लोकसभा चुनावः राजस्थान के पूर्व मंत्री और बीजेपी के दिग्गज नेता रहे घनश्याम तिवाड़ी कांग्रेस में क्यों आए?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: March 27, 2019 06:23 AM2019-03-27T06:23:07+5:302019-03-27T06:23:07+5:30
घनश्याम तिवाड़ी का राजस्थान में बीजेपी की नींव मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उन्होंने भाजपा संगठन में तो कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया ही है, छह बार एमएलए भी रहे हैं. वे जुलाई 1998 से नवम्बर 1998 तक भैरोंसिंह शेखावत सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे.
जयपुर में राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान भारत वाहिनी पार्टी के प्रमुख घनश्याम तिवाड़ी ने कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा की. बड़ा सवाल यह है कि बचपन से ही संघ के स्वयंसेवक, राजस्थान के पूर्व मंत्री और बीजेपी के दिग्गज नेता रहे घनश्याम तिवाड़ी कांग्रेस में क्यों आए? तिवाड़ी के साथ ही भाजपा के नेता रह चुके पूर्व कैबिनेट मंत्री सुरेंद्र गोयल और पूर्व कैबिनेट मंत्री जनार्दन गहलोत भी कांग्रेस के साथ आ गए हैं.
यही नहीं, राजकुमार गौढ़, रमीला खडिया, कांतिलाल मीणा, रामकेश मीणा, लक्ष्मण मीणा, संयम लोढा, बाबूलाल नागर, खुशवीर मीणा, बलजीत यादव, सुरेश टांक, खुशवीर सिंह, महादेव सिंह खंडेला आदि निर्दलीय एमएलए ने भी कांग्रेस का समर्थन किया है. घनश्याम तिवाड़ी का कहना कि- इस वक्त लोकतंत्र को बचाने की जरूरत है, इसलिए वे कांग्रेस से जुड़ रहे हैं.
याद रहे, कुछ समय पूर्व हुए विस चुनाव से पहले उन्होंने भाजपा छोड़ दी थी और भारत वाहिनी पार्टी से चुनाव लड़ा था, लेकिन वे और उनकी पार्टी कोई बड़ी कामयाबी दर्ज नहीं करवा पाई थी, अलबत्ता लगातार पांच साल तक बीजेपी एमएलए रहते राजे सरकार का विरोध करने का अप्रत्यक्ष फायदा जरूर कांग्रेस को मिला था.
घनश्याम तिवाड़ी का राजस्थान में बीजेपी की नींव मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उन्होंने भाजपा संगठन में तो कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया ही है, छह बार एमएलए भी रहे हैं. वे जुलाई 1998 से नवम्बर 1998 तक भैरोंसिंह शेखावत सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे, तो दिसम्बर, 2003 से 2007 तक वसुंधरा राजे सरकार में प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक शिक्षा, संस्कृत शिक्षा, विधि एवं न्याय, संसदीय मामले, भाषाई अल्पसंख्यक, पुस्तकालय एवं भाषा मंत्री रहे, जबकि दिसम्बर 2007 से वर्ष 2008 तक खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति और विधि एवं न्याय मंत्री के पद पर रहे.
पिछली बार वसुंधरा राजे के सीएम बनने के बाद वे लगातार उनके खिलाफ आवाज उठाते रहे. उन्हें परोक्ष समर्थन तो मिला, लेकिन बीजेपी नेतृत्व का प्रत्यक्ष समर्थन नहीं मिल पाया, जिसके नतीजे में उन्होंने विस चुनाव से पहले बीजेपी छोड़ दी.
बीजेपी तो किरोड़ीलाल मीणा ने भी छोड़ी थी, लेकिन वे पुनः भाजपा में शामिल हो गए. विस चुनाव के नतीजों के बाद घनश्याम तिवाड़ी को यह अहसास हो गया कि राजस्थान में क्षेत्रीय दलों का भविष्य नहीं है, लेकिन तिवाड़ी वसुंधरा राजे का इतना विरोध कर चुके थे कि बीजेपी में वापसी की कोई संभावना नहीं थी, लिहाजा उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामना ही सही समझा.
बहरहाल, एकसाथ इतना बड़ा समर्थन मिलने से जहां कांग्रेस के लिए सियासी संभावनाओं के पंख लग गए है, वहीं बीजेपी के लिए बड़ा प्रश्न है कि लोस चुनाव में निर्धारित लक्ष्य कैसे हांसिल करेगी?