लोकसभा चुनाव 2019ः विधानसभा चुनाव में हारे हुए सवाल को चुनाव 2019 में भी उठा रही है भाजपा, क्या फायदा होगा?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: January 19, 2019 03:45 PM2019-01-19T15:45:09+5:302019-01-19T15:45:09+5:30
लोस चुनाव में यदि भाजपा अकेले दम पर बहुमत लेने की स्थिति में हैं तो पीएम फेस पर रिस्क ले सकती है, लेकिन यदि गठबंधन सरकार बनती है तो यह एलान विस चुनाव की तरह ही भारी पड़ सकता है.
राजस्थान विस चुनाव के दौरान पीएम नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सहित तमाम भाजपा नेताओं ने यह सवाल उठाया था कि भाजपा तो वसुंधरा राजे के सीएम फेस के साथ चुनाव मैदान में है, लेकिन कांग्रेस का सीएम उम्मीदवार कौन? यही सवाल एमपी और छत्तीसगढ़ में भी इस मकसद से उठाया गया था कि जनता बगैर सीएम फेस के कांग्रेस को नकार देगी, लेकिन हुआ उल्टा- एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मतदाताओं ने भाजपा को ही हरा दिया.
अब ऐसा ही सवाल भाजपा नेता लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भी उछाल रहे हैं कि विपक्ष में पीएम का उम्मीदवार कौन? इस प्रश्न पर बड़ा सवाल यह है कि क्या विस चुनाव का हारा हुआ सवाल, लोस चुनाव में जीत पाएगा?
विस चुनाव के दौरान यह तथ्य उभर कर आया कि भाजपा समर्थक भले ही पार्टी से नाराज नहीं हों, घोषित सीएम उम्मीदवारों से सहमत हों यह जरूरी नहीं, लिहाजा सीएम फेस का एलान होते ही पार्टी का ही एक खेमा उदासीन हो गया और मामुली प्राप्त वोट प्रतिशत के अंतर से भाजपा के हाथ से एमपी, राजस्थान की सत्ता निकल गई.
बीजेपी का 2014 चुनावी मंत्र
पीएम फेस का सवाल अपनी जगह है, लेकिन यह सवाल भाजपा के लिए ही राजनीतिक संकट खड़ा कर सकता है, क्योंकि सियासत में कोई एक ही फार्मूला हमेशा सफल रहे, यह जरूरी नहीं है.
वर्ष 2014 का भाजपा की जीत का फार्मूला- पीएम फेस नरेन्द्र मोदी, कामयाब रहा था, क्योंकि गुजरात के सफल मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के वादों और इरादों पर देश के मतदाताओं को भरोसा था, लेकिन अब मतदाता पीएम मोदी के पांच साल की सरकार देख चुके हैं. पीएम मोदी के वादों और इरादों पर से जनता का भरोसा कमजोर हुआ है, लिहाजा नए समर्थक तो तैयार हुए नहीं हैं, पुराने समर्थकों के साथ-साथ भाजपा के भीतर भी मोदी-शाह के विरोधी बढ़े हैं. इसलिए, विपक्ष के पीएम फेस का सवाल तो बेमतलब है ही, लोस चुनाव में पीएम नरेन्द्र मोदी फेस भी भाजपा का फायदा करने के बजाय नुकसान कर सकता है?
दरअसल, जब तक किसी सियासी दल के पास एकल बहुमत की संभावनाएं नहीं हों तब तक पीएम उम्मीदवार घोषित करना पाॅलिटिकल रिस्क है.
लोस चुनाव में यदि भाजपा अकेले दम पर बहुमत लेने की स्थिति में हैं तो पीएम फेस पर रिस्क ले सकती है, लेकिन यदि गठबंधन सरकार बनती है तो यह एलान विस चुनाव की तरह ही भारी पड़ सकता है.
वैसे पीएम के मुद्दे पर सबसे ज्यादा सुरक्षित राहुल गांधी हैं, क्योंकि वे अपनी पार्टी के निर्विरोध नेता हैं और कांग्रेस के नेतृत्व में केन्द्र सरकार का गठन होता है तो कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी ही पीएम उम्मीदवार होंगे, लेकिन भाजपा के नेतृत्व में यदि गठबंधन सरकार बनती है तो नरेन्द्र मोदी के अलावा नितिन गड़करी, राजनाथ सिंह आदि के नाम भी उभर कर सामने आ सकते हैं, क्योंकि तब सहयोगी दलों की राय ज्यादा महत्वपूर्ण होगी.
लोकसभा चुनाव में इस वक्त 2014 की तरह देश में कोई सबसे उपर सुपर लीडर नहीं है, लिहाजा पीएम फेस पर चुनाव लड़ना किसी भी सियासी पक्ष के लिए पाॅलिटिकल रिस्क है!