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कश्मीरः ‘चिल्ले कलां’ से पहले ही कांपने लगी घाटी, बदला मौसम का चक्र

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: November 15, 2021 16:54 IST

कश्मीरियों के लिए समय चक्र बदलने लगा है। आतंकवादी गतिविधियों से उन्हें फिलहाल पूरी तरह से निजात नहीं मिल पाई है लेकिन कुदरत के बदलते चक्र ने उनकी झोली खुशियों से भरनी आरंभ कर दी है।

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ठळक मुद्देचिल्लेकलां करीब 40 दिनों तक चलता है चिल्लेकलां के दौरान 1986 में कश्मीर में तापमान शून्य ये 9 डिग्री नीचे गया था

जम्मू: कश्मीर में चिल्ले कलां (भयानक सर्दी का मौसम) का आगमन अभी बहुत दूर है पर इसका असर कुछ-कुछ दिखने लगा है। कश्मीरी अभी ठंड से चिल्लाने लगे हैं। ऐसे में उन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि इस बार चिल्ले कलां के दौरान कितनी भयानक सर्दी पड़नेवाली है।

बीच नवंबर में ही कश्मीरियों के लिए समय चक्र बदलने लगा है। आतंकवादी गतिविधियों से उन्हें फिलहाल पूरी तरह से निजात नहीं मिल पाई है लेकिन कुदरत के बदलते चक्र ने उनकी झोली खुशियों से भरनी आरंभ कर दी है। यही कारण है कि अब कश्मीर में चिल्ले कलां के प्रथम दिन ही होने वाली बर्फबारी से कश्मीर घाटी चिल्ला उठती है क्योंकि चिल्लेकलां की शुरुआत भयानक सर्दी से होती है।

कश्मीर में 21 और 22 दिसम्बर की रात से सर्दी के मौसम की शुरुआत मानी जाती है। करीब 40 दिनों तक के मौसम को चिल्ले कलां कहा जाता है। और इस दिन हुई बर्फबारी कई सालों के बाद सही समय पर हुई है। नतीजतन कुदरत का समय चक्र सुधरा तो कश्मीरियों की परेशानियां बढ़ गई क्योंकि पिछले कई सालों से बर्फबारी के समय पर न होने के कारण वे चिल्ले कलां को ही भुला बैठे थे।

40 दिनों तक चलता है चिल्लेकलां

चिल्ले कलां करीब 40 दिनों तक चलता है और उसके बाद चिल्ले खुर्द और फिर चिल्ले बच्चा का मौसम आ जाता है। अभी तक चिल्ले कलां के दौरान 1986 में कश्मीर में तापमान शून्य ये 9 डिग्री नीचे गया था जब विश्व प्रसिद्ध डल झील दूसरी बार जम गई थी। वैसे चिल्ले कलां के दौरान कश्मीर के तापमान में जो गिरावट देखी गई है उसके मुताबिक तापमान शून्य से 5 व 7 डिग्री ही नीचे जाता है।

हालांकि समय चक्र के सुधार से कश्मीर में पानी की किल्लत और बिजली की कमी जैसी परेशानियों से निजात मिलने की उम्मीद तो जगती है लेकिन कश्मीरी परेशानियों के दौर से गुजरने को मजबूर इसलिए हो जाते हैं क्योंकि पिछले कई सालों से मौसम के खराब रहने के कारण राजमार्ग के बार-बार बंद रहने का परिणाम यह होता है कि कश्मीरियों को चिंता इस बात की रहती है कि उन्हें खाने पीने की वस्तुओं की भारी कमी का सामना किसी भी समय करना पड़ सकता है।

पहले चिल्ले कलां के शुरू होने से पहले ही कश्मीरी सब्जियों को सुखा कर तथा अन्य चीजों का भंडारण कर लेते थे मगर कई सालों से मौसम चक्र के गड़बड़ रहने के कारण वे इसे भुला बैठे थे। और अब तो राजमार्ग के बार-बार बंद होने से घाटी में रोजमर्रा की वस्तुओं की आपूर्ति समय पर न होने के कारण उन्हें कई बार महंगे दामों पर खाने पीने की वस्तुएं खरीदनी पड़ती हैं।

फिलहाल सर्दी से कोई राहत भी नहीं मिल पा रही है। अनुमान इस बार का यह है कि सर्दी अपना भयानक रूप दिखा सकती है। वैसे भी कुछ सालों से मौसम की पश्चिमी गड़बड़ियों के कारण कश्मीर कभी बर्फीले सुनामी के दौर से गुजरता है तो कभी बाढ़ से कश्मीरियों को सामना करना पड़ रहा है।

टॅग्स :जम्मू कश्मीरविंटर
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