनडीए के साथ ही हैं। ऐसे में भाजपा को बिहार में नए सहयोगियों की जरूरत है। जीतन राम मांझी की पार्टी को भी साथ लाने की कोशिश में जुटी बताई जा रही है।

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