लद्दाख में नई आबकारी नीति, अब शराब के ठेके स्थानीय लोगों को ही मिलेंगे, जानें पूरी डिटेल
By सुरेश एस डुग्गर | Published: September 12, 2021 01:26 PM2021-09-12T13:26:40+5:302021-09-12T13:26:40+5:30
लद्दाख में उप राज्यपाल प्रशासन ने नई आबकारी नीति लागू कर दी है। इसके तहत शराब उत्पादन और बिक्री से जुड़े लाइसेंस छह श्रेणियों में जारी होंगे।
जम्मू: लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन द्वारा पहले ही नौकरियां सिर्फ स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित किए जाने से जम्मू कश्मीर में बवाल मचा हुआ था और अब उसने शराब के ठेकों पर भी स्थानीय नागरिकों का अधिकार होने का निर्देश जारी कर जम्मू कश्मीर में जबरदस्त हलचल मचा दी है।
लद्दाख में नई आबकारी नीति
लद्दाख में उप राज्यपाल प्रशासन ने नई आबकारी नीति लागू कर दी है। अधिसूचना के अनुसार नई आबकारी नीति को एक सितंबर 2021 से 31 मार्च 2022 तक प्रभावी किया गया है।
नीति के तहत शराब उत्पादन और बिक्री से जुड़े लाइसेंस छह श्रेणियों में जारी होंगे। इसमें ए और बी श्रेणी के तहत शराब परोसने के लिए लाइसेंस केवल लद्दाख के निवासी को ही मिलेगा।
लाइसेंस को जम्म -कश्मीर एक्साइज एक्ट 1958 और लद्दाख लिकर लाइसेंस एंड सेल रूल्स 2021 के तहत जारी किया जाएगा। नई नीति के तहत लाइसेंस के लिए ए,बी,सी,डी,ई और एफ श्रेणियां निर्धारित की गई हैं। लाइसेंस शुल्क दो से छह लाख रुपये निर्धारित किया गया है।
बता दें कि 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर को दो भाग में किए जाने के साथ ही लद्दाख को भी केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था। लद्दाखियों ने पर नौकरियों व जमीन के प्रति केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए सभी कानूनों को नकार दिया था। इस मुद्दे पर करगिल और लेह जिले के लोग एकजुट हुए तो कई बार बंद का आह्वान भी किया गया।
नतीजतन अब एक बार फिर लद्दाख में स्टेट सब्जेक्ट लौट चुका है। दरअसल तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य के निवासियों को निवास प्रमाण पत्र के तौर पर स्टेट सब्जेक्ट दिया जाता था जिसके आधार पर वे राज्य में जमीन खरीदने और सरकारी नौकरी पाने के हकदार होते थे।
वर्तमान जम्मू कश्मीर यूटी में ऐसा नहीं है। जमीन व नौकरी के प्रति बनाए गए कानूनों के खिलाफ सुलग रही चिंगारी को लद्दाख में लागू किए गए ताजा कानून ने हवा दे दी है। इसको लेकर कश्मीरी नेता एकजुट हो गए हैं। वैसे एक बार जम्मू कश्मीर में डोमिसाइल के मुद्दे पर कुछ दिन आंदोलन हो चुका है, जिसमें सबसे ज्यादा भागीदारी कश्मीरियों की ही थी।