प्रियंका गांधी से मिले कफील खान, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार को लिखा पत्र, जेल में यातना का लगाया आरोप
By भाषा | Published: September 21, 2020 09:33 PM2020-09-21T21:33:12+5:302020-09-21T21:33:12+5:30
माना जाता है कि बैठक के दौरान, खान ने हिरासत के दौरान और बाद में कांग्रेस द्वारा की गई सहायता तथा समर्थन के लिए प्रियंका गांधी को धन्यवाद दिया। खान की पत्नी और बच्चे भी प्रियंका गांधी से मिले।
नई दिल्लीः जेल से रिहा होने के कुछ दिन बाद डॉक्टर कफील खान ने सोमवार को यहां कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात की। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत हिरासत में लिए गए खान को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर हाल ही में मथुरा जेल से रिहा किया गया था।
माना जाता है कि बैठक के दौरान, खान ने हिरासत के दौरान और बाद में कांग्रेस द्वारा की गई सहायता तथा समर्थन के लिए प्रियंका गांधी को धन्यवाद दिया। खान की पत्नी और बच्चे भी प्रियंका गांधी से मिले। बैठक के दौरान उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख अजय कुमार लल्लू और पार्टी के राज्य अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रमुख शाहनवाज आलम भी उपस्थित थे।
वर्ष 2017 में सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडरों की कथित कमी के कारण कई बच्चों की मृत्यु के बाद खान को गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज से निलंबित कर दिया गया था। बाद में एक विभागीय जांच में खान को अधिकतर आरोपों से मुक्त कर दिया गया था, लेकिन संशोधित नागरिकता कानून को लेकर अलीगढ़ में कथित भड़काऊ भाषण ने उन्हें मुसीबत में डाल दिया।
उन्हें कड़े एनएसए के तहत हिरासत में लिया गया था, जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस महीने की शुरुआत में अवैध करार दिया था। अपनी रिहाई के बाद, खान अपने परिवार के साथ राजस्थान गए थे। उन्होंने कहा, "राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। मेरे परिवार ने महसूस किया कि हम वहां सुरक्षित रहेंगे... मैं अपने परिवार के साथ कुछ समय बिताना चाहता था।" जेल से रिहा होने के बाद, प्रियंका गांधी ने कफील खान और उनके परिवार से फोन पर बात की थी और हरसंभव मदद का वादा किया था।
डॉ. कफील खान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञ समूह को लिखा पत्र, जेल में यातना का लगाया आरोप
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कफील खान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के समूह को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि मथुरा जेल में रहने के दौरान उन्हें ‘यातना’ दी गई थी। खान को पिछले साल सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत गिरफ्तारी के उपरांत मथुरा जेल में रखा गया था।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों को भेजे गये पत्र में कफील ने जेल में अपने साथ हुये दुर्व्यवहार का जिक्र करते हुए कहा, ''मुझे मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से प्रताड़ित किया जाता था, कई कई दिन खाना और पानी नहीं दिया जाता था। क्षमता से अधिक कैदियों से भरी जेल में रहने के दौरान मेरे साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था।''
खान ने 17 सितंबर को एक पत्र के जरिये संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों को धन्यवाद दिया। यह पत्र उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों की 26 जून 2020 की उस चिट्ठी के संदर्भ में लिखा है जिसमें इनलोगों ने भारत सरकार से उन्हें तुरंत रिहा करने की अपील की थी। यह मानवाधिकार समूह स्वतंत्र विशेषज्ञों का है और इसमें संयुक्त राष्ट्र के कर्मी शामिल नहीं हैं। खान को हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय से जमानत मिली थी।
कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून/यूएपीए के लगाना सभी मामलों में निंदनीय
खान ने सोमवार को पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा, ''राजनीतिक असंतुष्टों के विरुद्ध बिना किसी सुनवाई के कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून/यूएपीए के लगाना सभी मामलों में निंदनीय है।'' उन्होंने कहा, ''मैं उच्च न्यायालय का सम्मान करता हूं जिसने पूरी प्रक्रिया को अवैध बताते हुये मुझे जमानत दे दी । अदालत ने रासुका के तहत लगाये गये आरोपों को हटा दिया और मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मेरे भाषण से ऐसा कही नहीं लगता है कि मैंने किसी प्रकार की हिंसा को भड़काया है और न ही अलीगढ़ शहर की कानून व्यवस्था को कोई खतरा पैदा हुआ था।''
खान ने कहा, ''मैंने पत्र में लिखा है कि मुख्य न्यायाधीश ने माना कि जिलाधिकारी अलीगढ़ ने मेरे भाषण के कुछ पैरा को ही पेश किया और बाकी भाषण को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया । अदालत ने साफ किया कि उसे रासुका हटाने में कोई झिझक नहीं है और कानून की नजर में हिरासत को बढ़ाना भी ठीक नहीं है।''
इससे पहले जब वह जेल में थे तब उनकी पत्नी शबिस्तान खान ने 29 फरवरी 2020 को भारत सरकार द्वारा उन्हें गलत तरीके से हिरासत में रखने के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञ समूह को पत्र लिखा था । बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कफील खान बीआरडी मेडिकल कॉलेज में तरल ऑक्सीजन की कमी के मामले में नौ आरोपियों में से एक थे और गोरखपुर जेल में भी बंद रहे थे। गौरतलब है कि 12 से 17 जुलाई 2017 के बीच तरल ऑक्सीजन की कमी के कारण बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 70 बच्चों की मौत हो गयी थी ।