जानिए कौन हैं अजय राय, पीएम मोदी को वाराणसी लोकसभा सीट से देंगे टक्कर, पिछले दो चुनाव में रहे तीसरे स्थान पर
By सतीश कुमार सिंह | Published: April 25, 2019 02:08 PM2019-04-25T14:08:49+5:302019-04-25T14:08:49+5:30
कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी सीट से अजय राय को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने 2014 में भी अजय राय को प्रत्याशी बनाया था। एक बार फिर कांग्रेस ने उन्हीं पर दांव खेला है। अब वाराणसी सीट पर अहम मुकाबला भाजपा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, समाजवादी पार्टी-बीएसपी गठबंधन से शालिनी यादव और कांग्रेस से अजय राय मैदान में हैं। वाराणसी लोकसभा सीट पर सातवें चरण के तहत 19 मई को वोट डाले जाएंगे।
देश के सियासी गलियारों में लोकसभा चुनाव में तेज हलचल देखने को मिल रही है। वाराणसी लोकसभा सीट पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के चुनाव मैदान में उतरने के कयासों पर ब्रेक लगा दिया।
कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी सीट से अजय राय को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने 2014 में भी अजय राय को प्रत्याशी बनाया था। एक बार फिर कांग्रेस ने उन्हीं पर दांव खेला है।
अब वाराणसी सीट पर अहम मुकाबला भाजपा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, समाजवादी पार्टी-बीएसपी गठबंधन से शालिनी यादव और कांग्रेस से अजय राय मैदान में हैं। वाराणसी लोकसभा सीट पर सातवें चरण के तहत 19 मई को वोट डाले जाएंगे।
2014 और 2009 में तीसरे स्थान पर रहे थे अजय राय
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय तीसरे स्थान पर आए थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में अजय राय ने सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और उन्हें 1 लाख 23 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। अजय राय वाराणसी सीट से विधायक रहे चुके हैं।
अजय राय ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1996 में बीजेपी प्रत्याशी के रूप में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़कर की थी, जिसमें उन्हें विजय मिली। 2009 में अजय राय वाराणसी लोकसभा सीट से बीजेपी का टिकट चाहते थे। पार्टी ने उन्हें टिकट देने से मना किया तो वह बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए।
2009 का चुनाव अजय राय सपा के टिकट पर वाराणसी से लड़े और तीसरे नंबर पर रहे। इस चुनाव में बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी जीते थे और दूसरे नंबर पर बसपा के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी थे।
2014 में भी पीएम मोदी के खिलाफ ठोका था ताल
2014 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ ताल ठोका था। इस दौरान उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी को बाहरी (बनारस से बाहर का) और अरविंद केजरीवाल को भगोड़ा करार दिया था, लेकिन उनका ये दांव काम नहीं आया। उन्हें महज 75 हजार 614 वोट ही मिल सके थे।
पांच बार विधायक रहे अजय राय
पांच बार के विधायक रहे अजय राय 2014 का चुनाव भी पीएम मोदी के खिलाफ लड़ चुके हैं। इस दौरान उनकी जमानत जब्त हो गई थी। इसके बाद 2017 में वह अपनी पिंडरा विधानसभा सीट से भी चुनाव हार गए थे। 1996 में अजय बीजेपी के टिकट पर वाराणसी की कोलसला विधासनभा सीट से चुनाव लड़े।
उन्होंने नौ बार के सीपीआई विधायक उदल को 484 मतों के अंतर से हराया था। 2002 और 2007 का भी चुनाव अजय राय बीजेपी के टिकट पर इसी विधानसभा क्षेत्र से लड़े और जीते। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के टिकट पर अजय राय पिंडरा सीट से उतरे। बीजेपी प्रत्याशी अवधेश सिंह से वह हार गए। खास बात है कि इस चुनाव में अजय राय 48 हजार वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे।
1990 के बाद से वाराणसी सीट पर भाजपा का दबदबा
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का जन्म 1980 में हुआ था। भाजपा के प्रत्याशी श्रीश चंद्र दीक्षित ने 1991 के आम चुनाव में पार्टी को पहली बार वाराणसी संसदीय सीट पर जीत दिलायी। मंडल-कमंडल की राजनीति के दौर में बीजेपी ने 1991 के बाद 1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में भी वाराणसी की सीट पर जीत हासिल की।
साल 2004 में कांग्रेस नेता राजेश मिश्रा ने भाजपा के हाथों से वाराणसी सीट छीन ली, लेकिन साल 2009 में भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने वाराणसी सीट से जीत हासिल की। साल 2014 में बीजेपी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को वाराणसी से पार्टी का प्रत्याशी बनाया और उन्होंने भारी अंतर से जीत हासिल की।
वाराणसी से सबसे अधिक सात बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है। वाराणसी से भाजपा छह बार, जनता दल, भारत की कम्यूनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) और भारतीय लोकदल ने एक बार जीत हासिल की है।
वाराणसी का जातिगत समीकरण और भाजपा की ताकत
साल 2011 की जनगणना के अनुसार वाराणसी में करीब 70 प्रतिशत हिन्दू और करीब 28 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में करीब 15 लाख 32 हजार वोटर हैं। इनमें से करीब तीन लाख मतदाता मुसलमान, करीब ढाई लाख ब्राह्मण, करीब डेढ़ लाख पटेल-कुर्मी वोटर हैं।
वाराणसी में करीब डेढ़ लाख यादव, 65 हजार कायस्थ, दो लाख वैश्य, 80 हजार चौरसिया, डेढ़ लाख भूमिहार और करीब 80 हजार दलित हैं। केवल ब्राह्मण-बनिया वोटर ही बनारस में साढ़े चार लाख हैं। अगर इसमें, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ वोटरों की संख्या भी जोड़ दें तो यह आँकड़ा करीब सात लाख पहुंच जाएगा।
बीजेपी ने पिछला चुनाव अपना दल (सोनेलाल) से गठबंधन कर के लड़ा था। इस चुनाव में भी बीजेपी और अपना दल (एस) मिलकर लड़ रहे हैं। बनारस में कुर्मी-पटेल वोटरों की संख्या करीब डेढ़ लाख वोटर है। यानी बनारस के करीब साढ़े आठ लाख वोटर मोटे तौर पर बीजेपी समर्थक माने जा सकते हैं। इनके अलावा चौरसिया और यादवों का एक बड़ा वर्ग भी बीजेपी को वोट देता आया है।