कोरेगांव-भीमा पर कोहराम, कई पर ‘शहरी नक्सली’ होने का आरोप लगा, पक्ष-विपक्ष में ठनी
By भाषा | Published: December 4, 2019 06:59 PM2019-12-04T18:59:31+5:302019-12-04T18:59:31+5:30
महाराष्ट्र सरकार में मंत्री एवं राकांपा नेता जयंत पाटिल ने यहां पत्रकारों से कहा, ‘‘हमें कई लोगों से ज्ञापन मिला था जिसमें दावा किया गया था कि उन्हें कोरेगांव-भीमा (हिंसा) मामले में गलत तरीके से फंसाया गया है। ऐसे कदम पहले भी उठाए गए थे।’’
महाराष्ट्र सरकार में मंत्री एवं राकांपा नेता जयंत पाटिल ने बुधवार को कहा कि महाराष्ट्र विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार 2018 के कोरेगांव-भीमा हिंसा से संबंधित मामलों में गलत तरीके से फंसाए गए लोगों को राहत देने के पक्ष में है।
पाटिल ने कहा, हालांकि इस संबंध में फैसला लेने का अधिकार मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का है क्योंकि मंत्रियों को अब तक विभाग आवंटित नहीं हुए हैं। पाटिल ने यहां पत्रकारों से कहा, ‘‘हमें कई लोगों से ज्ञापन मिला था जिसमें दावा किया गया था कि उन्हें कोरेगांव-भीमा (हिंसा) मामले में गलत तरीके से फंसाया गया है। ऐसे कदम पहले भी उठाए गए थे।’’
Maharashtra Minister Jayant Patil on Bhima Koregaon violence case: We are not looking at any blanket withdrawal of cases.We are only talking of non-serious offences where commoners somehow got involved. pic.twitter.com/3Bw3cVHQmR
— ANI (@ANI) December 4, 2019
उन्होंने कहा, ‘‘सरकार चाहती है कि किसी के साथ अन्याय नहीं हो... सरकार किसी को परेशान नहीं करना चाहती... सरकार का मकसद मामलों में गलत तरीके से फंसाए गए लोगों को राहत देना है।’’ पाटिल ने कहा कि हिंसा मामले में अगर कोई जानबूझकर भूमिका निभाएगा तो सरकार उसका समर्थन नहीं करेगी।
एक जनवरी, 2018 को पुणे जिले में कोरेगांव-भीमा गांव में हिंसा भड़क उठी थी जिससे एक दिन पहले ही ‘एल्गार परिषद’ ने पेशवाओं और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच मशहूर लड़ाई के 200 साल पूरा होने के अवसर पर एक सम्मेलन का आयोजन किया था जिसमें कथित रूप से भड़काऊ भाषण दिए गए थे।
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन इससे भ्रम पैदा करने की जरूरत नहीं है और सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि मैं कोई महाराष्ट्र का गृह मंत्री नहीं बना हूं। जब तक विभाग आवंटित नहीं किए जाते तब तक सारे अधिकार मुख्यमंत्री के पास हैं।’’
उल्लेखनीय है कि राकांपा विधायक धनंजय मुंडे ने मंगलवार को कोरेगांव-भीमा हिंसा से संबंधित मामलों को वापस लेने की मांग की थी और दावा किया था कि भाजपा के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती राजग सरकार ने सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत घटना में नामित लोगों के खिलाफ ‘‘गलत’’ मामले लगाए थे।
उद्धव ठाकरे को लिखे पत्र में मुंडे ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार ने अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज उठाने वाले बुद्धिजीवियों, कार्यकर्ताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों को ‘‘प्रताड़ित’’ किया तथा इनमें से कई पर ‘‘शहरी नक्सली’’ होने का आरोप लगाया गया।