लोकसभा चुनावः अरविंद केजरीवाल लड़ रहे हैं सियासी अस्तित्व की महत्वपूर्ण लड़ाई!

By प्रदीप द्विवेदी | Published: February 24, 2019 09:51 PM2019-02-24T21:51:17+5:302019-02-24T21:51:17+5:30

देश में सियासी कामयाबी का परचम लहराने के इरादे से अरविंद केजरीवाल ने इन पांच वर्षों में अनेक प्रयास किए, लेकिन देश तो मिला नहीं, दिल्ली हाथ से निकलने की तैयारी में है, और इसीलिए उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही है.

lok sabha election 2019: Arvind Kejriwal is fighting political existence of Aam Aadmi Party | लोकसभा चुनावः अरविंद केजरीवाल लड़ रहे हैं सियासी अस्तित्व की महत्वपूर्ण लड़ाई!

लोकसभा चुनावः अरविंद केजरीवाल लड़ रहे हैं सियासी अस्तित्व की महत्वपूर्ण लड़ाई!

Highlightsदिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए अपनी बात को प्रभावी ढंग से रखने के लिए सीएम अरविंद केजरीवाल 1 मार्च से अनिश्चित कालीन उपवास पर बैठेंगे!देश में तो आप और अरविंद केजरीवाल के लिए कोई खास संभावनाएं बची नहीं है, परन्तु यदि दिल्ली भी हाथ से निकल गई, तो आप राजनीतिक इतिहास का एक अध्याय बन कर रह जाएगी.

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए अपनी बात को प्रभावी ढंग से रखने के लिए सीएम अरविंद केजरीवाल 1 मार्च से अनिश्चित कालीन उपवास पर बैठेंगे!

देश में सियासी कामयाबी का परचम लहराने के इरादे से अरविंद केजरीवाल ने इन पांच वर्षों में अनेक प्रयास किए, लेकिन देश तो मिला नहीं, दिल्ली हाथ से निकलने की तैयारी में है, और इसीलिए उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही है.

वर्ष 2014 में सोशल मीडिया के दम पर दो राजनेताओं- पीएम नरेन्द्र मोदी और सीएम अरविंद केजरीवाल, ने बड़ी राजनीतिक छलांग लगाई थी, परन्तु गुजरते समय के साथ अब इसका असर उतार पर है. 

यही वजह है कि सीएम केजरीवाल एक ओर तो कांग्रेस का साथ पाने को बेकरार हैं, तो दूसरी ओर इस प्रयास में हैं कि कैसे भी हो, जनता और समर्थकों में 2014 वाला जोश फिर से जगाया जाए. प्रमुख प्रश्न यह है कि नए राजनीतिक माहौल में पुरानी सियासी तकनीक कितनी काम आएगी?

वैसे तो जितने भी सर्वे आ रहे हैं वे यही बता रहे हैं कि अनेक प्रमुख नेताओं के आप से दूर हो जाने के बावजूद दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की पकड़ मजबूत है, किन्तु जरा-सी गड़बड़ी बहुत बड़ी राजनीतिक परेशानी खड़ी कर देगी, जिससे आप के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लग सकता है.

देश में तो आप और अरविंद केजरीवाल के लिए कोई खास संभावनाएं बची नहीं है, परन्तु यदि दिल्ली भी हाथ से निकल गई, तो आप राजनीतिक इतिहास का एक अध्याय बन कर रह जाएगी, क्योंकि अरविंद केजरीवाल से आगे आप की कोई बड़ी पहचान नहीं है और न ही देश में कोई बड़ा जमीनी आधार है.

लोकसभा चुनाव से पहले माहौल बनाने की तैयारी 

इस वक्त दिल्ली में त्रिकोणात्मक संघर्ष की स्थिति है, जहां लंबे समय से बीजेपी मजबूत जरूर है, लेकिन उसकी हार-जीत आप और कांग्रेस के वोटों के बंटवारे पर निर्भर है. पिछली बार कांग्रेस का मतदाता आप की ओर चला गया तो आप जीत गई, किन्तु अब ऐसी स्थिति नहीं है. कांग्रेस मजबूत तो हुई ही हैं, लोस चुनाव में दिल्लीवासी आप की कोई बड़ी भूमिका भी नहीं देख पा रहे हैं.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आप का ज्यादा वोट कांग्रेस की ओर गया तो कांग्रेस जीत जाएगी, और यदि आप-कांग्रेस में वोट बराबर-बराबर बंट गया तो बीजेपी कामयाबी दर्ज करवा लेगी. लोस चुनाव में आप के लिए सीटें जीतना तो मुश्किल है ही, दिल्ली में आप की वास्तविक ताकत एक्सपोज होने का खतरा भी है.

अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस का साथ इसीलिए चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस, अरविंद केजरीवाल को साथ लेकर आप कोे फिर से खड़ा करने में सहयोग क्यों देगी?

यदि, आप और कांग्रेस मिलकर लोस चुनाव नहीं लड़ते हैं, तो कांग्रेस को कुछ सीटों का ही नुकसान होगा, परन्तु आप का तो राजनीतिक भविष्य ही दांव पर लग जाएगा.

लोस चुनाव में सीएम केजरीवाल को ताकत दिखाना इसलिए भी जरूरी है कि इसके बाद दिल्ली विस चुनाव होने हैं और तब 2015 की कामयाबी दोहराना आप के लिए बेहद मुश्किल हो जाएगा.

लोस चुनाव के मद्देनजर सीएम केजरीवाल सक्रिय हो गए हैं. एक तरफ कांग्रेस को गठबंधन के संदेश भेज रहे हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी पर निशाना साध रहे हैं.

सीएम केजरीवाल का कहना है कि- पीएम नरेंद्र मोदी ने दिल्ली को पूर्ण राज्य देने के मामले में लोगों से झूठ बोला. इस मुद्दे पर दिल्ली के लोग अब और अन्याय बर्दाश्त नहीं करेंगे. 

उनका यह भी कहना है कि- यह झूठा बहाना है कि देश की राजधानी होने की वजह से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता. यह बहाना इसलिए नहीं चलेगा, क्योंकि दिल्ली के लोग पूरे एनडीएमसी एरिया का कंट्रोल केंद्र सरकार को देने के लिए तैयार हैं, किन्तु बाकी दिल्ली, जहां एक चुनी हुई सरकार है, को केंद्र सरकार के अधीन नहीं छोड़ा जा सकता. 

अनिश्चितकालीन उपवास सत्ता के लिए या दिल्ली के लिए 

सीएम केजरीवाल का यह भी कहना है कि- पीएम मोदी सरकार, दिल्ली की चुनी हुई सरकार को गैर-न्यायोचित तरीके से हस्तक्षेप किये बिना काम करने दे और दिल्ली सरकार के कामकाज में अड़ंगा लगाना बंद कर दे, इसको लेकर सारे संभव विकल्प आजमाए गये, परन्तु उसमें कोई सफलता नहीं मिली. इसलिए पूर्ण राज्य के लिए 1 मार्च से अनिश्चित कालीन उपवास पर बैठने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है. 

बहरहाल, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए अनशन पर तो बैठेंगे सीएम केजरीवाल, परन्तु उनको कितना समर्थन मिल पाता है, इसी पर निर्भर है, आगे का सियासी समीकरण.

सियासी सयानों का मानना है कि क्योंकि इस मुद्दे का तत्काल कोई समाधान नहीं निकलना है, इसलिए इससे माहौल तो तैयार किया जा सकता है, लेकिन कोई ठोस परिणाम मिलना संभव नहीं है, और खास सवाल यह भी है कि- यदि अन्ना के ताजा अनशन की तरह विशेष समर्थन नहीं मिला और कोई प्रभावी समाधान भी नहीं निकला, तो सीएम केजरीवाल क्या करेंगे?

Web Title: lok sabha election 2019: Arvind Kejriwal is fighting political existence of Aam Aadmi Party