लोकसभा चुनावः यहां जापानी-चीनी-तिब्बती भी दे रहे हैं वोट, भारत के सुख-दुख में भी रहने लगे साथ

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 10, 2019 08:36 AM2019-05-10T08:36:23+5:302019-05-10T08:36:23+5:30

85 साल की कात्सू सान आगामी 12 मई को नई दिल्ली सीट के लिए वोट डालेंगी. वह मूलत: जापानी हैं. वे 1956 में भारत आ गईं थीं. मन था कि भारत को करीब से देखा-समझा जाए. भारत को लेकर उनकी दिलचस्पी बौद्ध धर्म के कारण प्रबल हुई.

lok sabha election: Japanese, Chinese, Tibetan will cast their vote, they gets indian citizenship | लोकसभा चुनावः यहां जापानी-चीनी-तिब्बती भी दे रहे हैं वोट, भारत के सुख-दुख में भी रहने लगे साथ

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Highlights85 साल की कात्सू सान आगामी 12 मई को नई दिल्ली सीट के लिए वोट डालेंगी. वह मूलत: जापानी हैं. वे 1956 में भारत आ गईं थीं. जार्ज च्यू यह बताने को तैयार नहीं हैं कि वे किसे वोट देंगे. उन्हें इस बात का गिला भी नहीं है कि वे या उनका चाइनीज समाज वोट बैंक नहीं माना-समझा जाता. एक अनुमान के मुताबिक, देशभर में इस तरह से एक लाख से अधिक ही नागरिक होंगे. इनमें चीनी और तिब्बती मूल के भारतीय नागरिक सर्वाधिक हैं.

अभिनेता अक्षय कुमार का कनाडा का नागरिक होने के कारण भारत में लोकसभा चुनाव के दौरान वोट नहीं देने के कारण तगड़ा बवाल हुआ, पर इस कोलाहाल में ये बात सामने नहीं आई कि इस लोकसभा चुनाव में बहुत बड़ी संख्या में जापानी, चीनी, तिब्बती, ब्रिटिश वगैरह मूल के नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं. ये अब भारत की नागरिकता ले चुके हैं. ये भारत के सुख-दुख से अपने को जोड़ते हैं.

85 साल की कात्सू सान आगामी 12 मई को नई दिल्ली सीट के लिए वोट डालेंगी. वह मूलत: जापानी हैं. वे 1956 में भारत आ गईं थीं. मन था कि भारत को करीब से देखा-समझा जाए. भारत को लेकर उनकी दिलचस्पी बौद्ध धर्म के कारण प्रबल हुई. आप उनसे अंग्रेजी में संवाद करते हैं, तो जवाब हिंदी में मिलता है. आंखें शर्म से झुक जाती हैं उनकी हिंदी के स्तर को सुनकर. कात्सूजी बताती हैं उन्होंने हिंदी काका साहेबकालेकरजी से सीखी.

उन्होंने करीब 20 साल पहले भारत की नागरिकता ले ली थी. अब एक बौद्ध विहार से जुड़ी हैं. कैसी सरकार वो चाहती है लोकसभा चुनावों के बाद, कात्सूजी कहती हैं, ''देश का नेतृत्व उन नेताओं के हाथों में आए जो अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने के प्रति गंभीर हो. उनमें भारत के दीन-हीन के सवालों को लेकर भी संवेदनशीलता हो.'' राजधानी के कनॉट प्लेस में अपना शूज का शो-रूम चलाने वाले जार्ज च्यू (69) आजकल अखबारों में चुनावी हलचल को पूरी तन्मयता से पढ़ रहे हैं.

जार्ज च्यू यह बताने को तैयार नहीं हैं कि वे किसे वोट देंगे. उन्हें इस बात का गिला भी नहीं है कि वे या उनका चाइनीज समाज वोट बैंक नहीं माना-समझा जाता. उनसे कोई नेता या राजनीतिक दल वोट भी नहीं मांगता. च्यू दूसरी पीढ़ी के भारतीय मूल के चाइनीज हैं. उनके पिता 1930 के आसपास चीन के कैंटोन प्रांत से स्टीमर से कलकत्ता पहुंचे थे. उसके बाद दिल्ली आ गए. उन्होंने यहां पर शूज का शो-रूम खोला.

जार्ज बताते हैं कि वे मूलत: और अंतत: गैर-राजनीतिक इंसान हैं. अपने कारोबार से ही जुड़े रहते हैं. परंतु चुनाव के मौसम में उन्हें पार्टियों के घोषणापत्रों को जानने की जिज्ञासा रहती है. जार्ज च्यू और कात्सू सान उन हिंदुस्तानियों की नुमाइंदगी करते हैं, जो वोट बैंक नहीं बन सके. ये विदेशी मूल के हैं. इन्होंने या तो भारत की नागरिकता ले ली है या फिर इन्हें नागरिकता स्वाभाविक रूप से मिल गई क्योंकि इनका जन्म भारत में ही हुआ था. इनमें से अनेक के पुरखे या माता-पिता भारत आ गए थे. ये यहां पर रोजगार की तलाश में या भारत को करीब से जानने-समझने के लिए आए थे. एक बार इधर आए तो फिर यहां के ही हो गए.

एक अनुमान के मुताबिक, देशभर में इस तरह से एक लाख से अधिक ही नागरिक होंगे. इनमें चीनी और तिब्बती मूल के भारतीय नागरिक सर्वाधिक हैं. जिलियन राइट भी भारतीय हैं. वह हिंदी और उर्दू अनुवादक हैं. वह ब्रिटेन से हैं. 1977 में भारत आ गई थीं हिंदी और उर्दू पर ज्यादा बेहतर काम करने के इरादे से.

वे बताती हैं, लंदन विश्वविद्यालय में पढ़़ाई के दौरान हिंदी और उर्दू को लेकर मेरी दिलचस्पी पैदा हुई. इनका अध्ययन शुरू किया तो वो बदस्तूर जारी रहा. उसी दौरान मैंने महसूस किया भारत में रहकर ही इन दोनों जुबानों में बेहतर काम मुमिकन है. यहां पर राही मासूम रजा और श्रीलाल शुक्ल पर ठोस काम करना शुरू किया. इनके उपन्यास 'आधा गांव' और 'राग दरबारी' का अंग्रेजी में अनुवाद किया. बाद के वर्षों में भीष्म साहनी की कहानियों का भी अनुवाद किया.

भारतीय मूल के लोग करीब एक-डेढ़ दर्जन देशों में सांसद से लेकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री हैं. इनमें मलेशिया, मॉरिशस, त्रिनिदाद, गुआना, कीनिया, फीजी, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा शामिल हैं. गुआना में 60 के दशक में भारतीय मूल के छेदी जगन राष्ट्रपति बन गए थे. उसके बाद तो शिवसागर राम गुलाम (मॉरिशस), नवीन राम गुलाम (मॉरिशस), महेंद्र चौधरी (फीजी), वासदेव पांडे (त्रिनिदाद), एस. रामनाथन (सिंगापुर) सरीखे भारतवंशी विभिन्न देशों के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनते रहे. भारत में कब कोई विदेशी मूल का शख्स राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनता है, इसकी फिलहाल उम्मीद कम है. फिलहाल ये नई सरकार के लिए वोट देकर ही खुश हैं. 

Web Title: lok sabha election: Japanese, Chinese, Tibetan will cast their vote, they gets indian citizenship



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