लोकमत संपादकीयः मौसम के बिगड़ते मिजाज को समझें

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 7, 2019 09:52 AM2019-01-07T09:52:15+5:302019-01-07T09:52:15+5:30

चिंता की बात यह है कि ठंड कई जगहों पर पिछले कई दशकों के रिकॉर्ड तोड़ रही है. नागपुर में पिछले माह 29 दिसंबर को पारा 3.5 डिग्री तक गिर गया जो यहां के ज्ञात इतिहास में एक रिकॉर्ड है.

Lokmat Editorial: Understand the Worst Mood of the Weather | लोकमत संपादकीयः मौसम के बिगड़ते मिजाज को समझें

फाइल फोटो

भारी बर्फबारी से कश्मीर का संपर्क देश के अन्य हिस्सों से कट गया है और देश के कई हिस्से कड़कड़ाती ठंड से कांप रहे हैं. मौसम सर्दी का है और जाहिर है कि दिसंबर-जनवरी के महीने में कड़ाके की ठंड का पड़ना कोई असामान्य बात नहीं है. बल्कि चिंता तब होनी चाहिए जब ठंड न पड़े, क्योंकि सारे मौसम एक-दूसरे से जुड़े होते हैं और एक के अनियमित होने का मतलब है दूसरे का भी प्रभावित होना.

लेकिन चिंता की बात यह है कि ठंड कई जगहों पर पिछले कई दशकों के रिकॉर्ड तोड़ रही है. नागपुर में पिछले माह 29 दिसंबर को पारा 3.5 डिग्री तक गिर गया जो यहां के ज्ञात इतिहास में एक रिकॉर्ड है. 29 दिसंबर को ही धुलै में पारा 3.2 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया जिससे 27 साल का रिकॉर्ड टूट गया. हालत ऐसी हो गई थी कि बर्फ की बूंदें ओस में तब्दील हो गईं. दिल्ली, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा समेत देश के अनेक राज्यों में ठंड कहर बरपा रही है.

बात सिर्फ ठंड के मौसम की ही नहीं है. पिछले कुछ वर्षो से हर मौसम में अनियमितता देखने को मिल रही है. बारिश के मौसम में कहीं अकाल देखने को मिलता है तो कहीं अतिवृष्टि. गर्मी कई बार ऐसा कहर ढाती है कि मनुष्य तो फिर भी आधुनिक तकनीकों की मदद से अपनी सुरक्षा कर लेते हैं, लेकिन पशु-पक्षी मरने लगते हैं. आज किसानों की दुर्दशा की जो खबरें पढ़ने-सुनने को मिलती हैं, उसमें मौसम की अनियमितता का बहुत बड़ा हाथ है.

सरकारें कजर्माफी के जरिए किसानों को तात्कालिक राहत पहुंचाने की कोशिश करती हैं, लेकिन मौसम इस कोशिश पर हर साल पानी फेरता रहता है. हालांकि मौसम में होने वाले परिवर्तन के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हम इंसान ही हैं, लेकिन मुश्किल यह है कि प्रकृति के साथ हमारे द्वारा की जाने वाली छेड़छाड़ और फैलाए जाने वाले प्रदूषण के नतीजे तत्काल सामने नहीं आते हैं.

अब पूरी दुनिया पर्यावरण प्रदूषण के प्रति जागरूक हुई है और ऊर्जा के पर्यावरण पूरक स्नेतों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है. लेकिन प्रकृति को जो नुकसान हम पहुंचा चुके हैं, उसके दुष्परिणाम तो ङोलने ही होंगे. फिलहाल हम यही कर सकते हैं कि प्रकृति को और ज्यादा नुकसान पहुंचाने से बचें, फिर भले ही हमें अपनी सुख-सुविधाओं में कुछ कटौती करनी पड़े. 

Web Title: Lokmat Editorial: Understand the Worst Mood of the Weather

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