जमुई लोकसभा सीट: 'M-Y' एकजुट हो गए तो चिराग के लिए होगी राह मुश्किल, RLSP और LJP में है सीधा मुकाबला

By एस पी सिन्हा | Published: April 11, 2019 06:02 AM2019-04-11T06:02:45+5:302019-04-11T06:02:45+5:30

चिराग पासवान रामविलास पासवान के बेटे हैं. चिराग ने फिल्म इंडस्ट्री छोड युवा काल में सियासत में कदम रखा और जमुई से जीतकर लोकसभा पहुंचे.

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जमुई लोकसभा सीट: 'M-Y' एकजुट हो गए तो चिराग के लिए होगी राह मुश्किल, RLSP और LJP में है सीधा मुकाबला

Highlightsजमुई सीट पर पहली बार 1962 में चुनाव हुआ था2014 के चुनाव में भाजपा की सहयोगी लोजपा के चिराग पासवान ने राजद के सुधांशु शेखर भास्कर को हराया.

केन्द्रीय मंत्री व लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान के बेटे और लोजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान इस बार फिर जमुई (सुरक्षित सीट) से ही चुनावी मैदान में हैं. उनके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसी हस्तियों ने उनके लिए चुनावी सभाएं भी किए हैं. बावजूद इसके जमीन पर सामाजिक समीकरण के लिहाज से इस बार चिराग पासवान के लिए 2014 जैसी स्थिति बनती नहीं दिख रही है. यहां प्रथम चरण में कल 11 अप्रैल को मतदान होना है.

वहीं, मोदी लहर कमजोर पडने के साथ एनडीए समर्थक जातियों में विभाजन और महागठबंधन को समर्थन करने वाली जातियों की गोलबंदी इस बार चिराग पासवान के लिए राह कठिन कर रहे हैं. वैसे पिछले चुनाव के आंकडें को देखें तो फिल्मी दुनिया से सीधे राजनीति में आए चिराग पासवान ने 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में अपनी नैया पार लगा ली थी. उन्होंने राजद के सुधांशु कुमार को लगभग 80 हजार वोटों से हराया था, लेकिन इसबार की स्थिति अलग है. जमुई लोकसभा सीट सुरक्षित सीट है.

2014 में यहां से सांसद चुने गए एलजेपी के चिराग पासवान. चिराग पासवान रामविलास पासवान के बेटे हैं. चिराग ने फिल्म इंडस्ट्री छोड युवा काल में सियासत में कदम रखा और जमुई से जीतकर लोकसभा पहुंचे. पिछले लोकसभा चुनाव में तो उन्होंने आसानी से यहां जीत दर्ज कर ली थी, मगर आसन्न लोकसभा चुनाव में लोजपा और विपक्षी दलों के महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के बीच कडा मुकाबला माना जा रहा है. 

चिराग पासवान और भूदेव चौधरी के बीच सीधा मुकाबला

नक्सल प्रभावित जमुई सीट का महत्व ऐसे तो बिहार की आम लोकसभा सीटों की तरह देखा जाता रहा है, पर चुनाव में लोजपा के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के पुत्र और निर्वतमान सांसद चिराग पासवान के एक बार फिर चुनाव मैदान में रहने और महागठबंधन की ओर से रालोसपा के भूदेव चौधरी को मुकाबले में उतरने से मुकाबला दिलचस्प बन गया है. इस बार हालांकि चुनाव में बिहार में राजनीतिक समीकरण बदले हैं. पिछले चुनाव में जहां लोजपा और रालोसपा राजग के घटक दल में थी, वहीं जदयू ने अपने बलबूते चुनाव लडा था. इस बार लोजपा और जदयू राजग का हिस्सा हैं, लेकिन रालोसपा अब राजद नीत महागठबंधन का घटक बन गई है. तालमेल के तहत राजग में जमुई सीट लोजपा के पास ही है, लेकिन महागठबंधन में यह रालोसपा के खाते में गई है.

जानिए क्या कहती है जातीय समीकरण

बिहार के अन्य लोकसभा क्षेत्रों की तरह इस सीट पर भी जातीय समीकरण से चुनाव परिणाम प्रभावित होते रहे हैं. हालांकि लोजपा के नेता और राजग प्रत्याशी चिराग इसे सही नहीं बताते. उन्होंने कहा कि मुझे सभी जातियों का समर्थन मिल रहा है. पांच साल में मैंने इस क्षेत्र में कई विकास के कार्य करवाए हैं. विकास कार्य को लेकर ही हमलोग मतदाताओं के बीच जा रहे हैं और लोग समर्थन भी दे रहे हैं. 80 प्रतिशत से ज्यादा कृषि पर आधारित रहने वाले लोगों का यह संसदीय क्षेत्र भले ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो, पर सभी प्रत्याशियों की नजर सवर्ण मतदाताओं को आकर्षित करने में लगी है. 

जातीय समीकरण के लिहाज से इस सीट पर सबसे अधिक यादव जाति के मतदाता हैं. 3.5 लाख यादव और 2.5 लाख मुस्लिम वोटर हैं. दलित और महादलित की आबादी लगभगग 2.5 लाख है तो सवर्णों की संख्या 2 लाख है. वहीं पिछडी जातियां 4 लाख के करीब हैं. अगर 'एमवाय' (मुस्लिम-यादव) एकजुट हो गए तो चिराग के लिए राह मुश्किल दिख रही है.

जमुई संसदीय क्षेत्र की समस्याएं

जंगल, पहाड, और नदियों से घिरे जमुई संसदीय क्षेत्र में ऐसे तो कई क्षेत्रीय समस्याएं हैं, मगर इन समस्याओं की जड में नक्सलियों की पैठ को मुख्य कारण माना जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि नक्सलियों की पैठ के कारण जहां इस क्षेत्र में विकास कार्य ठप हो जाते रहे हैं, वहीं लोगों का पलायन बदस्तूर जारी है. इस क्षेत्र में 11 अप्रैल को पहले चरण के तहत मतदान होना है.

जमुई जिला के बारे में 

बिहार का जमुई जिला मुंगेर प्रमंडल का एक प्रमुख केंद्र है. ये जिला ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से भी काफी प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने इसी जिले के उज्जिहवलिया नदी के तट पर स्थित जूम्भिकग्राम में दिव्य ज्ञान प्राप्त किया था. जमुई का ऐतिहासिक महत्व गुप्त, पाल और चन्देल शासकों से भी जुड़ा हुआ है. इस स्थान का संबंध महाभारत काल से भी जोडा जाता है. जमुई पटना से करीब 161 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

जमुई लोकसभा सीट का इतिहास

जमुई लोकसभा सीट तीन जिलों जमुई, मुंगेर और शेखपुरा के इलाकों को मिलाकर बना है. इसलिए समय-समय पर परिसीमन के साथ ही इस सीट का अस्तित्व भी बनते-बिगडते रहा है. जमुई सीट पर पहली बार 1962 में चुनाव हुआ था. 1962 और 1967 के चुनाव में जमुई सीट पर कांग्रेस जीती. इसके बाद 1971 में सीपीआई के भोला मांझी यहां से चुनाव जीतने में कामयाब रहे. फिर इस सीट के इलाके अलग-अलग सीटों में शामिल कर लिए गए. इसके बाद 2002 के परिसीमन के बाद 2008 में जमुई सीट फिर से अस्तित्व में आई. 2009 के चुनाव में जदयू के भूदेव चौधरी ने राजद के श्याम रजक को 30 हजार वोटों से हराया. 2014 के चुनाव में भाजपा की सहयोगी लोजपा के चिराग पासवान ने राजद के सुधांशु शेखर भास्कर को हराया.

वर्तमान स्थिति

जमुई सुरक्षित सीट पर वोटरों की कुल संख्या 1,404,016 है. इसमें से महिला मतदाता 651,501 हैं जबकि 752,515 पुरुष मतदाता हैं. जमुई संसदीय क्षेत्र के तहत विधानसभा की 6 सीटें आती हैं- तारापुर, शेखपुरा, सिकंदरा, जमुई, झांझा और चकई. इनमें से 4 विधानसभा सीटें जमुई जिले में आती हैं. जबकि एक मुंगेर और एक शेखपुरा जिले में. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इन 6 सीटों में से 2-2 सीटें जदयू-राजद के खाते में जबकि 1-1 सीट भाजपा और कांग्रेस के खाते में गई थी.

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