वाजपेयी जैसा नहीं मोदी का व्यक्तित्व, 2019 में आई गठबंधन की नौबत तो नहीं बना पाएंगे सरकार!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: December 12, 2018 10:03 AM2018-12-12T10:03:41+5:302018-12-12T11:17:09+5:30
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी प्रमुख चन्द्रबाबू नायडू तो बहुत पहले ही भाजपा का साथ छोड़ चुके हैं तो अभी भी साथ शिवसेना, भाजपा पर सियासी वार करने का कोई भी मौका छोड़ती नहीं है.
पांच प्रदेशों के चुनावी नतीजे बताते हैं कि अगले आम चुनाव में भाजपा 2014 वाली कामयाबी नहीं दोहरा पाएगी. मतलब...अगली जो भी सरकार बनेगी वह गठबंधन सरकार होगी, लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन की सरकार बनी तब भी पीएम मोदी शायद ही नेतृत्व कर पाएंगे.
इसके कई कारण हैं, सबसे बड़ी वजह तो यह है कि पीएम मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी नहीं हैं, जो गठबंधन सरकार चलाने में सक्षम थे. पीएम मोदी का तो पॉलटिकल नेचर और राजनीतिक अंदाज ही गठबंधन के अनुरूप नहीं है. वे अपने दल के नेताओं से ही सही तालमेल रख कर नहीं चल पा रहे हैं तो सहयोगी दलों से कैसे संतुलन बैठाएंगे?
भले ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, गैर भाजपाई महागठबंधन पर सवाल खड़े करें, लेकिन सच्चाई यह है कि खुद भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के सहयोगी दल ही कभी पीएम मोदी और शाह के सियासी रवैये से खुश नहीं रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि छोटे सहयोगी दलों की उपेक्षा से परेशान रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से अपने संबंध तोड़ते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. कुशवाहा का आरोप था कि- प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडल का कद घटाकर उसे महज एक रबर स्टांप बना दिया है, पिछड़े वर्ग को धोखा दिया और बिहार को सिर्फ जुमले दिए.
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी प्रमुख चन्द्रबाबू नायडू तो बहुत पहले ही भाजपा का साथ छोड़ चुके हैं तो अभी भी साथ शिवसेना, भाजपा पर सियासी वार करने का कोई भी मौका छोड़ती नहीं है.
शिवसेना द्वारा लगातार भाजपा पर निशाना साधने के बावजूद भाजपा की मजबूरी है, शिवसेना के साथ बने रहना. अभी तीन प्रमुख राज्यों- एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की चुनावी हालत देखने के बाद शिवसेना नेता संजय राउत का कहना था कि- बीजेपी को गठबंधन दलों से रिश्ते नहीं निभाने का सिला मिला है.
पीएम मोदी टीम का विपक्ष से ही नहीं, भीतर से भी विरोध बढ़ता जा रहा है. इन हालातों में सियासी भविष्य को देखते हुए यदि भाजपा ने जरूरी कदम नहीं उठाए तो 2019 में बड़ा नुकसान हो सकता है.