लोकसभा चुनाव 2019: इस बार भी कम महिलाओं को टिकट मिलने की उम्मीद, ससंद में 3 बार नेतृत्व कर चुकी हैं कश्मीर की महिलाएं
By सुरेश डुग्गर | Published: March 13, 2019 05:49 AM2019-03-13T05:49:51+5:302019-03-13T05:49:51+5:30
1996 तथा 1998 के चुनावों में भाजपा की ओर से क्रमशः अनंतनाग व लेह की सीट पर महिला प्रत्याशी को खड़ा किया गया था, महिला अधिकारों की बात वे बढ़ चढ़ कर करते हैं।
यूं तो वर्ष 2008 में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में कुछ राजनीतिक दलों ने महिलाओं को टिकटें देकर यह दर्शाने की कोशिश की थी कि वे उन्हें बराबरी कर हक देने के पक्ष में हैं पर इन लोकसभा चुनावों में टिकटें बांटने की जो तैयारी हो रही है उसमें कहीं महिलाओं के प्रति चर्चा भी नहीं चल रही है। यही नहीं पीडीपी को छोड़ कर किसी और राजनीतिक दल द्वारा किसी महिला को टिकट दिए जाने के कोई संकेत नहीं मिले हैं।
ऐसा भी नहीं है कि कभी महिलाओं ने संसद में जम्मू कश्मीर का नेतृत्व न किया हो बल्कि संसद में जम्मू कश्मीर की महिलाएं तीन बार राज्य का प्रतिनिधित्व तो कर चुकी हैं लेकिन वे अपने पतिओं के नामों के कारण ही ऐसा कर पाने में सफल रही थीं। स्व पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला की विधवा अकबर जहान बेगम 1984 तथा 1977 में संसदीय चुनावों के लिए मैदान में उतरी थीं और उन्होंने क्रमशः दो-दो लाख से अधिक मत प्राप्त किए थे।
1977 में सबसे पहले कांग्रेस ने उतारा था महिला उम्मीदवार
इसी प्रकार 1977 के चुनावों में ही प्रथम बार कांग्रेस ने भी अपने एक नेता की विधवा श्रीमती पार्वती देवी को इसलिए मैदान में उतारा था क्योंकि नेशनल कांफ्रेंस ने भी महिला उम्मीदवार खड़ा किया था और दोनों ही उम्मीदवारों को श्रीनगर तथा लद्दाख की सीटों पर सिर्फ महिला मतदाताओं के वोट हासिल हुए थे जिनसे उनकी जीत सुनिश्चित हो गई थी। लेकिन इसमें सच्चाई यह थी कि दोनों को टिकट मजबूरी में दिया गया था न कि खुशी से। और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी 2004 में अनंतनाग संसदीय सीट से प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।
1996 और 1998 में बीजेपी ने उतारें थे दो महिला उम्मीदवार
1996 तथा 1998 के चुनावों में भाजपा की ओर से क्रमशः अनंतनाग व लेह की सीट पर महिला प्रत्याशी को खड़ा किया गया था, महिला अधिकारों की बात वे बढ़ चढ़ कर करते हैं। जबकि वे इस बात को भी नजरअंदाज करते रहे हैं कि राज्य में महिला मतदाताओं की संख्यां पचास प्रतिशत है। चुनाव क्षेत्र में कदम रखने के लिए महिलाओं को उत्साहित भी नहीं किया गया है। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दलों के महिला विंग बहुत ही कमजोर हैं और वे सिर्फ पुरूषों के बल पर अपने आप को घसीट रहे हैं। कमजोर होने का कारण उनमें तालमेल की कमी भी है जिसके कारण पुरूष नेता उन पर हावी होते जा रहे हैं।
1996 व 2002 के विधानसभा चुनावों में बड़ी संख्यां में महिलाएं स्वतंत्र उम्मीदवारों के रूप में मैदान में जरूर उतरी थीं। यह बात अलग है कि उन्हें कितने वोट मिले लेकिन अपने राजनीतिक दलों से अलग होकर मैदान में कूदने वाली इन महिला प्रत्याशियों का मत था कि वे इसलिए मैदान में कूदी थीं ताकि वे अपने-अपने दलों को यह बता सकें कि वे आतंकवाद से घबराने वाली नहीं हैं। तब यह प्रथम अवसर था कि इतनी संख्यां में महिलाएं चुनाव मैदान में उतरी थीं। जबकि अभी तक का इतिहास यह रहा है कि महिला प्रत्याशी स्वतंत्र रूप से भी परचे नहीं भरती रही हैं। राजनीतिक दलों द्वारा परचे भरवाना तो दूर की बात रही है।
इन चार महिलाओं ने बनाया था विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड
1972 के विधानसभा चुनावों में एक बार राज्य की चार महिलाओं ने विधानसभा चुनावों में रिकार्ड बनाया था। तब जैनब बेगम, हाजरा बेगम, शांता भारती और निर्मला देवी विधानसभा चुनावों को जीत विधानसभा में पहुंच गई थीं। वे सभी कांग्रेस की टिकट पर ही विधानसभा में पहुंची थीं पर इस बार के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस भी महिलाओं पर अधिक मेहरबान नहीं हो पाई थी। भाजपा के खिलाफ तो उसकी महिला विंग की नेताओं ने ही कई बार प्रदर्शन किया था क्योंकि भाजपा ने भी महिला उम्मीदवारों को तरजीह नहीं दी थी।