कश्मीर में धारा 370 को हटाए जाने के बाद कानून-व्यवस्था की स्थिति में आया सुधार, केंद्रीय गृह मंत्रालय और JK पुलिस ने जारी किए आंकड़े
By रुस्तम राणा | Published: August 5, 2022 08:38 PM2022-08-05T20:38:44+5:302022-08-05T20:43:25+5:30
घाटी में अलगाववादियों और धार्मिक चरमपंथियों पर लगातार दबाव बनाने से 5 अगस्त 2019 के बाद से कानून-व्यवस्था की घटनाओं में 600 प्रतिशत की गिरावट आई है।
श्रीनगर: मोदी सरकार द्वारा जम्मू कश्मी से अनुच्छेद 370 और 35 ए को निरस्त करने के तीन साल बाद केंद्र शासित प्रदेश में सुरक्षा की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है। केंद्रीय गृह मंत्रालय और जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा जारी किए गए 2016-2018 और 2019-2021 के बीच आंकड़ों से इसकी जानकारी मिलती है।
गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और जेकेपी पुलिस के डीजीपी दिलबाग सिंह के नेतृत्व में घाटी में अलगाववादियों और धार्मिक चरमपंथियों पर लगातार दबाव बनाने से 5 अगस्त 2019 के बाद से कानून-व्यवस्था की घटनाओं में 600 प्रतिशत की गिरावट आई है।
राज्य से धारा 370 हटाने के तीन साल बाद गृह मंत्रालय और जेकेपी द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, अगर दो तीन साल की अवधि की तुलना की जाए तो चरमपंथ से संबंधित घटनाओं में 21 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। जबकि 31 जुलाई, 2022 तक, कश्मीर और जम्मू क्षेत्रों में 166 आतंकवादी (86 स्थानीय और 80 विदेशी नागरिक) सक्रिय हैं।
वर्ष 2021 में आतंकी संगठनों के 44 शीर्ष कमांडर मारे गए थे और अब तक 18 शीर्ष आतंकवादी कमांडर मारे गए हैं। आतंकवाद विरोधी अभियानों में तेजी लाते हुए पिछले एक दशक में कम से कम 11 सुरंगों का पता लगाया गया है जिनमें 7 क्रॉस-एलओसी सुरंगें सांबा में, दो कठुआ में और दो जम्मू सेक्टर में पाई गई हैं।
हालांकि, कानून और व्यवस्था की स्थिति में सुधार का प्रमुख संकेतक यह है कि कश्मीर में ऐसी घटनाओं में पिछले तीन वर्षों की तुलना में जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद से 600 प्रतिशत की गिरावट आई है।
डेटा 5 अगस्त 2016 से 4 अगस्त 2019 तक दिखाता है, इस दौरान घाटी में 4,894 कानून-व्यवस्था की घटनाएं देखी गईं। जबकि 5 अगस्त, 2019 से तीन वर्षों में घाटी में केवल 804 ऐसी घटनाएं दर्ज की गईं।
डेटा यह भी दर्शाता है कि 5 अगस्त, 2019 से पहले के तीन वर्षों में कश्मीर में आतंकवाद से संबंधित घटनाओं में 126 नागरिक मारे गए थे, जबकि अगले तीन वर्षों में 116 नागरिक मारे गए ।