जम्मू-कश्मीरः मरने वाला हर दूसरा आतंकी कमांडर रैंक का, 2020 में अब तक 190 ढेर
By सुरेश एस डुग्गर | Published: October 5, 2020 03:28 PM2020-10-05T15:28:06+5:302020-10-05T15:28:06+5:30
युवा आतंकवाद की ओर आकर्षित हो रहे हैं वे दिगभ्रमित किए जा रहे हैं। उन्हें सब्ज बाग दिखाए जाते हैं, खासकर हालीवुड और बालीवुड की फिल्मों की तरह कमांडर बनाए जाने और उनके नीचे बहुत से लोगों के काम करने का सब्ज बाग।
जम्मूः कश्मीर में अब मरने वाला हर दूसरा आतंकी कमांडर रैंक का है। इस साल मारे गए आतंकियों में से तो आधे से अधिक कमांडर स्तर के थे और पिछले साल मारे गए आतंकियों में से दो तिहाई स्थानीय होने के साथ ही कमांडर बना दिए गए थे।
सुरक्षाधिकारियों के बकौल, कश्मीर में अब आतंकियों की भर्ती थम सी गई है। थोड़े बहुत जो युवा आतंकवाद की ओर आकर्षित हो रहे हैं वे दिगभ्रमित किए जा रहे हैं। उन्हें सब्ज बाग दिखाए जाते हैं, खासकर हालीवुड और बालीवुड की फिल्मों की तरह कमांडर बनाए जाने और उनके नीचे बहुत से लोगों के काम करने का सब्ज बाग।
पर ऐसा नहीं है। आतंकी गुट में भर्ती होने के बाद जब सच्चाई सामने आती है तो भर्ती होने वाला युवा माथा पीट कर रह जाता है। कुछ गिरफ्तार किए गए उन युवाओं ने इसकी पुष्टि की है जो इन सब्ज बागों के कारण आतंकी तो बने थे पर पर मां की पुकार पर वापस भी लौट आए थे।
यह बात अलग है कि आतंकी बनने का जुनून कह लिजिए या फिर बरगलाए जाने का क्रम, कश्मीर में जारी है। इस क्रम में वर्ष 2018 में 246 आतंकी मारे गए थे। इनमें 160 स्थानीय थे और सभी को कमांडर बनाया गया था। इस साल भी 190 आतंकी मारे गए तथा 135 आतंकवाद की राह पर चले गए। उन्हें भी कमांडर बना दिया गया।
एक समय था जब एक आतंकी कमांडर के साथ दर्जनों दूसरे आतंकी काम करते थे और अब हालात यह है कि दो से पांच आतंकियों के गुट में सभी ही कमांडर हैं। नतीजा सामने है। अक्सर इन तथाकथित कमांडरों के बीच टकराव की स्थिति भी आ जाती है और वे एक दूसरे पर हमले करने के साथ ही एक दूसरे के कामों में टांग भी अड़ा देते हैं।
एक वापस लौटने वाले आतंकी युवा के बकौल, उसे तो डिवीजनल कमांडर बनाया गया था और उसके साथ काम करने वाले दो अन्य आतंकी युवा भी डिवीजनल कमांडर थे। इस सच्चाई के बाद उसे उन सब्ज बागों की हकीकत देखने को मिली जिनको आधार बना वह आतंकी गुटों में शामिल हुआ था और इन डायरेक्ट भर्ती हुए कमांडरों के प्रति एक खास और चौंकाने वाली बात यह थी कि सख्ती के कारण वे सीमा पार प्रशिक्षण के लिए नहीं जा पाते थे और कश्मीर में ही एक दो दिनों की ट्रेनिंग के बाद उन्हें सुरक्षाबलों के हाथों मरने वे लिए छोड़ दिया जा रहा है।