मक्कल निधि मय्यम के एक साल, राजनीति में कमल हासन के अस्तित्व की लड़ाई है लोकसभा चुनाव
By हर्ष वर्धन मिश्रा | Published: February 23, 2019 12:53 AM2019-02-23T00:53:21+5:302019-02-23T00:53:21+5:30
2019 के लोकसभा चुनाव के मैदान से तमिल फिल्मों के मेगा स्टार रजनीकांत के हटने के बाद अगर अभिनेता से नेता बने कमल हासन यह सोच रहे हों
2019 के लोकसभा चुनाव के मैदान से तमिल फिल्मों के मेगा स्टार रजनीकांत के हटने के बाद अगर अभिनेता से नेता बने कमल हासन यह सोच रहे हों कि उनका रास्ता आसान हो, तो वह गलतफहमी में हैं. यह सही है कि 21 फरवरी 2018 को ‘मक्कल निधि मय्यम’ नामक पार्टी बनाकर कमल हासन ने राजनीतिक पारी की शुरुआत की और अभिनय छोड़कर एक साल से वह लगातार अपनी पार्टी के लिए जमीन बनाने की कोशिश कर रहे हैं, मगर 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें शायद ही बड़ी सफलता मिल सके. तमिलनाडु की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता के देहांत के बाद एक बड़ा शून्य पैदा हो गया है. अन्नाद्रमुक के पास आगामी चुनावों में मतदाता के सामने जाने के लिए जयललिता जैसा लोकप्रिय चेहरा नहीं है.
मुख्यमंत्री पलानी स्वामी और उपमुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम में जयललिता जैसा करिश्मा नहीं है और न ही मतदाताओं को आकर्षित करने की क्षमता. जयललिता की जगह भरने की उम्मीद के साथ रजनीकांत और कमल हासन ने राजनीति में कदम रखा. रजनीकांत को जल्दी ही समझ में आ गया कि राजनीति आसान नहीं है. वह भाजपा, कांग्रेस, द्रमुक या तमिलनाडु की अन्य प्रमुख दलों के निशाने पर नहीं आना चाहते थे. पार्टी को खड़ा करने और उसके बाद मतदाताओं से निरंतर संपर्क करने के लिए जितनी मेहनत करनी पड़ती है, शायद उनके लिए यह संभव नहीं था. इसीलिए वह चुपचाप कन्नी काट गए.
रजनीकांत के बाद मैदान में बचे दूसरे सुपर स्टार कमल हासन के पास न तो जन सेवा और न ही राजनीति का कोई अनुभव है. कमल तमिल फिल्मों में रजनीकांत के बाद दूसरे सबसे लोकप्रिय कलाकार रहे हैं लेकिन फिल्मों में आम आदमी के लिए संघर्ष करने वाले नायक या व्यवस्था से लोहा लेने अथवा उसे बदलने वाले क्रांतिकारी की उनकी छवि कभी नहीं रही. वह पर्दे पर आदर्श प्रेमी बनकर आते रहे. पिछले कुछ वर्षो से वह प्रयोग धर्मी फिल्में बना रहे हैं. उनके पूर्व एम.जी. रामचंद्रन क्रांतिकारी नायक की छवि बनाने में सफल रहे. साथ ही वह पहले द्रमुक के झंडे तले अन्नादुरई के नेतृत्व में वर्षो से जन आंदोलनों में सक्रिय रहे. जयललिता को भी उन्होंने राजनीति में पारंगत बनाया. इसी कारण वह राजनीति में बेहद सफल रहे. दूसरी ओर फिल्मों में उनके प्रतिद्वंद्वी शिवाजी गणोशन आदर्श प्रेमी बनकर ही पर्दे पर आते रहे. जनता से सीधा सरोकार उन्होंने कभी नहीं रखा. इसीलिए वह बेहद लोकप्रिय होते हुए भी राजनीति में बुरी तरह विफल रहे. कमल हासन की भी वही हालत है.
तमिलनाडु की राजनीति भी जाति आधारित है. यहां तमिल ब्राrाण मतदाताओं की तादाद महज तीन प्रतिशत है. एमजीआर केरल के थे क्रांतिकारी नायक की छवि ने उन्हें जातिगत सीमाओं से ऊपर उठा दिया था. जयललिता ब्राrाण थीं और वह भी अपनी लोकप्रियता के कारण जाति की सीमाओं को तोड़ने में सफल रहीं. कमल हासन के साथ ऐसा होता दिखाई नहीं देता. वह द्रमुक, अन्नाद्रमुक को अपना प्रतिद्वंद्वी मान रहे हैं. वह यह मानकर भी चल रहे हैं कि जयललिता के निधन से रिक्त जगह को वह भर सकते हैं. पहली बात तो यह है कि द्रमुक कैडर आधारित पार्टी है. उसके दिवंगत मुखिया एम. करुणानिधि अपने पुत्र स्टालिन को चार दशकों से राजनीति का प्रशिक्षण दे रहे थे. जब करुणानिधि का देहांत हुआ तो उनकी जगह लेने के लिए स्टालिन तैयार हो चुके थे.
अन्नाद्रमुक के पास जयललिता जैसा चेहरा न होने के बावजूद गांव-गांव में उसका संगठन है. यही नहीं सवर्णो तथा ओबीसी का मजबूत वोट बैंक भी अन्नाद्रमुक के साथ है. कमल हासन से ये दोनों द्रविड़ पार्टियों ने दूरी बना ली है. द्रमुक ने कांग्रेस तथा अन्नाद्रमुक ने भाजपा से हाथ मिला लिया है. द्रमुक तथा अन्नाद्रमुक ने उन छोटी-छोटी पार्टियों से भी लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन किया, जिनके सीमित प्रभाव क्षेत्र हैं. जाहिर है कि ये दोनों द्रविड़ पार्टियों के साथ-साथ कांग्रेस व भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों ने भी कमल हासन को तामिलनाडु की राजनीति में बड़ी ताकत नहीं माना. राज्य की राजनीति में कमल हासन बिना संगठन और समर्पित वोट बैंक के अलग-थलग पड़ गए हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में अगर उनकी पार्टी संतोषजनक प्रदर्शन नहीं कर पाई तो उन्हें फिर बड़े पर्दे का रुख करना पड़ सकता है.