जम्मू: वर्ष 1987 के बाद पहली बार अपनी बेड़ियां तोड़ते हुए प्रतिबंधित जमायत-ए-इस्लामी ने रविवार को दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले के बुगाम इलाके में एक विशाल रैली का आयोजन किया, जहां इसके उम्मीदवारों ने वादा किया कि अगर वे चुनाव जीते तो कश्मीर, कश्मीरियों और राजनीतिक कैदियों के बारे में बात करेंगे।
मिलने वाले समाचारों के अनुसार, 1987 के बाद पहली बार कुलगाम के बुगाम इलाके में जमायते इस्लामी द्वारा आयोजित पहली रैली में हजारों लोग शामिल हुए। प्रतिबंधित होने के बावजूद जमायते इस्लामी तीन दशकों में पहली बार चुनावी मैदान में है। यह सामाजिक-धार्मिक संगठन पिछले तीन दशकों से जम्मू कश्मीर में होने वाले चुनावों से दूर रहा है।
अप्रैल-मई में हुए लोकसभा चुनावों में लोगों की भारी भागीदारी के बाद इसका हृदय परिवर्तन सामने आया, जिसमें रिकार्ड 58 प्रतिशत मतदान हुआ। इस साल फरवरी में, केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) 1967 के तहत जमायते इस्लामी (जेईआई) जम्मू कश्मीर के खिलाफ प्रतिबंध को अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ा दिया। जेईआई को पहली बार 28 फरवरी, 2019 को एमएचए द्वारा ‘गैरकानूनी संगठन’ घोषित किया गया था।
पत्रकारों के साथ बात करते हुए जेईआई उम्मीदवार सयार अहमद रेशी ने कहा कि हम यहां यह कहने के लिए आए हैं कि क्षेत्रीय राजनीतिक दलों द्वारा बनाए गए शून्य को भरने की जरूरत है। लोगों का समुद्र हमारी ताकत है। हमारे खिलाफ उंगलियां उठाई जाएंगी और हमारी आलोचना भी की जाएगी, लेकिन यह वास्तविकता है।
एक अन्य उम्मीदवार एजाज मीर ने कहा कि अगर वह चुने जाते हैं, तो वह बिना किसी समझौते के कश्मीर के लोगों की सेवा करेंगे। मीर कहते थे कि हम भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देंगे। हम पारदर्शी तरीके से काम करेंगे। हम कश्मीर और कश्मीरियों के बारे में बात करेंगे। हम विधानसभा में लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करेंग।
याद रहे कुलगाम का बुगाम इलाका चुनावों के बहिष्कार के लिए जाना जाता था, लेकिन आज जमायते इस्लामी की रैली में लोगों की भारी भीड़ ने कश्मीर से लेकर दिल्ली तक लोगों की भौंहें चढ़ा दी हैं। जमायते इस्लामी द्वारा मैदान में उतारे गए उम्मीदवार इस उम्मीद के साथ स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ रहे हैं कि अगर वे चुने गए तो जमायते इस्लामी पर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए लड़ेंगे।
जमायत-ए-इस्लामी के पैनल प्रमुख गुलाम कादिर वानी ने कहा कि पहले कोई भी उनसे बात नहीं कर रहा था। उन्होंने कहा कि अब संस्थाओं ने हमसे संपर्क किया है और लोगों ने भी हमसे बात की है, जिससे आखिरकार हमारे लिए चुनावी मैदान में उतरने का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि उनसे किसने संपर्क किया।
याद रहे कि 1987 में जमायत-ए-इस्लामी ने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (एमयूएफ) के बैनर तले पहली बार चुनाव लड़ा था। चुनावों में धांधली की खबरें सामने आने के बाद कश्मीर में आतंकवाद के फैलने का रास्ता साफ हो गया था, जबकि नेशनल कांफ्रेंस ने जीत का दावा किया था।
हालांकि, 1987 के चुनावों में मुहम्मद यूसुफ उर्फ सैयद सलाहुद्दीन सामने आया, जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में रहता है और हिजबुल मुजाहिदीन संगठन का मुखिया है। 1987 के चुनावों के बाद, कई स्थानीय युवा नियंत्रण रेखा के दूसरी ओर चले गए और कश्मीर में आतंकवाद पूरी तरह फैल गया था।