बिहार के बेगूसराय लोकसभा सीट पर होगा दिलचस्प मुकाबला, कन्हैया बनाम गिरिराज के बीच RJD का तड़का
By एस पी सिन्हा | Published: March 26, 2019 06:19 AM2019-03-26T06:19:48+5:302019-03-26T06:19:48+5:30
कन्हैया कुमार भाकपा की तरफ से चुनावी मैदान में हैं और करीब एक साल से इस इलाके में अपनी जमीन तैयार कर रहे हैं. भाकपा के सांसद भोला सिंह के निधन से खाली हुई इस सीट पर मुकाबला संघ बनाम वामदल भी है क्योंकि इस सीट को लेनिनग्राद भी कहा जाता है.
बेगूसराय बिहार की हॉट सीट में शुमार हो गया है. उम्मीदवारों के नाम ऐलान के साथ ही यह तय हो गया है कि यहां मुकाबला अब कन्हैया बनाम गिरिराज ही होगा. हालांकि यहां राजद के उम्मीदवार तनवीर हसन के आने से मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार भी हैं. वैसे अभी के तस्वीर से यह साफ है कि एक तरफ जहां भाजपा के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह मैदान में हैं, तो उनके मुकाबले में जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और युवा चेहरा कन्हैया कुमार.
कन्हैया कुमार भाकपा की तरफ से चुनावी मैदान में हैं और करीब एक साल से इस इलाके में अपनी जमीन तैयार कर रहे हैं. भाकपा के सांसद भोला सिंह के निधन से खाली हुई इस सीट पर मुकाबला संघ बनाम वामदल भी है क्योंकि इस सीट को लेनिनग्राद भी कहा जाता है. ऐसे में यहां अब इस बात का इंतजार हो रहा है कि महागठबंधन के खाते से कन्हैया को टिकट ने देने वाले तेजस्वी यादव बेगूसराय से अपना उम्मीदवार भी न उतारें.
यानी कन्हैया कुमार को वो बाहर से सपोर्ट करें ताकि बेगूसराय सीट को भाजपा और एनडीए के कब्जे से दूर रखा जाए. वैसे गिरिराज सिंह अपनी पुरानी सीट नवादा से ही लड़ने के लिए इच्छुक थे, लेकिन भोला बाबू के निधन से रिक्त इस सीट से भाजपा को जिस चेहरे की तलाश थी शायद वह गिरिराज सिंह ही थे. पार्टी ने बेगूसराय में सिंह की छवि और जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए उन पर दांव चला. गिरिराज सिंह की उम्मीदवारी का दूसरा पहलू ये भी है कि कन्हैया और गिरिराज सिंह दोनों ही एक ही जाति (भूमिहार) से आते हैं यानी मुकाबला भूमिहार बनाम भूमिहार ही हो.
ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि क्या कन्हैया कुमार का टिकट काटने वाला महागठबंधन इस सीट से गिरिराज सिंह की हार को तय करने के लिए कन्हैया को बाहर से समर्थन करेगा. अगर इस सीट पर कन्हैया कुमार को समर्थन मिल जाता है तो गिरिराज की मुश्किलें बढ सकती है. ऐसा इसलिए भी कि यह सीट और इलाका उनके लिए नया है साथ ही कन्हैया ने इस इलाके में पिछले एक साल का समय दिया है.
तेजस्वी की बात करें तो वह बिहार में गठबंधन तो चाहते हैं, लेकिन अपनी शर्तों पर दूसरी ओर वह गिरिराज सिंह जैसे नेता को जीतते भी नहीं देखना चाहते. कुल मिलाकर बेगूसराय सीट से एनडीए, भाजपा और गिरिराज सिंह की किस्मत का फैसला बहुत हद तक वहां की जनता के साथ-साथ महागठबंधन और तेजस्वी यादव का स्टैंड क्लियर करेगा.
बताते चलें कि कन्हैया कुमार को भले ही महागंठबंधन ने बेगूसराय सीट पर समर्थन न दिया हो, लेकिन भाकपा ने बेगूसराय से कन्हैया के चुनाव लडने की हरी झंडी दे चुकी है. यही वजह है कि कन्हैया प्रचार मामले में अब तक दो राउंड का प्रचार कर चुके हैं. बेगूसराय लोकसभा सीट का मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है, क्योंकि यहां अब त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा. एक ओर जहां गिरिराज सिंह होंगे तो दूसरी ओर मोदी लहर में भी अपनी छाप छोडने वाले राजद के तनवीर हसन और कन्हैया कुमार होंगे.
कन्हैया ने पटना में कहा कि आज की राजनीतिक हालात में जो बेगूसराय की जो तस्वीर है, उसके मुताबिक इस लडाई में राजद के उम्मीदवार तनवीर कहीं नहीं हैं. उन्होंने कहा कि मुझे बेगूसराय की जनता पर भरोसा है कि वो वहां जीतेगी और नफरत-उन्माद हारेगा. उन्होंने कहा कि जो आदमी बेगूसराय को रिजेक्ट कर रहा है, उसे वहां की जनता कैसे एक्सेप्ट करेगी?
कन्हैया कुमार से जब महागठबंधन से लेफ्ट पार्टियों को बाहर किए जाने पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि महागठबंधन के दलों को शायद ऐसा लगता है कि लेफ्ट पार्टियों का कोई जनाधार नहीं है. इतना ही नहीं उन्होने यहां तक कहा कि भले ही दलों से उनका गठबंधन न हुआ हो लेकिन जनता से उनका गठबंधन हो चुका है. कन्हैया ने बेगूसराय में महागठबंधन के उम्मीदवार को पूरी तरह से लडाई से बाहर बताया और कहा कि वहां से मुझे जनता का आशीर्वाद मिलेगा.
उल्लेखनीय है कि बिहार की इस सीट को लोकसभा चुनाव में सबसे अहम माना जा रहा है क्योंकि यहां दोनों दलों के बीच लडाई कई मुद्दों पर है. बेगूसराय सीट पर 2014 में भाजपा का कब्जा रहा था तब यहां से भाजपा के कद्दावर नेता भोला प्रसाद सिंह चुनाव जीते थे.