जम्मू कश्मीर: निर्दलीय प्रत्याशियों को अहमियत नहीं देते मतदाता
By सुरेश डुग्गर | Published: March 18, 2019 08:22 AM2019-03-18T08:22:47+5:302019-03-18T08:22:47+5:30
1996 के पहले के तीन चुनावों को ही अगर पैमाना मानें तो करीब 138 निर्दलीय प्रत्याशियों ने राज्य की 6 संसदीय सीटों पर अपने भाग्य को आजमाया और इन तीन चुनावों के दौरान सिर्फ 2 को, लद्दाख में, छोड़ सभी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए।
जम्मू-कश्मीर में अभी तक हुए लोकसभा चुनावों में सिर्फ 6 निर्दलीय प्रत्याशियों को ही यहां के मतदाताओं ने सांसद के रूप में चुना है। इस संदर्भ में यह बात नहीं भूली जा सकती कि जिन निर्दलीय प्रत्याशियों को चुना गया उनका व्यक्तित्व आधार अहम था।
इसमें सबसे आगे बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख के मतदाता रहे हैं, जिन्होंने 4 बार-2009, 2004, 1989 तथा 1980 में निर्दलीय प्रत्याशी को जिताया और जम्मू तथा श्रीनगर के मतदाताओं ने एक-एक बार क्रमश: 1977 तथा 1971 में ही निर्दलीय प्रत्याशी को चुना था, जो प्रत्याशी इन चुनावों में निर्दलीय रूप से विजयी हुए थे वे हैं, 1971 में श्रीनगर सीट से शमीम अहमद शमीम, 1977 में जम्मू सीट से ठाकुर बलदेव सिंह, 2009, 2004, 1989 तथा 1980 में लद्दाख की सीट से क्रमश: हसन खान, थुप्स्टन छेवांग, मुहम्मद हसन कमांडर और पी। नामग्याल हैं।
1996 के पहले के तीन चुनावों को ही अगर पैमाना मानें तो करीब 138 निर्दलीय प्रत्याशियों ने राज्य की 6 संसदीय सीटों पर अपने भाग्य को आजमाया और इन तीन चुनावों के दौरान सिर्फ 2 को, लद्दाख में, छोड़ सभी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए।
मजेदार बात यह है कि इन तीन चुनावों में जितने निर्दलीय प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमाने में कूदे थे उस संख्या की आधी से भी अधिक ने 1996 के चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई थी। आज तक सबसे अधिक निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या 1989 के चुनावों में 49 थी। 1980 तथा 1984 में क्रमश: 20 तथा 23 निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में रह गए थे।