लोकसभा चुनाव 2019 Update: मोदी की नजर आडवाणी की गांधीनगर सीट पर! मुद्दा भावनात्मक होने की आशंका
By हरीश गुप्ता | Published: January 3, 2019 05:52 AM2019-01-03T05:52:22+5:302019-01-03T05:52:22+5:30
भाजपा के सूत्रों ने लोकमत समाचार को बताया कि पुरी से मोदी के लड़ने की योजना रद्द कर दी गई है. ताजा विधानसभा चुनाव परिणामों के मद्देनजर पुरी की बजाय अब प्रधानमंत्री बनारस के अलावा गुजरात से चुनाव लड़ सकते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2019 के लोकसभा चुनाव में बनारस के अलावा दूसरी सीट से लड़ने को लेकर अटकलों के बीच संकेत मिले हैं कि वह अपने गृहराज्य गुजरात की किसी सीट से भी मैदान में उतर सकते हैं. पहले उनके बनारस के अलावा ओडिशा के पुरी से लड़ने के कयास लगाए जा रहे थे.
सूत्रों के मुताबिक मोदी की नजर 90 वर्षीय लालकृष्ण आडवाणी की परंपरागत सीट गांधीनगर पर है, लेकिन पार्टी के आला अधिकारियों की राय में ऐसा करना भावनात्मक तौर पर नुकसानदेह साबित हो सकता है. प्रधानमंत्री ने मंगलवार को दिए एक टीवी साक्षात्कार में पुरी से चुनाव लड़ने संबंधी सवाल पर जवाब सफाई से टाल दिया था.
भाजपा के सूत्रों ने लोकमत समाचार को बताया कि पुरी से मोदी के लड़ने की योजना रद्द कर दी गई है. ताजा विधानसभा चुनाव परिणामों के मद्देनजर पुरी की बजाय अब प्रधानमंत्री बनारस के अलावा गुजरात से चुनाव लड़ सकते हैं. 2014 में बनारस और वड़ोदरा से चुनाव जीतने के बाद मोदी ने वड़ोदरा की सीट छोड़ दी थी, जहां से भाजपा की रंजनबेन भट्ट ने चुनाव जीता था.
गुजरात क्यों?
प्रधानमंत्री मोदी के गुजरात से भी चुनावी मैदान में उतरने की वजह पार्टी की यह राय है कि ऐसे में भाजपा राज्य से सभी 26 लोकसभा सीटें जीत सकती है. पुरी क्यों नहीं? सूत्रों के मुताबिक भाजपा आलाकमान ने ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार को बता दिया है कि मोदी का पुरी से चुनाव लड़ने का कोई भी इरादा नहीं है.
माना जा रहा है कि यह बीजू जनता दल (बीजद) को दिया गया स्पष्ट संकेत है कि वह जब तक कांग्रेस से दूरी बनाकर रखेगी, भाजपा को उससे कोई दिक्कत नहीं है. और बीजद की मंशा बीजद चाहती है कि भाजपा, पूर्व लोकसभा सांसद बी.जे. पांडा जैसे बागियों से नजदीकियां बनाने की कोशिश न करे.
बीजद के अन्य नेताओं को सीबीआई और ईडी द्वारा परेशान न किया जाए. सूत्रों के मुताबिक नवीन पटनायक ने कहा है कि उनकी दिल्ली की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है. तो ये है वजह! शायद यही वो वजह है कि जिसके चलते सीबीआई ने बीजद मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ मामलों की जांच में चुप्पी साध ली है. इनमें सारदा चिटफंड मामला भी शामिल है.