लोकसभा चुनाव: मध्यप्रदेश में ये हैं 6 सबसे अहम सीट जहां बीजेपी-कांग्रेस के दिग्गजों की प्रतिष्ठा होगी दांव पर
By राजेंद्र पाराशर | Published: March 21, 2019 06:16 PM2019-03-21T18:16:06+5:302019-03-21T18:16:06+5:30
लोकसभा चुनाव की दृष्टि से मध्यप्रदेश दोनों ही बड़े दलों भाजपा और कांग्रेस के लिए काफी अहमियत रखता है। 1984 के पहले (आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनाव को छोड़कर) जहां मध्यप्रदेश से अधिकांश सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी चुने जाते थे लेकिन बाद में यह मिजाज बदलता चला गया।
लोकसभा चुनाव के लिए भले ही भाजपा और कांग्रेस ने मध्यप्रदेश से प्रत्याशियों का ऐलान न किया हो लेकिन यह साफ है कि दोनों ही दलों के तमाम दिग्गज अपने पारंपरिक क्षेत्रों से मैदान में होंगे। इस कारण चुनावी मैदान में पार्टियों की ही नहीं बल्कि दिग्गजों की प्रतिष्ठा भी दांव पर होगी।
लोकसभा चुनाव की दृष्टि से मध्यप्रदेश दोनों ही बड़े दलों भाजपा और कांग्रेस के लिए काफी अहमियत रखता है। 1984 के पहले (आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनाव को छोड़कर) जहां मध्यप्रदेश से अधिकांश सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी चुने जाते थे लेकिन बाद में यह मिजाज बदलता चला गया। बदलते रंग और परिदृष्य में मध्यप्रदेश दोनों ही बड़े दलों के नेताओं की राजनीतिक भूमि रहा है। मध्यप्रदेश से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर सुषमा स्वराज, उमा भारती, शिवराज सिंह चौहान, अर्जुन सिंह, कमलनाथ, दिग्विजय सिंह शरीके दिग्गज चुनकर दिल्ली जाते रहे हैं। आज भी मध्यप्रदेश की सियासत में लगभग आधा दर्जन ऐसे राजनीतिक दिग्गज हैं जो चुनाव में अपनी उपस्थिति से चुनाव को दिलचस्प बना देते हैं।
इन दिग्गजों में मुख्यमंत्री कमलनाथ, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनकी पत्नी प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, कांतिलाल भूरिया और सुमित्रा महाजन जैसे नाम हैं। इन सभी के अपने-अपने लोकसभा क्षेत्र हैं, जहां से वे अपनी ताकत को बताते रहे हैं।
यह हैं वो 6 संसदीय क्षेत्र है:
छिंदवाड़ा: छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस का एक ऐसा गढ़ है जो आपातकात के बाद हुए चुनावों में भी अप्रभावित रहा था। इसके बाद 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां से इंदिरा गांधी ने अपने तीसरे बेटे के तौर पर कमलनाथ को मैदान में उतारा था। वे तब से लेकर अब तक (एक बार छोड़कर) छिंदवाड़ा से जीतकर जाते रहे हैं। कमलनाथ अब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए हैं इसलिए उनके स्थान पर अब उनके बेटे नकुलनाथ यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी होंगे। भाजपा से कौन मैदान में होगा फिलहाल तय नहीं है। भले ही नकुलनाथ चुनाव के मैदान में उतरे लेकिन प्रतिष्ठा तो कमलनाथ की ही दांव पर होगी।
इंदौर: इंदौर लोकसभा क्षेत्र से पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के तौर पर सुमित्रा महाजन ने चुनाव जीता था। वे पिछले कई चुनावों से इंदौर से ही जीतती आई हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में इंदौर की 8 विधानसभा क्षेत्रों में से 4 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज कराई थी इसलिए कांग्रेस उत्साहित है। इसके बावजूद भी सुमित्रा महाजन को अपने गढ़ इंदौर पर भरोसा है। वे इस बार भी इंदौर से भाजपा प्रत्याशी हो सकती हैं। उनके मुकाबले कांग्रेस की तरफ से स्थानीय नेताओं के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भी उतारे जाने के कयास लगाए जा रहे हैं।
गुना-शिवपुरी: इस लोकसभा क्षेत्र से पिछले कई चुनावों से ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव जीतते आ रहे हैं। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान, गुना शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस का प्रदर्शन कोई बहुत अच्छा नहीं रहा। 2018 के विधानसभा चुनाव में इस लोकसभा क्षेत्र के 8 सीटों में से कांग्रेस को 5 और भाजपा को 3 सीटों पर विजय मिली थी। इस कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुना के स्थान पर ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने के कयास हैं। विधानसभा चुनाव में इस लोकसभा क्षेत्र की 8 में से 7 विधानसभा क्षेत्रो में कांग्रेस ने जीत दर्ज कराई थी।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के पश्चिमी उत्तरप्रदेश के प्रभारी बनने के बाद माना जा रहा है कि वह अपने क्षेत्र में कम समय दे पाएंगे इसलिए वह ज्यादा सुरक्षित क्षेत्र ग्वालियर की तरफ रुख कर सकते हैं। वहीं उनके स्थान पर उनकी पत्नी प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया को गुना से प्रत्याशी बनाए जाने की बातें राजनीतिक क्षेत्रों में की जा रही है। प्रियदर्शिनी गुना-शिवपुरी में लगातार दौरे भी कर रही हैं। कहा जाता है कि सिंधिया जहां से भी चुनाव लड़े वह एकाध प्रसंग को छोड़कर जीतते ही रहे हैं।
गौरतलब है कि 1984 में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भिंड विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और वह पराजित हो गई थी। वसुंधरा की पराजय को छोड़कर सिंधिया राज परिवार से कभी कोई चुनाव नहीं हारा। इसलिए ग्वालियर चंबल क्षेत्र में सिंधिया जीत की गारंटी माने जाते हैं। क्या वह चमत्कार फिर दोहराया जाएगा, इस पर सबकी निगाह है।
राजगढ़: चंबल और मालवा के संधि क्षेत्र में बसा राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का लोकसभा क्षेत्र रहा है। 2014 के चुनाव में यहां से भाजपा के रोडमल नागर ने चुनाव जीता था, तब उनका मुकाबला कांग्रेस के नारायण सिंह आमलावे से था, लेकिन इस बार यहां से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर दिग्विजय सिंह के मैदान में उतरने की संभावना है। वैसे मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उन्हें कठिन सीट से चुनाव लड़ने की दावत दी है। जिसके चलते उनके भोपाल और इंदौर से भी चुनाव लड़ने के आकलन हैं। दिग्विजय सिंह अगर राजगढ़ से चुनाव लड़ते हैं राजगढ़ क्षेत्र राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सीटों में से एक हो जाएगी।
रतलाम-झाबुआ: राज्य के जनजातीय लोकसभा क्षेत्र रतलाम झाबुआ को लेकर एक मिथक है कि यहां से जीते कोई पर जीतता भूरिया ही है। दरअसल इस संसदीय क्षेत्र से दशकों से कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया और भाजपा के स्वर्गीय दिलीप सिंह भूरिया और बाद में उनकी पुत्री निर्मला भूरिया चुनाव लड़ते रहे हैं। दिलीप सिंह भूरिया भाजपा में आने के पहले यहां से कांग्रेस के सांसद भी रहे हैं। यह क्षेत्र से समाजवादी नेता मामा बालेश्वर दयाल की कर्मभूमि रहा है इस कारण यहां आज भी समाजवादी आंदोलन की जड़ें काफी गहरी हैं। कांग्रेस के गढ़ में तब्दील हो चुके झाबुआ पर भाजपा की जड़ें मजबूत करने के लिए संघ के साथ ही भाजपा का संगठन यहां लगातार काम करता रहा है।
इसलिए 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर दिलीप सिंह भूरिया ने अपनी जीत दर्ज कराई थी। जीत के कुछ दिनों बाद ही दिलीप सिंह भूरिया की मृत्यु के बाद हुए उप चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के तौर पर उनकी पुत्री निर्मला भूरिया और कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर कांतिलाल भूरिया के बीच मुकाबला हुआ था जिसमें कांतिलाल भूरिया ने जीत दर्ज कराई थी। हाल ही में होने जा रहे लोकसभा चुनाव में यह तो तय है कि कांग्रेस की तरफ से कांतिलाल भूरिया ही प्रत्याशी होंगे। भाजपा निर्मला भूरिया पर दांव लगाती है यह किसी और पर यह देखने लायक होगा।
विदिशा: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को लोकसभा भेज चुका विदिशा संसदीय क्षेत्र भाजपा के गढ़ में तब्दील हो चुका है। सुषमा स्वराज ने इस बार चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है इसलिए उनके स्थान पर भाजपा में प्रत्याशी बनने की होड़ लगी है। वैसे पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पत्नी साधना सिंह यहां से भाजपा प्रत्याशी की प्रबल दावेदार हैं। वहीं कांग्रेस अपने लिए एक प्रभावी प्रत्याशी की तलाश में है।