क्षीर भवानी के लिए रवाना हुए कश्मीरी पंडित, जो कश्मीर नहीं जा सके वे जम्मू में ही क्षीर भवानी की पूजा करेंगे
By सुरेश एस डुग्गर | Published: May 26, 2023 05:23 PM2023-05-26T17:23:14+5:302023-05-26T17:27:59+5:30
ज्येष्ठ अष्टमी पर जम्मू के भवानी नगर स्थित माता राघेन्या के मंदिर में भी क्षीर भवानी मेला लगता है। जो लोग कश्मीर नहीं जा पाते, वे यहां पर आकर हाजिरी लगाते हैं। यहां पर मेले की तैयारियां शुरू हो गई हैं। पूरे मंदिर परिसर को सजाया गया है। जहां पर जलाए जाने के लिए सैकड़ों दीप का बंदोबस्त किया गया है।
जम्मू: कश्मीर में जी-20 की बैठक के बाद दहशतजदा माहौल का असर यह है कि आतंकी हमलों के डर से जो कश्मीरी पंडित इस बार तुलमुला स्थित क्षीर भवानी के मंदिर में पूजा अर्चना के लिए नहीं जा सके वे जम्मू में बनाए गए माता राघेन्या के मंदिर में पूजा अर्चना करेंगे। क्षीर भवानी में रविवार 28 मई को हजारों कश्मीरी पंडित और मुस्लिम जुटेंगे।
शुक्रवार को सुरक्षा के साथ बसों में सवार होकर कश्मीरी पंडित परिवार जम्मू से रवाना हुए। जम्मू के मंडल आयुक्त रमेश कुमार ने झंडी दिखाकर श्रद्धालुओं को मेले के लिए रवाना किया। जबकि उधमपुर से भक्तों के जत्थे में काफी कम भक्त शामिल थे। इस बार यात्रा में काफी छोटा जत्था गया है। उधमपुर से शुक्रवार को रवाना हुए जत्थे में 6 पुरुष, 5 महिलाएं व एक बच्चा शामिल हैं।
अभी तक उधमपुर से श्रद्धालुओं की दो भरी हुई बसें जाती थी। मगर कोरोना के बाद से इसमें कमी आई है। इस बार जी-20 बैठक के चलते हालातों को लेकर कश्मीरी पंडितों में अनिश्चिता के चलते कई लोगों ने पंजीकरण नहीं कराया था। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने बृहस्पतिवार को क्षीर भवानी मंदिर के निरीक्षण के दौरान भवन निर्माण की घोषणा की। उन्होंने कहा कि गंदरबल के तुलमुला में स्थित माता क्षीर भवानी के मंदिर में भक्तों की भीड़ को देखते हुए यात्री भवन का निर्माण किया जाएगा। जिला प्रशासन और संबंधित सरकारी विभाग भवन निर्माण के लिए जल्द विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करेंगे।
जानकारी के लिए बता दें कि ज्येष्ठ अष्टमी पर जम्मू के भवानी नगर स्थित माता राघेन्या के मंदिर में भी क्षीर भवानी मेला लगता है। जो लोग कश्मीर नहीं जा पाते, वे यहां पर आकर हाजिरी लगाते हैं। यहां पर मेले की तैयारियां शुरू हो गई हैं। पूरे मंदिर परिसर को सजाया गया है। जहां पर जलाए जाने के लिए सैकड़ों दीप का बंदोबस्त किया गया है। पनुन कश्मीर के पदाधिकारियों के बकौल, 1990 में जब वादी से विस्थापित होकर कश्मीरी पंडित जम्मू में आए तो उन्होंने ही भवानी नगर में माता क्षीर भवानी का मंदिर बनाया और अब हर साल यहां मेला लगता है। मध्य कश्मीर के गंदरबल जिले के तुलमुला इलाके में स्थित क्षीर भवानी मंदिर में रविवार को वार्षिक मेले का आयोजन होने जा रहा है। इसमें शामिल होने के लिए कड़ी सुरक्षा में मात्र कुछेक बसों में कश्मीरी पंडित परिवार जम्मू से रवाना हुए।
क्षीर भवानी की कथा
क्षीर भवानी मंदिर श्रीनगर से 27 किलोमीटर दूर तुलमुल्ला गांव में स्थित है। ये मंदिर मां क्षीर भवानी को समर्पित है। यह मंदिर कश्मीर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। मां दुर्गा को समर्पित इस मंदिर का निर्माण एक बहती हुई धारा पर किया गया है। इस मंदिर के चारों ओर चिनार के पेड़ और नदियों की धाराएं हैं, जो इस जगह की सुंदरता पर चार चांद लगाते हुए नज़र आते हैं। ये मंदिर, कश्मीर के हिन्दू समुदाय की आस्था को बखूबी दर्शाता है। महाराग्य देवी, रग्न्या देवी, रजनी देवी, रग्न्या भगवती इस मंदिर के अन्य प्रचलित नाम है। इस मंदिर का निर्माण 1912 में महाराजा प्रताप सिंह द्वारा करवाया गया जिसे बाद में महाराजा हरी सिंह द्वारा पूरा किया गया।
मंदिर की एक ख़ास बात ये है कि यहां एक षट्कोणीय झरना है जिसे यहां के मूल निवासी देवी का प्रतीक मानते हैं। मंदिर से जुड़ी एक प्रमुख किवदंती ये है कि सतयुग में भगवान श्री राम ने अपने निर्वासन के समय इस मंदिर का इस्तेमाल पूजा के स्थान के रूप में किया था। निर्वासन की अवधि समाप्त होने के बाद भगवान राम द्वारा हनुमान को एक दिन अचानक ये आदेश मिला कि वो देवी की मूर्ति को स्थापित करें। हनुमान ने प्राप्त आदेश का पालन किया और देवी की मूर्ति को इस स्थान पर स्थापित किया, तब से लेकर आज तक ये मूर्ति इसी स्थान पर है।
इस मंदिर के नाम से ही स्पष्ट है यहां क्षीर अर्थात ‘खीर’ का एक विशेष महत्त्व है और इसका इस्तेमाल यहां प्रमुख प्रसाद के रूप में किया जाता है। क्षीर भवानी मंदिर के सन्दर्भ में एक दिलचस्प बात ये है कि यहां के स्थानीय लोगों में ऐसी मान्यता है कि अगर यहां मौजूद झरने के पानी का रंग बदल कर सफ़ेद से काला हो जाये तो पूरे क्षेत्र में अप्रत्याशित विपत्ति आती है। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ (मई-जून) के अवसर पर मंदिर में वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जाता है। यहां मई के महीने में पूर्णिमा के आठवें दिन बड़ी संख्या में भक्त एकत्रित होते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस शुभ दिन पर देवी के कुंड का पानी बदला जाता है। ज्येष्ठ अष्टमी और शुक्ल पक्ष अष्टमी इस मंदिर में मनाये जाने वाले कुछ प्रमुख त्यौहार हैं।