लोकसभा चुनाव 2019: 'कर्नाटक मॉडल' के जरिये ही बीजेपी को रोक सकती है कांग्रेस!
By विकास कुमार | Published: March 24, 2019 03:08 PM2019-03-24T15:08:59+5:302019-03-24T15:08:59+5:30
बीजेपी का 'अबकी बार 300 पार' का नारा ढहता हुआ दिख रहा है. तो वहीं आम आदमी का हाथ भी कांग्रेस के साथ जाता हुआ नहीं प्रतीत होता है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि क्या देश की राजनीति का नैरेटिव पोस्ट नरसिम्हा राव के काल में पहुंचने वाली है.
लोकसभा चनाव का बिजुल बज चुका है. चुनाव आयोग द्वारा तारीखों के एलान के बाद राजनीतिक तापमान बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं. पीएम मोदी ने लोगों से चुनाव में बढ़-चढ़ कर हिसा लेने का आग्रह किया है. और उम्मीद जताई है कि इस चुनाव में जनता ऐतिहासिक मतदान करेगी. तो वहीं विपक्ष ने इसे मोदी सरकार के कुशासन के अंत की घोषणा का आह्वान बताया है. 11 अप्रैल से पहले चरण का चुनाव शुरू होगा और 23 मई को नतीजे आयेंगे. कूल 7 चरणों में चुनाव होने हैं.
लोकसभा चुनाव से पहले तमाम चैनलों के सर्वे आने शुरू हो गए हैं. बीते दिन एबीपी न्यूज़-सी वोटर के सर्वे में राजनीतिक पार्टियों की ज़मीनी स्थिति की एक झलक सामने आई है. आंकड़े बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए चिंताजनक हैं. एबीपी न्यूज़-सी वोटर के सर्वे में एनडीए को 264 सीटें मिलती हुई दिख रही हैं तो वहीं यूपीए को 138 सीटें मिल रही हैं, वहीं अन्य दलों को 138 सीटें दी गई हैं. सर्वे के मुताबिक, बीजेपी को अपने दम पर 220 सीटें और कांग्रेस को 86 सीटें मिल सकती हैं.
बीजेपी का 'अबकी बार 300 पार' का नारा ढहता हुआ दिख रहा है. तो वहीं आम आदमी का हाथ भी कांग्रेस के साथ जाता हुआ नहीं प्रतीत होता है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि क्या देश की राजनीति का नैरेटिव पोस्ट नरसिम्हा राव के काल में पहुंचने वाली है जहां दो केंद्रीय पार्टियां सत्ता में कौन होगा इसका निर्धारण तो करेगी लेकिन खुद के स्थापित होने के लिए जरूरी आंकड़ा उनके पास नहीं होगा.
मोदी लहर अस्तित्व में नहीं
इंडिया टीवी-सीएनएक्स के सर्वे में एनडीए को बहुमत मिलता हुआ दिखाया गया था लेकिन 2014 के मुकाबले 80 सीटें फिसलती हुई दिख रही है. सर्वे के मुताबिक, एनडीए को 285, यूपीए को 126 और अन्य दलों को 132 सीटें मिलने के आसार हैं. तमाम सर्वे के एनालिसिस करने पर यह तथ्य मजबूती से उभर कर सामने आ रहा है कि इस बार देश के राजनीतिक माहौल में मोदी लहर नाम की कोई चीज नहीं है. लेकिन इसके विपरीत राहुल गांधी और उनके कांग्रेस पार्टी की चुनावी आक्रामकता भी उनके राजनीतिक पुर्नजागरण के मंसूबे को पूरा करती हुई नहीं दिख रही है.
तो फिर ऐसे में कांग्रेस के पास विकल्प क्या है? बीते साल कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई थी. कांग्रेस 78 सीटें जीत कर दूसरे स्थान पर रही थी. ऐसे में बीजेपी के तोड़-फोड़ अभियान को असफल बनाने के लिए कांग्रेस ने अपने जेडीएस को बिना शर्त समर्थन का ऑफर दिया और 37 सीटों वाली पार्टी के नेता को राज्य का मुख्यमंत्री बनने का अवसर दिया.
'कर्नाटक मॉडल' सबसे मजबूत विकल्प
त्रिशंकु संसद बनने की स्थिति में और नरेन्द्र मोदी को रोकने के लिए कांग्रेस इस बार भी 'कर्नाटक मॉडल' का विकल्प आजमा सकती है. लेकिन इसके लिए कांग्रेस को कम से कम 100 प्लस सीटें जीतने की स्थिति में आना होगा. हाल ही में आये एबीपी न्यूज़-सी वोटर और इंडिया टीवी-सीएनएक्स के सर्वे में कांग्रेस की सीटें 80-90 के बीच फंसती हुई दिख रही है.
नरेन्द्र मोदी के 'पॉलिटिकल फ्रेंड'
नरेन्द्र मोदी ने पिछले 5 सालों में दिल्ली की राजनीति को आत्मसात कर लिया है और ख़ुद का एक पॉलिटिकल सिस्टम विकसित किया है. लुटियंस मीडिया को नहीं साधने का दर्द उनके चेहरे पर साफ झलकता है, लेकिन गुजरात दंगे की साम्प्रदायिक छवि से पीएम को मुक्ति मिल चुकी है और इसका अक्स बिहार में देखने को भी मिला, जहां नीतीश कुमार ने उन्हें गले लगा कर अपना नेता स्वीकार कर लिया है. तमिलनाडु में एआइएडीएमके के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन भी बीजेपी के लिए एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है. नवीन पटनायक को नरेन्द्र मोदी की छवि से कभी कोई दिक्कत नहीं रही है.
शिव सेना चुनाव से पहले मान चुकी है और चुनावी ऊंच-नीच की स्थिति में मायावती को भी साधने में मोदी को ज्यादा परेशानी नहीं होगी. ऐसे में 50 से 60 सीटों का जुगाड़ करना नरेन्द्र मोदी के लिए अब कोई बड़ी बात नहीं है.