लोकसभा चुनाव 2019: हार्दिक पटेल की एंट्री से कांग्रेस ने 21% गुजराती पटेल वोटों पर साधा सीधा निशाना, 6 राज्यों में होगा असर

By निखिल वर्मा | Published: March 11, 2019 11:22 AM2019-03-11T11:22:04+5:302019-03-13T14:50:06+5:30

गुजरात की 6 करोड़ 30 लाख की कुल आबादी में पाटीदारों का हिस्सा 14 प्रतिशत है और कुल वोटरों की बात करें तो उसमें पाटीदार 21 प्रतिशत हैं।  नवंबर 2015 में हुए गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों में पाटीदारों के आंदोलन के चलते ही सत्तारूढ़ बीजेपी को नुकसान झेलना पड़ा और इसी चुनाव से कांग्रेस को नई जान मिली।

loksabha elections gujarat Patidar leader Hardik Patel to join Congress on March 12 know about him | लोकसभा चुनाव 2019: हार्दिक पटेल की एंट्री से कांग्रेस ने 21% गुजराती पटेल वोटों पर साधा सीधा निशाना, 6 राज्यों में होगा असर

hardik patel pti photo

Highlightsबिहार के अलावा उत्तर प्रदेश और झारखंड के कुर्मी अपने आपको पटेल की तरह ही मानते हैं। पाटीदार अनामत आंदोलन समिति की कमान संभालने के बाद चर्चा में आए हार्दिक पटेल की चाहत राष्ट्रीय स्तर पर कुर्मी नेता के तौर पर स्थापित होने की है।

लोकसभा चुनाव 2019 से पहले कांग्रेस को गुजरात में मजबूती मिलने जा रही है। गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने कांग्रेस पार्टी जॉइन कर लिया है। हार्दिक पटेल पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (PAAS) के संयोजक हैं। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक 12 मार्च को अहमदाबाद में हुई जिसमें पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में पटेल शामिल हुए।

बता दें कि राजद्रोह के आरोपों से घिरे और जमानत पर चल रहे हार्दिक पटेल ने घोषणा की थी कि वह गुजरात से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 के समय उनकी आयु 25 साल नहीं हुई थी इसलिए पटेल चुनाव नहीं पड़ पाए थे। 

21 साल की उम्र में पहला आंदोलन

पटेलों को आरक्षण देने की मांग को लेकर साल 2015 में हार्दिक पटेल ने अपने आंदोलन की शुरुआत की। इसी आंदोलन ने उन्हें बतौर नेता गुजरात में स्थापित किया। गुजरात के विभिन्न थानों में उन पर 56 केस दर्ज हैं। विसनगर में हुई रैली के बाद गुजरात के कुछ जगहों में हिंसा भड़क उठी थी जिसमें 14 लोगों की मौत हुई थी।

इसी मामले में पिछले साल विसनगर कोर्ट ने हार्दिक पटेल को दो साल की सजा सुनाई थी। इस मामले में अभी वो बेल पर बाहर हैं। उनके समर्थक ये मानते हैं कि हार्दिक के प्रभाव की वजह से ही भाजपा को गुजरात में चुनाव से पहले आनंदीबेन पटेल को सीएम पद से हटाना पड़ा था।

कुर्मियों का एकछत्र नेता बनने की चाहत

पाटीदार अनामत आंदोलन समिति की कमान संभालने के बाद चर्चा में आए हार्दिक पटेल की चाहत राष्ट्रीय स्तर पर कुर्मी नेता के तौर पर स्थापित होने की है। ये अंदाजा आप उनके बयानों से लगा सकते हैं। पिछले दो सालों से हार्दिक पटेल विभिन्न राज्यों के दौरे कर रहे हैं और कुर्मी समाज को एकजुट करने का आह्वान कर रहे हैं।

जुलाई 2017 में पटेल उत्तर प्रदेश के दिग्गज कुर्मी नेता दिवंगत सोनेलाल पटेल की जयंती पर इलाहाबाद भी गए थे। जहां उन्होंने कहा, उत्तर प्रदेश में हमारी संख्या भले ही 11 प्रतिशत हो लेकिन पूरे देश में हम 27 करोड़ से अधिक हैं। इसलिए हमें एक होकर अपने हक की लड़ाई लड़नी है। 

इसके अलावा जून 2018 में बिहार की राजधानी पटना पहुंचे पटेल ने कुर्मी, धानुक, कुशवाहा जाति के लोगों से एकजुट होने को कहा ताकि सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकें। गुजरात की पटेल जाति को बिहार की कुर्मी जाति के समान माना जाता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसी जाति से आते हैं। इस मौके पर उन्होंने कहा था कि वो पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में कुर्मी रैली करेंगे। बता दें कि 1994 में इसी मैदान में हुई एक रैली ने नीतीश कुमार को बतौर कुर्मी नेता स्थापित कर दिया था। इसके बाद लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की राहें जुदा हो गई थी।

6 राज्यों में कुर्मियों का व्यापक प्रभाव

बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश और झारखंड के कुर्मी अपने आपको पटेल की तरह ही मानते हैं। गुजरात के अलावा मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी पटेल रहते है। बिहार में कुर्मियों की आबादी करीब दो फीसदी है और उनके नेता नीतीश कुमार पिछले 14 सालों से मुख्यमंत्री हैं। 

उत्तर प्रदेश में कुर्मी समुदाय का एक वर्ग पिछले लोकसभा चुनाव और यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ जुड़ा हुआ है। उत्तर प्रदेश में बीजेपी के पास इस समुदाय से ओम प्रकाश सिंह, स्वतंत्र देव सिंह, संतोष गंगवार और फायरब्रांड नेता विनय कटिहार जैसे दिग्गज हैं। इसके अलावा पूर्वांचल में अच्छा-खासा प्रभाव रखने वाला अपना दल भी बीजेपी की सहयोगी पार्टी है। पिछले चुनाव में इस पार्टी के दो सांसद जीते लेकिन पूर्वांचल में बीजेपी को इसका जबरदस्त फायदा मिला। वहीं कांग्रेस के पास बतौर कुर्मी नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह हैं। 

वहीं गुजरात की 6 करोड़ 30 लाख की कुल आबादी में पाटीदारों का हिस्सा 14 प्रतिशत है और कुल वोटरों की बात करें तो उसमें पाटीदार 21 प्रतिशत हैं।  नवंबर 2015 में हुए गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों में पाटीदारों के आंदोलन के चलते ही सत्तारूढ़ बीजेपी को नुकसान झेलना पड़ा और इसी चुनाव से कांग्रेस को नई जान मिली। इसके बाद गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 में कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी। 2012 के चुनाव की तुलना में बीजेपी की 20 सीटें घटी जबकि कांग्रेस की 20 सीटें बढ़ गई।  

पिछले लोकसभा चुनाव में गुजरात में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था जबकि बीजेपी ने सभी 26 सीटों पर परचम लहराया। हार्दिक के आने के बाद कांग्रेस 2009 चुनाव के प्रदर्शन को दोहराना चाहेगी जब उसने 12 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। पटेल के कांग्रेस में आने का बाद उनका इस्तेमाल कांग्रेस जरूर गुजरात के बाहर भी बिहार-यूपी जैसे राज्यों करेगी।

वाराणसी-नालंदा से लड़ सकतें हैं चुनाव!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार भी उत्तर प्रदेश के वाराणसी संसदीय सीट से चुनावी मैदान में होंगे। एक अनुमान के अनुसार इस सीट पर करीब ढाई लाख कुर्मी वोटर हैं। वहीं बिहार का नालंदा संसदीय सीट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला है जहां कुर्मी बहुतायत हैं। कांग्रेस इन दोनों नेताओं को घेरने के लिए गुजरात के अलावा इन सीटों से भी हार्दिक पटेल को चुनाव लड़ी सकती है। बिहार-यूपी में हार्दिक पटेल की पहले की सक्रियता देखते हुए इस बात संभावना जताई जा रही है।

क्या ओबीसी राजनीति करेगी कांग्रेस?
 
हिन्दी पट्टी के तीन सूबों उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास अब भी ओबीसी का कोई बड़ा चेहरा नहीं है। कांग्रेस में अभी ओबीसी नेताओं में में अशोक गहलोत, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, भूपेश बघेल, डीके शिवकुमार आदि प्रमुख हैं। दिसंबर 2018 में कांग्रेस को छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा में जीत मिली।

कांग्रेस ने राजस्थान में माली समुदाय से आने वाले अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया जबकि छत्तीसगढ़ में पार्टी ने कुर्मी समुदाय से आने वाले भूपेश बघेल को सीएम की कमान सौंपी। वहीं मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री बने कमलनाथ ने सत्ता संभालते ही ओबीसी कार्ड खेला। कमलनाथ सरकार ने ओबीसी के लिए आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया है। 

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