लोकसभा चुनावः इस बार दक्षिण राजस्थान के आदिवासी किसका साथ देंगे?

By प्रदीप द्विवेदी | Published: April 23, 2019 05:16 AM2019-04-23T05:16:53+5:302019-04-23T05:16:53+5:30

लोकसभा चुनाव 2019: पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में इस क्षेत्र में बीटीपी का उदय हुआ. बीटीपी ने विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज करवाते हुए दो विधानसभा सीटें जीत कर सबको चौंका दिया. अब इस क्षेत्र में बीटीपी की प्रभावी मौजूदगी के कारण ही कांग्रेस-बीजेपी की हार-जीत की गणित गड़बड़ा गई है.

Lok Sabha Election 2019, BJP, Congress: Who will accompany tribals of South Rajasthan this time? | लोकसभा चुनावः इस बार दक्षिण राजस्थान के आदिवासी किसका साथ देंगे?

देखना दिलचस्प होगा कि- इस बार दक्षिण राजस्थान के आदिवासी किसका साथ देंगे?

Highlightsसातवें दशक में जनता पार्टी के समय से गैर-कांग्रेसियों की ताकत फिर से बढ़ने लगी.आजादी के बाद इस क्षेत्र पर कांग्रेस का विशेष प्रभाव रहा, लिहाजा इस क्षेत्र की ज्यादातर सीटें कांग्रेस के खाते में जाती रही.

दक्षिण राजस्थान की चार में से दो सीटें पूरी तरह से आदिवासी मतदाताओं के सियासी रूख पर निर्भर हैं, तो शेष दो सीटों पर उनका आंशिक असर है. विस चुनाव 2018 के नतीजे बताते हैं कि बदले हुए राजनीति हालात में न तो ये चारों सीटें फिर से जीतना बीजेपी के लिए संभव है और न ही कांग्रेस के लिए आसान है.

आजादी के बाद इस क्षेत्र पर कांग्रेस का विशेष प्रभाव रहा, लिहाजा इस क्षेत्र की ज्यादातर सीटें कांग्रेस के खाते में जाती रही. पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया, पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी, भीखाभाई आदि के प्रभाव के कारण गैर-कांग्रेसियों को इस क्षेत्र में पैर जमाने में बहुत लंबा वक्त लगा. अलबत्ता, कुशलगढ़ और आसपास के क्षेत्र में समाजवादी नेता मामा बालेश्वर दयाल और डूंगरपुर में पूर्व महारावल लक्ष्मणसिंह के प्रभाव के कारण गैर-कांग्रेसियों का भी प्रतिनिधित्व जरूर बना रहा.

बांसवाड़ा के पहले प्रधानमंत्री भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी, केशवचन्द्र भ्राता, श्रीपतिराय दवे, नवनीत लाल निनामा, उदयलाल निनामा आदि के कारण गैर-कांग्रेसियों की मौजूदगी का अहसास तो होता रहा, लेकिन गैर-कांग्रेसियों का प्रतिनिधित्व लगातार कम होता गया.

सातवें दशक में जनता पार्टी के समय से गैर-कांग्रेसियों की ताकत फिर से बढ़ने लगी. इस दौर में भी राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी को तो विस चुनाव हराना संभव नहीं हो पाया, लेकिन वर्ष 1977 में पहली बार राजकीय महाविद्यालय, बांसवाड़ा में एबीवीपी के विनोद काटुआ अध्यक्ष बने. गुलाबचन्द कटारिया, श्रीपतिराय दवे, नवनीतलाल निनामा, उदयलाल निनामा, कनकमल कटारा, भवानी जोशी, उमेश पटियात जैसे नेताओं की इस क्षेत्र में सक्रियता से बीजेपी को मजबूती तो मिली, लेकिन इस क्षेत्र में बीजेपी को असली ताकत संघ विचारधारा आधारित स्कूलों के विस्तार से मिली. इसी ताकत की बदौलत इस क्षेत्र में आज भी बीजेपी की प्रभावी मौजूदगी हैं.

पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में इस क्षेत्र में बीटीपी का उदय हुआ. बीटीपी ने विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज करवाते हुए दो विधानसभा सीटें जीत कर सबको चौंका दिया. अब इस क्षेत्र में बीटीपी की प्रभावी मौजूदगी के कारण ही कांग्रेस-बीजेपी की हार-जीत की गणित गड़बड़ा गई है.

जहां बीजेपी, पीएम नरेन्द्र मोदी की उदयपुर, चित्तौड़गढ़ सभा, तो कांग्रेस राहुल गांधी की बेणेश्वर सभा (बांसवाड़ा-डूंगरपुर) के माध्यम से मेवाड़-वागड़ की चार सीटों को प्रभावित करने की कोशिश कर रही हैं. बीटीपी भी अपनी पूरी ताकत के साथ चुनाव प्रचार में जुटी है. देखना दिलचस्प होगा कि- इस बार दक्षिण राजस्थान के आदिवासी किसका साथ देंगे?

Web Title: Lok Sabha Election 2019, BJP, Congress: Who will accompany tribals of South Rajasthan this time?



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