कश्मीर में 'आजादी की जंग' का खमियाजा भुगत रहे हैं मुसलमान, पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट

By सुरेश डुग्गर | Published: December 5, 2018 07:04 PM2018-12-05T19:04:43+5:302018-12-05T19:08:40+5:30

धरती के स्वर्ग कश्मीर में फैले इस्लामी आतंकवाद का एक दर्दनाक पहलू यह है कि पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में जो अप्रत्यक्ष युद्ध छेड़ा हुआ है उसके अधिकतर शिकार होने वाले मुस्लिम ही हैं और यह भी सच है कि इस्लाम के नाम पर ही आज पाक प्रशिक्षित आतंकवादी मुस्लिम युवतियों को अपनी वासना का शिकार बना रहे हैं। 

jammu kashmir Muslims war for independence stone pelters family suffering | कश्मीर में 'आजादी की जंग' का खमियाजा भुगत रहे हैं मुसलमान, पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट

कश्मीर में 'आजादी की जंग' का खमियाजा भुगत रहे हैं मुसलमान, पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट

कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा छेड़ी गई तथाकथित आजादी की जंग का खमियाजा आज उन्हीं मुस्लिम परिवारों को भुगतना पड़ा है, जिन्होंने कभी आतंकवादियों तथा पाकिस्तान के बहकावे में आकर सड़कों पर निकल आजादी समर्थक प्रदर्शनों में भाग लिया था। हालांकि आजादी का सपना तो पूरा नहीं हुआ परंतु परिवारों के कई परिजनों को जीवन से आजादी अवश्य मिल गई और यह आजादी किसी और ने नहीं बल्कि आतंकवादियों ने ही दी है मौत के रूप में।

धरती के स्वर्ग कश्मीर में फैले इस्लामी आतंकवाद का एक दर्दनाक पहलू यह है कि पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में जो अप्रत्यक्ष युद्ध छेड़ा हुआ है उसके अधिकतर शिकार होने वाले मुस्लिम ही हैं और यह भी सच है कि इस्लाम के नाम पर ही आज पाक प्रशिक्षित आतंकवादी मुस्लिम युवतियों को अपनी वासना का शिकार बना रहे हैं। 

हालांकि हिन्दू भी इस आतंकवाद का शिकार हुए हैं परंतु समय रहते उनके द्वारा पलायन कर लिए जाने के परिणामस्वरूप उतनी संख्यां में वे इसके शिकार नहीं हुए जितने कि मुस्लिम हुए हैं और हो रहे हैं।

30 सालों के आतंकवाद के दौर के दौरान कश्मीर में अनुमानतः 18000 नागरिक आतंकवादियों के हाथों मारे गए हैं और मजेदार बात यह है कि इन 18 हजार में से 16 हजार से अधिक मुस्लिम ही हैं। 

असल में आतंकवाद की आग के फैलते ही घाटी के कश्मीरी पंडितों तथा अन्य हिन्दुओं ने पलायन कर देश के अन्य भागों में शरण ले ली थी परंतु मुस्लिम ऐसा कर पाने में सफल नहीं हुए थे। नतीजतन आज भी वे आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो रहे हैं।

कश्मीर में आज कोई ऐसा परिवार नहीं है जिसके एक या दो सदस्य आतंकवादियों या सुरक्षाबलों की गोलियों से न मारे गए हों बल्कि मौतों के अतिरिक्त इन परिवारों के लिए दुखदायी बात यह है कि उनके परिवार के कई सदस्य अभी भी लापता हैं,जो सुरक्षाबलों द्वारा हिरासत में लिए तो गए थे परंतु आज भी उनके प्रति कोई जानकारी नहीं है।

इससे और अधिक चौंकाने वाला तथ्य क्या हो सकता है कि कश्मीर में आतंकवाद के दौर के दौरान जो महिलाएं तथा युवतियां आतंकवादियों के सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई हैं वे सभी मुस्लिम ही थीं जिनकी अस्मत इस्लाम के लिए जंग लड़ने वालों ने लूट ली। 

कश्मीर में करीब पांच सौ मुस्लिम युवतियों तथा महिलाओं को अपनी जाने तथा अस्मत से इसलिए भी हाथ धोना पड़ा क्योंकि उन्होंने आतंकवादियों के लिए कार्य करना स्वीकार नहीं किया।

इस्लामी आतंकवाद से कश्मीर के मुस्लिम कितने त्रस्त हैं इसके कई उदाहरण हैं। आज इसी आतंकवाद के कारण सैंकड़ों परिवार बेघर हैं, कईयों के परिजन अभी लापता हैं, हजारों अर्द्ध विधवाएं हैं जो अपने आप को न सुहागन कहलवा पाती हैं और न ही विधवा, हजारों बच्चे अनाथ हो चुके हैं जिनके मां-बाप को या तो आतंकवादियों ने मार दिया या फिर वे सुरक्षाबलों के साथ होने वाली मुठभेड़ों में मारे गए।

कभी मुखबिर का ठप्पा लगा इन मुस्लिमों की हत्याएं की गई तो कभी कोई अन्य आरोप लगा। लेकिन इतना अवश्य है कि आतंकवादी अपने संघर्ष के दौरान कश्मीरी जनता की हत्याएं करने का कोई न कोई बहाना अवश्य ही ढूंढते रहे हैं। 

हालांकि, मृतकों में हिन्दू भी शामिल हैं परंतु उनकी संख्यां नगण्य इसलिए है क्योंकि 1990 में जब आतंकवाद अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचा था तो तब तक हिन्दू परिवार कश्मीर से पलायन कर चुके थे।

आतंकवादियों की कार्रवाईयों से सबसे अधिक त्रस्त मुस्लिम ही हुए हैं। इसका प्रमाण घाटी में होने वाली हत्याओं से तो मिलता ही है, अपहरणों तथा युवतियों के साथ होने वाले बलात्कार की घटनाओं से भी मिलता है। 

गौरतलब है कि आतंकवादियों ने करीब 5000 लोगों को अपनी अपहरण नीति का शिकार अभी तक बनाया है और इसमें 99 प्रतिशत मुस्लिम ही थे इससे कोई भी इंकार नहीं करता।

इस्लामी आतंकवाद का कश्मीर के मुस्लिमों को और क्या क्या खमियाजा भुगतना पड़ा इसे कोई भी अपनी आंखों से देख सकता है। घाटी में तबाह हो चुकी अर्थव्यवस्था, अनपढ़ और गंवार होती आने वाली पीढ़ियां, आतंकवाद की भेंट चढ़ चुकी खूबसूरत इमारतें तथा अन्य वस्तुएं इस्लामी आतंकवाद के कुप्रभाव की मुंह बोलती तस्वीरें हैं जिसे देख कोई भी मुस्लिम अब पुनः ऐसी आजादी का सपना देखने को तैयार नहीं है। 

यह भी एक तथ्य है कि आतंकवाद के दौर के दौरान मारे जाने वाले 24 हजार से अधिक आतंकवादी भी मुस्लिम ही थे जो पाकिस्तान के बहकावे में आकर आतंकवाद के पथ पर चल निकले थे उस आजादी को हासिल करने के लिए जो मात्र एक छलावा थी और वे इस प्रक्रिया में मौत की नींद सो गए।

Web Title: jammu kashmir Muslims war for independence stone pelters family suffering

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