विश्वामित्र की तपोभूमि रही बक्सर लोकसभा सीट पर जीत हार के लिए भाजपा और राजद के बीच जंग जारी, अश्विनी चौबे की प्रतिष्ठा दांव पर
By एस पी सिन्हा | Published: May 14, 2019 01:51 PM2019-05-14T13:51:18+5:302019-05-14T13:51:18+5:30
बक्सर लोकसभा सीट पर लड़ाई आमने-सामने की है. एनडीए की ओर से भाजपा के अश्विनी कुमार चौबे और महागठबंधन के राजद प्रत्याशी जगदानंद सिंह के बीच सीधा मुकाबला है.
बिहार में विश्वामित्र की तपोभूमि रही बक्सर लोकसभा सीट पर जीत के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हुंकार भरी और भाजपा प्रत्याशी केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के जीत के लिए लोगों से अपील की. हालांकि बक्सर की इस सीट पर इस बार जातीय समीकरण को साधना ही जीत का सबसे बड़ा मंत्र है. इसके कारण मतदाता चुप हैं. जबकि, चुनाव में राष्ट्रीय और विकास के मुद्दे जाति की लहरों की उफान में डूब-उतरा रहा है.
बक्सर लोकसभा सीट पर लड़ाई आमने-सामने की है. एनडीए की ओर से भाजपा के अश्विनी कुमार चौबे और महागठबंधन के राजद प्रत्याशी जगदानंद सिंह के बीच सीधा मुकाबला है. जगदानंद सिह को यहां के लोग बिजूरिया बाबा के नाम से भी जानते हैं. वैसे चुनावी मैदान में बसपा और निर्दलीय प्रत्याशी भी डटे हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और राजद के बीच ही दिख रहा है. भाजपा जहां अपनी मौजूदा सीट बचाने की जद्दोजहद कर रही है, वहीं राजद भाजपा विरोध के मतों के बिखराव रोकने का प्रयास कर रहा. भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सभा आयोजित की गई थी.
जबकि, सोमवार को राजद नेता तेजस्वी यादव ने राजद प्रत्याशी जगदानंद सिंह के पक्ष में सभा कर यादव और मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट रहने की अपील की. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार अश्विनी चौबे को तीन लाख 19 हजार वोट मिले थे. जबकि दूसरे स्थान पर रहे जगदानंद सिंह को एक लाख 86 हजार से अधिक वोट मिले थे.
वहीं, 1996 के चुनाव में यहां पहली बार कमल खिला और लाल मुनि चौबे यहां के सांसद चुने गए और वह लगातार चार बार यहां से सांसद रहे यानी कि 1996 से लेकर 2004 तक इस सीट पर भाजपा का ही राज रहा, लेकिन साल 2009 के चुनाव में भाजपा से ये सीट राष्ट्रीय जनता दल(राजद) के जगदांनद सिंह ने छीन ली और वह यहां से सांसद बने. लेकिन साल 2014 के चुनाव में एक बार फिर से बाजी पलटी और भाजपा ने यहां बड़ी जीत दर्ज की और अश्विनी चौबे यहां से जीतकर लोकसभा पहुंचे. बक्सर को सवर्ण बाहुल्य सीट कहा जाता है और ब्राह्मण वोटरों की अच्छी संख्या है. लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में लोगों ने अधिकांशत: किसी सवर्ण या ब्राह्मण उम्मीदवार को जिताया है और अश्विनी चौबे बाहरी होने के बावजूद इस सीट से सांसद बन पाए. इस बार के हालात पिछले चुनाव से अलग है, इस चुनाव में भाजपा-जदयू साथ-साथ हैं, जिसकी वजह से राजद की परेशानी बढ़ गई है तो वहीं भाजपा की जीत इस बार केवल जातीय समीकरण पर नहीं बल्कि विकास फैक्टर भी निर्भर करेगी क्योंकि भाजपा और अश्निनी चौबे ने विकास के ही नाम पर यहां की जनता से वोट मांग रहे हैं.
बक्सर का इतिहास
बक्सर का इतिहास दिलचस्प रहा है. यहां प्रथम युद्ध मुगल सम्राट हुमायूं और अफगान शासक शेरशाह सूरी के बीच 26 जून, 1539 को बक्सर स्थित चौसा के मैदान में लड़ा गया था. लेकिन अब यहां लोकसभा चुनाव 2019 की लड़ाई केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे और गठबंधन उम्मीदवार के जगदानंद सिंह के बीच लड़ी जा रही है.
बिहार के पश्चिम भाग में गंगा नदी के किनारे स्थित बक्सर शहर का सियासी और धार्मिक महत्व रहा है, यहां की अर्थ-व्यवस्था मुख्य रूप से खेतीबारी पर आधारित है. प्राचीन काल में बक्सर का नाम 'व्याघ्रसर' था क्योंकि उस समय यहां पर बाघों का निवास हुआ करता था. बक्सर में गुरु विश्वामित्र का आश्रम था. यहीं पर राम और लक्ष्मण का प्रारम्भिक शिक्षण-प्रशिक्षण हुआ था.
बक्सर की लड़ाई शुजाउद्दौला और कासिम अली खां की तथा अंग्रेज मेजर मुनरो की सेनाओं के बीच 1764 में लड़ी गई थी, जिसमें अंग्रेजों की विजय हुई. इस युद्ध में शुजाउद्दौला और कासिम अली खां के लगभग 2,000 सैनिक डूब गए या मारे थे.
बक्सर स्थित एक गांव विशेष रूप से प्राचीन ब्रह्मेश्वर मंदिर के लिए जाना जाता है. यह मंदिर मोहम्मद गजनवी के समय से यहां स्थित है. मुगल शासक अकबर के समय में राजा मान सिंह ने इस मंदिर का पुन: निर्माण करवाया था.
यह एक व्यापारिक नगर भी है. बक्सर में बिहार का एक प्रमुख कारागृह है, जिसमें अपराधी लोग कपड़ा आदि बुनते और अन्य उद्योगों में लगे रहते हैं. पहले यहीं से निर्मित रस्सी से फांसी की सजा दी जाती थी.
यही नहीं कार्तिक पूर्णिमा को यहां बड़ा मेला लगता है, जिसमें लाखों व्यक्ति इकट्ठे होते हैं. यहीं पर 'तड़का वध' की भी कहानी अंकित है.
बताया जाता है कि 11 साल के लंबे आंदोलन के बाद 17 मार्च 1991 को बक्सर को जिला बनाया गया था. इस दौरान कई लड़ाई लड़ी गईं. लड़नेवाले उत्साही लोगों में करीब 18 प्रमुख लोगों की मौत हो गई थी. 1980 से लेकर 1990 तक में बक्सरवासियों ने 5 बार बक्सर बंद कराया गया, जो अभूतपूर्व रहा और फिर बक्सर को जिला का दर्जा मिल गया.
बक्सर लोकसभा सीट के बारे में
बक्सर लोकसभा सीट से कमल सिंह यहां से पहले सांसद थे, जिन्होंने साल 1952 का पहला आम चुनाव निर्दलीय रूप से लड़ा था. यहां आजादी के बाद हुए आम चुनावों में करीब तीन दशक तक कांग्रेस पार्टी का इस सीट पर एकतरफा राज्य रहा क्योंकि 1952 से 1984 तक के चुनाव में सिर्फ एक बार ऐसा हुआ जब 1977 में भारतीय लोकदल के टिकट पर रामानंद तिवारी चुनाव जीते थे. रामानंद तिवारी भोजपुर इलाके के कद्दावर समाजवादी नेता थे और कई बार विधायक व बिहार सरकार में मंत्री भी रहे थे. 1989 के लोकसभा चुनाव में फिर कांग्रेस पत्ता यहां से बिल्कुल साफ हो गया. 1989 में इस सीट से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के तेज नारायण सिंह चुनाव जीते थे.
राजद ने इस बार कुशवाहा, यादव, दलित और मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद करने की कोशिश की है. राजद का मानना है कि 2014 के चुनाव में भाजपा विरोध में पड़े वोट एक होते तो अश्विनी चौबे की डेढ लाख से अधिक मतों से पराजय होती.
यही कारण है कि भाजपा जहां सवर्ण मतदाताओं के साथ-साथ अतिपिछड़ी जाति के वोटरों को भी लुभाने की कोशिश कर रही है. वहीं, राजद स्थानीय वनाम बाहरी का नारा दे रहा है. ऐसे में जैसे-जैसे चुनाव की तिथि करीब आती जा रही है, मतदाता खुलने लगे हैं. मुस्लिम व यादव राजद के पक्ष में नजर आ रहे हैं. जबकि राजपूत वोटरों में अभी बिखराव दिख रहा है, पर समाज और बिरादरी को लेकर एक बहस भी चल रही है. भाजपा के प्रत्याशी अश्विनी कुमार चौबे विकास के नाम पर 2019 लोकसभा चुनाव की वैतरणी को पार करना चाहते हैं. इस बार कुल 15 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं.
बक्सर लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा सीटों में से चार एनडीए के कब्जे में हैं. ब्रह्मपुर, राजपुर, बक्सर, रामगढ़, डुमरांव और दिनारा विधानसभा सीट हैं, जिनमें तीन सीट जदयू के हिस्से में है. ये सीटें है दिनारा, डुमरांव और राजपुर. जबकि एक सीट बीजेपी की है, वह रामगढ विधानसभा है. जबकि बक्सर विधानसभा सीट कांग्रेस की और ब्रह्मपुर विधानसभा सीट राजद के खाते में है.
बक्सर लोकसभा क्षेत्र धान के कटोरा के रूप में जाना जाता है. मगर यहां के किसानों का दर्द कोई नहीं सुनता है. यहां के किसानों से वादा करके विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के लोग संसद में पहुंचे. मगर किसानों के उपज का वाजिब मूल्य दिलाने में नाकाम रहे. पहले यहां डुमरांव में चीनी मिल हुआ करती थी, मगर अब बंद है. किसी ने फिर इस चीनी मिल को चालू कराने की कोशिश नहीं की.