जानें सेना में मुस्लिम रेजिमेंट का सच क्या है?, अफवाह के खिलाफ पूर्व सैनिकों ने लिखा राष्ट्रपति को खत
By अनुराग आनंद | Published: October 16, 2020 06:51 AM2020-10-16T06:51:38+5:302020-10-16T06:51:38+5:30
अपने पत्र में पूर्व सैनिकों ने यह भी लिखा कि हम यह बताना चाहते हैं कि भारतीय सेना की कई रेजिमेंट्स में मौजूद मुस्लिम सैनिक देश के लिए बहादुरी से लड़े हैं। ऐसे में सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही झूठी बातों को लेकर तुरंत कार्रवाई की जाए।
नयी दिल्ली: इन दिनों सोशल मीडिया पर तेजी से एक अफवाह सर्कुलेट हो रही है कि 1965 में भारत व पाकिस्तान के साथ हुए जंग में मुस्लिम रेजीमेंट ने लड़ाई लड़ने से इनकार कर दिया था। सोशल मीडिया पर साझा किए जा रहे इस तरह के गलत पोस्ट के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भारतीय सेना के पूर्व अधिकारियों ने पीएम नरेंद्र मोदी व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को खत लिखा है।
मिल रही जानकारी के मुताबिक, सशस्त्र बलों के 120 अवकाशप्राप्त अधिकारियों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर उन सोशल मीडिया पोस्ट और इन्हें प्रसारित करने वालों पर कार्रवाई की मांग की है जिनके जरिए अफवाह फैलाई जा रही है कि 1965 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई के दौरान भारतीय सेना की मुस्लिम रेजीमेंट ने लड़ाई करने से इनकार कर दिया था।
पूर्व अधिकारियों ने अपने पत्र में क्या लिखा?
पूर्व अधिकारियों द्वारा बुधवार को राष्ट्रपति के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह लिखे पत्र में इस बात का आह्वान किया गया है कि सरकार उन लोगों की जांच करे जिन्होंने ‘मुस्लिम रेजिमेंट’ संबंधी पोस्ट जारी किए और उनके खिलाफ निष्पक्ष एवं सख्त कार्रवाई की जाए।
पूर्व नौसेना अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण रामदास, अवकाशप्राप्त लेफ्टिनेंट जनरल रामदास मोहन, अवकाशप्राप्त लेफ्टिनेंट जनरल आरके नानावटी, अवकाशप्राप्त लेफ्टिनेंट जनरल विजय ओबराय और अन्य ने कहा, ‘‘मुस्लिम रेजिमेंट संबंधी पोस्ट झूठा है क्योंकि न तो 1965 में या उसके बाद भारतीय सेना में इसका अस्तित्व रहा।
भारतीय सेना की कई रेजिमेंट्स में मौजूद मुस्लिम सैनिक देश के लिए बहादुरी से लड़े हैं-
अपने पत्र में पूर्व सैनिकों ने यह भी लिखा कि हम यह बताना चाहते हैं कि भारतीय सेना की कई रेजिमेंट्स में मौजूद मुस्लिम सैनिक देश के लिए बहादुरी से लड़े हैं। 1965 की लड़ाई में सम्मान पाने वालों में हवलदार अब्दुल हमीद (परमवीर चक्र), मेजर (बाद में ले. कर्नल) मोहम्मद जकी (वीर चक्र), मेजर अब्दुल राफे खान (वीर चक्र) शामिल हैं।
इससे पहले भारत की आजादी के वक्त 1947 में बलूच रेजिमेंट के ब्रिगेडियर रहे मोहम्मद उस्मान ने कश्मीर में पाकिस्तान को घुसने से रोकने के लिए अपनी जान दे दी। वह 1948 में शहीद होने वाले सबसे सीनियर अधिकारी थे। ऐसे में इस तरह के पोस्ट एक समुदाय के प्रति लोगों में विश्वास को कम करने वाला है।
(भाषा इनपुट)