जम्मू-कश्मीर के दर्जनों वेटलैंड सुना रहे बदहाली की कहानी, प्लास्टिक कचरा और रासायनिक खाद कर रहे बर्बाद

By सुरेश एस डुग्गर | Published: February 2, 2023 06:06 PM2023-02-02T18:06:39+5:302023-02-02T18:09:49+5:30

जम्मू-कश्मीर के वेटलैंड की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। यहां प्लास्टिक कचरा व रासायनिक खाद के जमाव ने प्रवासी पक्षियों का जीवन खतरे में डाल दिया है।

Jammu Kashmir dozens of wetlands effected by wasting plastic waste and chemical fertilizers | जम्मू-कश्मीर के दर्जनों वेटलैंड सुना रहे बदहाली की कहानी, प्लास्टिक कचरा और रासायनिक खाद कर रहे बर्बाद

जम्मू-कश्मीर में वेटलैंड की सुध लेने वाला कोई नहीं (फोटो- सोशल मीडिया)

जम्मू: जम्मू कश्मीर के वेटलैंड अब एक नई समस्या से जूझने को मजबूर हैं। अभी तक वे घटते आकार और अवैध शिकार से दो-चार हो रहे थे कि अब उनमें प्लास्टिक कचरा व रासायनिक खाद के जमाव ने प्रवासी पक्षियों का जीवन खतरे में डाल दिया है।

यह एक कड़वी सच्चाई यह है कि जम्मू कश्मीर के वेटलैंड की पुकार सुनने वाला कोई नहीं है। यही कारण है कि इन वेटलैंड की सुरक्षा और देखभाल के लिए तैनात रखवाले उनकी हालत पर रोने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते। असल में उनका दर्द प्रदेश के वेटलेंड का घटता हुआ आकार, अवैध शिकार और कुड़े करकट की डंपिंग ग्राउंड बन जाना है।

वेटलैंड की ऐसी हालत क्यों?

प्रदेश के सभी वेटलैंड इतने सालों से अपनी दशा पर कराह रहे हैं। हालत यह है कि जम्मू कश्मीर के करीब दर्जनभर वेटलैंड की दशा आज बेहद बुरी हो चुकी है। प्रदेश के कई वेटलैंड को नेशनल लेवल का स्टेटस मिला हुआ है पर उनकी भी हालत अच्छी नहीं है।

वेटलैंड की सुरक्षा और देखरेख में जुड़े अधिकारियों का मानना है कि पिछले कुछ अरसे से इन वेटलैंड में उस रासायनिक खाद का जमाव बढ़ता जा रहा है जिनका इस्तेमाल इन वेटलैंड के आसपास रहने वाले किसान अपने खेतों में कर रहे हैं। यही नहीं कई वेटलैंड अब प्लास्टिक कचरे की डंपिंग ग्राउंड भी बन चुके हैं। नतीजतन इसका प्रभाव प्रवासी पक्षियों पर पड़ने लगा है जो उनकी संख्या को लगातार कम करने लगा है।

हकीकत यह है कि दावे कागजी साबित होते हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि जम्मू कश्मीर के करीब दर्जन भर वेटलैंड, जिनके अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो गया है। 

कश्मीर के सबसे बड़े वेटलैंड की भी खराब हालत

कश्मीर के सबसे बड़े वेटलैंड होकरसार की भी यही दशा है। अतिक्रमण के कारण यह अब सिकुड़ने लगा है। डल झील पहले ही सिकुड़ चुकी है जहां प्रवासी पक्षियों का आवागमन प्रभावित हुआ है। वुल्लर झील के संरक्षण की भी योजनाएं अदालती आदेशों के बावजूद सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं। अगर कोई आशा की किरण नजर आती है तो वह लद्दाख के वेटलैंड से ही नजर आती है जहां अभी मानव के कदम उतनी संख्या में नहीं पहुंचे हैं।

भारत पाक सीमा पर तारबंदी से बंटे हुए करीब पांच सौ एकड़ भूमि में फैला हुआ घराना वेटलैंड भी आज अपनी बर्बादी पर रो रहा है। यह सिकुड़ कर अब तालाब की शक्ल इसलिए अख्तियार करने लगा है क्योंकि गांववासी नहीं चाहते कि आने वाले हजारों प्रवासी पक्षी उनकी फसलों को चट कर जाएं।

गांववाले अब पटाखे छोड़कर पक्षियों को भगा रहे हैं। वे वन्य विभाग से अपनी फसलों का मुआवजा मांगते हैं पर वन्य कानून में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है। 

परगवाल वेटलैंड भी बदहाल

चिनाब नदी के किनारे पड़ने वाला परगवाल वेटलैंड भी अपनी कहानी कुछ इसी तरह से बयां कर रहा है। लगभग 48 एकड़ में फैले इस वेटलैंड की सरकार ने कभी सुध ही नहीं ली। कुकरेआल वेटलैंड का भी यही हाल है। मानसर जम्मू का एक बड़ा और प्रसिद्ध वेटलैंड है जो अपनी दिलकश झील के लिए भी जाना जाता है। 40 एकड़ क्षेत्र में फैले इस वेटलैंड की हालत पिछले कुछ सालों से दयनीय हो गई है। 

झील के पानी का स्तर 6-7 फीट तक गिर गया है। सालों से बड़ी-बड़ी पाइपों के जरिए झील से पानी आसपास के गांवों को सप्लाई हो रहा है। इस मसले पर इस क्षेत्र को संरक्षित करने वाला वन्यजीव विभाग मात्र पत्र लिखकर ही खानापूर्ति करने में लगा हुआ है। 

यही हाल सुरईंसर झील का है जिसका क्षेत्र घटकर अब 35 एकड़ रह गया है। फिलहाल वेटलैंड को रासायनिक खाद के जमाव से मुक्त करवाने का कोई उपाय नजर नहीं आया है।

Web Title: Jammu Kashmir dozens of wetlands effected by wasting plastic waste and chemical fertilizers

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे