झारखंड: 'अबकी बार 65 पार' फॉर्मूले पर काम कर रही बीजेपी, महागठबंधन की हालत 'खंड-खंड'
By एस पी सिन्हा | Published: August 21, 2019 05:30 PM2019-08-21T17:30:35+5:302019-08-21T17:30:35+5:30
झारखंड में इसी वर्ष नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। 81 सदस्यों वाली विधानसभा का कार्यकाल 27 दिसबंर को पूरा होना है। सियासी दल अभी से चुनावी रणनीतियां बनाने में लग गए हैं। भाजपा जहां अपनी रणनीतियों को लेकर ज्यादा सक्रिय नजर आ रही है वहीं महागठबंधन किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है।
झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जी-जान से जुटी सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा इस बार चुनाव में "अबकी बार 65 पार" के नारे के साथ गोलबन्दी में जुट गई है तो दूसरी ओर महागठबंधन की स्थिती खंड-खंड जैसी हो गई है. कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों को काम के बाद भी सफलता नहीं मिल रही है. वहां नेतृत्व का अभाव है, ऐसे में असमंजस की स्थिति है.
उल्लेखनीय है कि भाजपा ने 65 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर जीत सुनिश्चित करने का लक्ष्य तय किया है. इसके लिए बूथ स्तर के कार्यकर्ता से लेकर वरिष्ठ नेताओं को अपनी भूमिका समझाने की कवायद लगातार जारी है. भाजपा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यह टास्क पार्टी की कोर कमेटी और पदाधिकारियों को दिया है.
भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियों व जिलाध्यक्षों की बैठक में नड्डा ने कहा है कि झारखंड में भाजपा गठबंधन के साथ 65 से ज्यादा सीटें जीतेगी. इसी पर काम चल रहा है. हर कार्यकर्ता इसमें जुट गया है. भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं को टास्क दिया है कि केंद्र व राज्य सरकार की उपलब्धियों को वे जनता तक पहुंचाएं. इसका प्रचार-प्रसार करें ताकि लोग उन उपलब्धियों से अवगत हो सकें. पार्टी को सर्वव्यापी और सर्वस्पर्शी बनाना है.
जेपी नड्डा ने पार्टी के सांसद, विधायक और पदाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे क्षेत्र में जाएं और अधिक से अधिक प्रवास करें. उधर, लोकसभा चुनाव में भाजपा को रोकने के लिए झारखंड में विपक्षी दलों को एकजुट कर बना महागठबंधन चुनाव में मिली करारी हार के बाद खंड-खंड होकर बिखरता नजर आ रहा है. इसी वर्ष झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं, मगर महागठबंधन में शामिल दल अपने-अपने राग अलाप रहे हैं.
लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के विजय रथ को झारखंड में रोकने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो ), झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने मिलकर महागठबंधन बनाया था, परंतु चुनाव के दौरान ही चतरा संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस व राजद के दोस्ताना संघर्ष से महागठबंधन की दीवार दरकने लगी थी. इसके बाद तो भाजपा के हाथों मिली करारी हार के बाद महागठबंधन के नेता एक-दूसरे पर ही हार का ठीकरा फोड़ते रहे हैं. दीगर बात है कि कोई भी दल महागठबंधन से अलग होने की बात नहीं कर रहा है, परंतु सभी दलों के नेताओं के बोल ने इनके एक साथ लंबे समय तक रहने पर संशय जरूर बना दिया है.
इसबीच, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता आलोक दूबे के अनुसार कांग्रेस पिछले कई चुनावों में गठबंधन के साथ चुनाव में जाती रही है. इसका लाभ अन्य दल तो उठा लेते हैं, परंतु कांग्रेस को उसका लाभ नहीं मिल पाता है. उन्होंने झामुमो का नाम लेते हुए कहा कि झामुमो अपने वोटबैंक को कांग्रेस उम्मीदवारों को नहीं दिलवा पाते हैं. जिसका नुकसान अंतत: कांग्रेस को उठाना पड़ता है. उन्होंने बिना किसी के नाम लिए लोकसभा चुनाव की चर्चा करते हुए कहा कि कई सीटों पर समझौता होने के बावजूद गठबंधन में शामिल दलों ने उन क्षेत्रों से प्रत्याशी उतार दिए, जिसका नुकसान गठबंधन को उठाना पड़ा. दूबे 'एकला चलो' की बात को जायज बताते हुए कहा कि कांग्रेस को अकेले चुनाव मैदान में उतरना चाहिए परंतु वे कहते हैं कि कांग्रेस में तय तो आलाकमान को ही करना है.
इधर, झाविमो के वरिष्ठ नेता सरोज सिंह कहते हैं कि अभी महागठबंधन पर कुछ भी बोलना जल्दबाजी है. उन्होंने कहा कि गठबंधन का प्रयोग अब तक पूरी तरह सफल नहीं हुआ है. उन्होंने झामुमो को 'बड़ा भाई' मानने पर सीधे तो कुछ नहीं कहा परंतु इतना जरूर कहा कि गठबंधन में सम्मानजनक समझौता होना जरूरी है.
झामुमो के विधायक कुणाल झामुमो को अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने की बात करते हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस के साथ गठबंधन से लोगों में स्थानीय समस्याओं को लेकर गलत संदेश जाता है, जिसका नुकसान झामुमो को उठाना पड़ता है. कुणाल ने यह भी स्पष्ट कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की स्वीकार्यता भी लोगों के बीच नहीं है.
इस बीच, लोकसभा चुनाव के परिणाम के 'साइड इफेक्ट' में झारखंड में राजद दो धड़ों में बंट गया है. राजद ने अभय सिंह को झारखंड का अध्यक्ष घोषित कर दिया है, जबकि राजद के पूर्व अध्यक्ष गौतम सागर राणा ने राजद (लोकतांत्रिक) पार्टी बनाकर अलग राह पकड ली है.
बहरहाल, झारखंड में लोकसभा चुनाव की हार से अभी महागठबंधन बाहर भी नहीं निकल पाया कि उसके अंदर विवाद की जमीन तैयार होने लगी है. ऐसे में तय है कि विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों के एकजुट करना किसी भी दल के लिए आसान नहीं है.
यहां उल्लेखनीय है कि झारखंड में विधानसभा की कुल 81 सीटें हैं. नंवबर-दिसंबर 2014 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को 37 जबकि उसके सहयोगी आजसू को 5 सीटें मिलीं थीं. हालांकि इसके बाद झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के 6 विधायकों ने 11 फरवरी 2015 को भाजपा का दामन थाम लिया था.