लोक सभा चुनावः बड़ा सवाल- गुजरात में पटेल मतदाता किसका देंगे साथ?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: March 7, 2019 03:43 PM2019-03-07T15:43:12+5:302019-03-07T16:05:21+5:30
पीएम मोदी वर्ष 2001 में जब पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने केशुभाई पटेल का ही स्थान लिया था. पटेल ने 2012 में बीजेपी से इस्तीफा दे कर गुजरात परिवर्तन पार्टी का गठन किया था, लेकिन उन्हें अपेक्षित कामयाबी नहीं मिली, लिहाजा बाद में गुजरात परिवर्तन पार्टी का बीजेपी के साथ विलय कर दिया गया.
इस वक्त गुजरात में दो बड़ी चर्चाएं गर्म हैं, एक- पीएम मोदी का गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के चरणस्पर्श करना, और दो- युवा नेता हार्दिक पटेल के कांग्रेस में जाने और लोस चुनाव लड़ने की संभावना? इन दोनों चर्चाओं के केन्द्र में कहीं-न-कहीं गुजरात के पटेल मतदाताओं के सियासी रूख का गणित है!
दरअसल, अपने गुजरात दौरे के दौरान पीएम मोदी अडालज पहुंचे थे, जहां आयोजित समारोह के दौरान मंच पर गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल से मिले और पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया.
पीएम मोदी वर्ष 2001 में जब पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने केशुभाई पटेल का ही स्थान लिया था. पटेल ने 2012 में बीजेपी से इस्तीफा दे कर गुजरात परिवर्तन पार्टी का गठन किया था, लेकिन उन्हें अपेक्षित कामयाबी नहीं मिली, लिहाजा बाद में गुजरात परिवर्तन पार्टी का बीजेपी के साथ विलय कर दिया गया.
याद रहे, जहां पीएम मोदी, केशुभाई पटेल को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं, वहीं पीएम मोदी के प्रमुख विरोधी हार्दिक पटेल, केशुभाई पटेल को अपना मार्गदर्शक मानते हैं. हार्दिक पटेल ने अपने आरक्षण आंदोलन के दौरान भी कई बार केशुभाई से मुलाकात की थी.
वैस तो हार्दिक पटेल कांग्रेस के साथ है, लेकिन जल्दी ही उनकी कांग्रेस में आधिकारिक एंट्री हो सकती है. यही नहीं, वे बतौर कांग्रेस उम्मीदवार गुजरात में लोस चुनाव भी लड़ सकते हैं.
गुजरात में लोकसभा की कुल 26 सीटे हैं, जिन सभी सीटों पर 2014 में बीजेपी ने जीत दर्ज करवाई थी, लेकिन बदले राजनीतिक हालातों में बीजेपी के लिए इस बार लोस चुनाव में 2014 दोहराना बेहद मुश्किल है.
उधर, कांग्रेस भी पीएम नरेंद्र मोदी के गृहराज्य में अधिक-से-अधिक सीटें जीतना चाहती है और यदि ऐसा होता है, तो इससे केन्द्र में पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर सियासी दबाव बढ़ जाएगा.
गुजरात पाटीदार समुदाय, बीजेपी का प्रबल समर्थक रहा है और उसकी सशक्त भूमिका के चलते ही गुजरात में बीजेपी की सियासी पकड़ बेहद मजबूत रही है, लेकिन पाटीदार आरक्षण आंदोलन के बाद यह सियासी समीकरण बदल गया है. जहां हार्दिक पटेल के कारण कांग्रेस की स्थिति मजबूत हो रही है, वहीं पीएम मोदी भी इसी प्रयास में हैं कि पाटीदार समुदाय को फिर से बीजेपी के करीब लाया जाए.
गुजरात के चुनाव में पटेल मतदाताओं की बहुत बड़ी भूमिका रही है. वर्ष 2014 तक इस भूमिका की बड़ी चर्चा इसलिए नहीं थी, कि गुजरात में बीजेपी का राजनीतिक पलड़ा बहुत भारी था, लेकिन पिछले गुजरात विस चुनाव में युवा हार्दिक पटेल के आरक्षण आंदोलन का लाभ कांग्रेस को मिला और लंबे समय बाद गुजरात में बीजेपी के लिए गंभीर राजनीतिक चुनौती खड़ी हो गई.
गुजरात की कुल जनसंख्या में करीब 15 प्रतिशत आबादी पटेलों की है, जो संपन्न और प्रभावी वर्ग तो है ही, राजनीतिक प्रेरक वर्ग भी है. लोस चुनाव के पहले बीजेपी यदि पटेल मतदाताओं को मनाने में कामयाब नहीं रही तो गुजरात की कम-से-कम एक तिहाई लोस सीटों पर प्रश्नचिन्ह जरूर लग जाएगा?