लोकसभा चुनाव 2019: वामपंथियों का गढ़ रहे बेगूसराय में कन्हैया कुमार पर निगाहें, वापसी की जुगत में एनडीए
By एस पी सिन्हा | Published: February 24, 2019 05:07 PM2019-02-24T17:07:29+5:302019-02-24T17:07:29+5:30
बिहार की बेगूसराय लोकसभा सीट का पूरा चुनावी गणित। जानिए किस पार्टी का रहेगा दबदबा, कौन-से समीकरण बिगाड़ेंगे कन्हैया कुमार का खेल।
बिहार की बेगूसराय लोकसभा सीट इन दिनों चर्चा में है. यहां जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को बतौर भाकपा उम्मीदवार उतारा गया है. बेगूसराय कभी वामपंथियों का गढ़ हुआ करता था और यहां भूमिहारों की संख्या काफी ज्यादा है जो किंगमेकर साबित होती रही है. बेगूसराय से वर्तमान में सांसद भाजपा के वरिष्ठ नेता भोला सिंह रहे. 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद उम्मीदवार तनवीर हसन दूसरे तथा भाकपा उम्मीदवार राजेंद्र प्रसाद सिंह, जदयू के समर्थन से तीसरे स्थान पर रहे थे. बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र बिहार के 40 संसदीय इलाकों में एक है. बेगूसराय पूर्वी बिहार में पड़ता है. इस संसदीय क्षेत्र में सात विधानसभा क्षेत्र आते हैं. 2014 में डॉ. भोला सिंह भाजपा के टिकट पर यहां से विजयी हुए थे जिनका इसी साल अक्टूबर में निधन हो गया. उनसे पहले जनता दल यूनाईटेड (जदयू) के डॉ. मोनाजिर हसन सांसद थे. 2004 में भी जदयू जीती थी और राजीव रंजन सिंह सांसद बने थे.
बेगूसराय लोकसभा सीट का जातीय समीकरण
बेगूसराय लोकसभा सीट पर भूमिहारों का शुरू से ही दबदबा रहा है. कन्हैया कुमार भी इसी जाति से हैं. यहां भूमिहार के अलावा कोइरी, यादव, मुसलमान और अनुसूचित जाति के भी वोट हैं. ओबीसी में कोइरी की संख्या सबसे ज्यादा है. वहीं अनुसूचित जातियों की संख्या भी ठीक-ठाक है. भूमिहारों के दम पर यहां से वाम दलों के टिकट पर सांसद कम विधायक ज्यादा चुने गए हैं. मटिहानी, बेगूसराय और तेघरा विधानसभा सीट में भूमिहारों का आज भी वर्चस्व कायम है.
वामपंथियों का पुराना गढ़ है बेगूसराय
पहली बार 1967 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के टिकट पर वाई शर्मा बेगूसराय से सांसद चुने गए थे. हालांकि, उसके बाद कई भूमिहार सांसद यहां से कांग्रेस, भाजपा, जदयू के टिकट से जीतकर संसद में पहुंच चुके हैं. पहले बेगूसराय में वामदलों का प्रभाव इतना हावी था कि 1955 तक बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र के सातों विधानसभा सीटों में से पांच पर वामपंथी पार्टी का कब्जा था. भूमिहारों की वजह से ही बेगूसराय वामपंथ का गढ बना था और उन्हीं के कारण वामपंथ का गढ भी ढह गया.
दरअसल, 60 के दशक में शोषित भूमिहार किसानों ने सामंत भूमिहारों के खिलाफ हथियार उठा लिए थे. इसके बाद बेगूसराय खून से लथपथ हो गया था. वहीं 70 के दशक में कामदेव सिंह का दबदबा था और उसके आदमियों ने वामपंथी नेता सीताराम मिश्र की हत्या कर दी थी. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने बिहार में सवर्णों के खिलाफ मुहिम चलाई थी. बिहार के कई हिस्सों में नरसंहार हुए थे जिसमें कई लोगों की जानें भी गई थीं और इस नरसंहार में रणवीर सेना भी शामिल थी. इससे तंग आकर कई भूमिहारों का वामपंथ से मोहभंग हो गया. 2000 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव ने सीपीआई और सीपीएम से गठबंधन कर लिया जिसके बाद से ही वामपंथ की वहां कमर टूट गई और वामपंथ का प्रभाव खत्म हो गया.
बेगूसराय में होगा दिलचस्प मुकाबला
बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र में कुल 17,78,759 मतदाता हैं जिसमें महिला मतदाता 8,28,874 जबकि पुरुष मतदाताओं की संख्या 9,49,825 है. 2014 लोकसभा चुनाव में बेगूसराय से भाजपा के भोला सिंह ने जीत दर्ज की थी, लेकिन अक्टूबर 2018 में भोला सिंह के निधन के बाद से यह सीट खाली है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेगूसराय की चुनावी यात्रा की और यहां कई योजनाओं की आधारशिला रखी. भोला सिंह के निधन के बाद भाजपा में नए उम्मीदवार के नाम पर मंथन चल रहा है. उधर, भाजपा के खिलाफ कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी लगभग तय हो गई है. यानी यहां एक दिलचस्प जंग देखने को मिल सकती है.
बेगूसराय में पिछले चुनावों का हाल
2014 के लोकसभा चुनाव में डॉ. भोला सिंह ने आरजेडी के प्रत्याशी तनवीर हसन को हराया था. डॉ. सिंह को 4,28,227 वोट मिले जबकि हसन को 3,69,892 वोट हासिल हुए. डॉ. सिंह को 39.72 प्रतिशत और हसन को 34.31 प्रतिशत वोट मिले. इस इलाके में भाकपा की अच्छी पकड़ है. 2014 के चुनाव में भाकपा प्रत्याशी राजेंद्र प्रसाद सिंह तीसरे स्थान पर रहे थे. उन्हें 1,92,639 वोट मिले थे. वोट प्रतिशत की बात करें तो भाकपा को 17.87 प्रतिशत मत हासिल हुए थे. इस चुनाव में चौथे और पांचवें स्थान पर निर्दलीय रहे. छठे स्थान पर नोटा रहा जिसके तहत 26,335 वोट पडे. कुल वोटों का 2.47 प्रतिशत नोटा के हिस्से में आया.
इस चुनाव में कुल 60.60 प्रतिशत वोटिंग हुई थी जिसमें जदयू के वोट भाजपा के पाले गए थे और भाजपा के डॉ. सिंह आसानी से जीत गए थे. जबकि इसके पहले के चुनाव में जदयू के प्रत्याशी डॉ. मोनाजिर हसन विजयी हुए. उन्होंने सीपीआई के शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को हराया था. डॉ. हसन को कुल 2,05,680 वोट मिले थे जबकि शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को 1,64,843 वोट मिले. डॉ. हसन को 28.64 प्रतिशत और शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को 22.95 प्रतिशत वोट मिले. तीसरे स्थान पर लोजपा के अनिल चौधरी और चौथे स्थान पर निर्दलीय उम्मीदवार अमिता भूषण रहीं. पांचवें और छठे स्थान पर निर्दलीय उम्मीदवार रहे. इस चुनाव में कुल 48.75 प्रतिशत वोट पड़े थे.
राष्ट्रकवि का जन्मस्थान है बेगूसराय
चुनाव आयोग के 2009 के आंकडों के मुताबिक इस संसदीय क्षेत्र में कुल 1,473,263 मतदाता हैं जिनमें 687,910 महिला और 785,353 पुरुष मतदाता हैं. बेगूसराय सिटी में इस जिले का मुख्यालय है. इस संसदीय क्षेत्र का नाम इसलिए भी मशहूर है क्योंकि हिंदी के प्रख्यात कवि और राष्ट्रकवि से सम्मानित रामधारी सिंह दिनकर का यह जन्मस्थान है. 2011 की जनगणना के मुताबिक बेगूसराय की कुल आबादी 29,70,541 है.
इसबार कन्हैया कुमार के बेगूसराय से संसदीय चुनाव लडने की बात लगभग तय होने के बाद यह तय है कि उन्हें राजद और कांग्रेस का समर्थन से जदयू-भाजपा के खिलाफ वह मैदान में होंगे. हालांकि इस पर अंतिम फैसला होना बाकी है. लेकिन कन्हैया कुमार खुद मीडिया को बता चुके हैं कि पार्टी (सीपीआई) अगर उन्हें महागठबंधन की सीट पर चुनाव लड़ाती है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं. कन्हैया कुमार यह भी बता चुके हैं कि उनकी पार्टी बिहार में अकेले चुनाव नहीं लड़ेगी और वह महागठबंधन का हिस्सा होगी. जानकारों की मानें तो राजद की ओर से लालू यादव ने महागठबंधन पर अपनी हामी भी भर दी है.
धाकड़ नेता थे दिवंगत भोला सिंह
डॉ. भोला सिंह का जन्म 3 जनवरी 1939 को हुआ और निधन 19 अक्टूबर 2018 को. भाजपा में आने से पहले डॉ. सिंह बिहार में लगभग सभी दलों से जुड़े रहे. कम्युनिस्ट पार्टी, कांग्रेस और राजद में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दीं. सन् 2000 से 2005 तक वे बिहार विधानसभा के डिप्टी स्पीकर थे. बेगूसराय से साल 1967 में निर्दलीय टिकट पर विधायक चुने जाने से पहले वे इतिहास के प्रोफेसर थे. डॉ. सिंह ने 60 के दशक में राजनीति शुरू की और 8 बार बेगूसराय से विधायक रहे. 2009 में उन्होंने नवादा संसदीय सीट पर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था. बिहार में एनडीए सरकार के दौरान डॉ. सिंह 2008 में शहरी राज्यमंत्री बनाए गए थे.