Jharkhand Assembly Election: बीजेपी नारे से निकाल सकती है रघुवर का नाम, अब यह हो सकता है 'घर-घर कमल'
By एस पी सिन्हा | Published: September 5, 2019 05:57 PM2019-09-05T17:57:57+5:302019-09-05T17:57:57+5:30
राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री व भाजपा के वरीय नेता सरयू राय ने अपने ट्विटर हैंडल पर ट्विट कर लिखा है कि ‘झारखंड प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ से दूरभाष पर बात हुई, उन्हें सलाह दिया कि चुनावी दृष्टि से जनसम्पर्क अभियान का नारा – ‘घर-घर कमल तय करें
झारखंड में सत्तारुढ़ दल भाजपा अब जी जान से विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है. विधानसभा वार मतों के प्रतिशत का विश्लेषण किया जा रहा है. लोकसभा चुनाव की कमियों से सीख लेकर भाजपा आगे बढ़ना चाह रही है. लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय स्तर और उस स्तर के मुद्दों पर लड़े जाते हैं. लेकिन विधानसभा चुनाव बहुत पर्टिकुलर हो जाता है. इसमें क्षेत्रीय मुद्दे हावी होते हैं. इसलिए भाजपा तमाम चीजें समझ रही है. भाजपा की संथाल की डेढ़ दर्जन सीटों पर खास नजर है.
इसी के मद्देनजर प्रदेश भाजपा विधानसभा चुनाव को लेकर घर-घर रघुवर के नाम से जनसंपर्क अभियान चलाने का ऐलान किया है. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ ने यह ऐलान किया था. लेकिन उस दिन भी भाजपा के कुछ नेताओं ने इस बात पर आश्चर्य वयक्त किया था कि विधानसभा चुनाव में किसी एक शख्स का नाम लेकर उतरना भाजपा में पहली घटना होगी. इस बीच राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री व भाजपा के वरीय नेता सरयू राय ने अपने ट्विटर हैंडल पर ट्विट कर लिखा है कि ‘झारखंड प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ से दूरभाष पर बात हुई, उन्हें सलाह दिया कि चुनावी दृष्टि से जनसम्पर्क अभियान का नारा – ‘घर-घर कमल तय करें. यह वाक्य केवल नारा नहीं होगा बल्कि निष्ठा का प्रतीक भी होगा, मेरा यह सुझाव उन्हें अच्छा लगा, दिल्ली से लौटते ही आज उनसे मिलूंगा. इस तरह घर-घर रघुवर नारा को लेकर ही भाजपा में विरोध के स्वर भी फुटने लगे हैं.
वहीं, पार्टी सूत्रों की अगर मानें तो लोकसभा चुनाव में झारखंड में कुछ स्थानों पर सांगठनिक कमियां देखी गईं थीं. जिसमें कई स्थानों पर बूथ मैनेजमेंट भगवान भरोसे छोड़ दिए गए थे. लेकिन अब विधानसभा चुनाव में भाजपा दो स्तर पर मुख्य रूप से तैयारी कर रही है. इसकी कार्ययोजना तैयार हो रही है. सरकार की योजनाओं को जल्द से जल्द जमीन पर उतारा जाए, इसके लिए मुख्यमंत्री रघुवर दास एक्शन में आ गए हैं. नई योजनाओं को लागू किया जा रहा है.
वहीं, भाजपा का लोकसभा में लक्ष्य था सभी 14 सीटों पर जीत दर्ज करना. लेकिन आंकड़ा 2014 वाला ही रहा यानि 12 सीट ही एनडीए के खाते में आई. इनमें से एक आजसू के खाते में है और 11 भाजपा के खाते में. राजमहल सीट भाजपा नहीं जीत पाई. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ तो अपनी सीट गवां बैठे. कई लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा में वोट प्रतिशत नहीं बढ़ा. इसका विश्लेषण किया जा रहा है. यहां बता दें कि विधायकों को यह टास्क दिया गया था कि वे अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र से लोकसभा में पिछली बार की तुलना में पार्टी को लीड दिलाएं.
झारखंड विधानसभा की सभी 81 सीटों का विश्लेषण किया जा रहा है. कहां किन कारणों से वोट घटे या कमी रही, इन विषयों पर विचार हो रहा है. इस साल अक्टूबर नवंबर में विधानसभा चुनाव होना है. इस चुनाव में स्थानीय मुद्दा हावी हो सकता है. मुद्दों को किस प्रकार से देखना है और उन पर क्या रणनीति हो सकती है? यह सब संगठन के स्तर पर तय हो रहा है. भाजपा का इस बार नारा है- 'अबकी बार, 60 के पार'. इसके लिए पार्टी को कैसे आगे काम करना है, यह पार्टी के थिंट टैंक सोच रहे हैं. झारखंड सरकार में मंत्री सीपी सिंह ने कहा कि विधानसभा चुनाव पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. आगामी पांच माह के समय में जितने काम किए जा सकते हैं, उन्हें गति देने की जरूरत है. उस दिशा में पार्टी प्रयासरत है.
यहां उल्लेखनीय है कि 2014 में मोदी लहर होने के बाद भी भाजपा को सिर्फ 37 सीटें मिली थीं. आजसू को मिला कर किसी प्रकार बहुमत मिला था और सरकार बनी. बाद में झाविमो के 6 विधायक भाजपा में आ गए तो फिर सरकार पर स्थिरत की मुहर लग गई, जो आजतक है. इसलिए कई विषयों पर पार्टी के नेता और सरकार के लोग ध्यान दे रहे हैं. पार्टी संथाल परगना में फोकस किए हुए है. इसका लाभ लोकसभा चुनाव में मिला है. पार्टी का आगे भी इस क्षेत्र पर ध्यान रहेगा. इसतरह पार्टी इसबार हर स्तर पर जी जान से जुटी है. उसे उम्मीद है कि महागठबंधन में संभावित विखराव का भी लाभ भाजपा को ही मिलेगा. इसतरह हर स्तर पर चुनावी रणनीतियां तैयार के जा रही हैं.