J&K: गणतंत्र दिवस समारोह में सरकारी कर्मचारियों की उपस्थिति का विवाद नहीं है नया, जानिए कब हुई इसकी शुरुआत

By सुरेश डुग्गर | Published: January 22, 2019 06:36 PM2019-01-22T18:36:21+5:302019-01-22T18:36:21+5:30

कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआत के साथ ही 15 अगस्त तथा 26 जनवरी को होने वाले सरकारी समारोह सिर्फ और सिर्फ सुरक्षाबलों के बन कर रह गए थे क्योंकि आतंकी चेतावनियों और धमकियों के चलते आम नागरिकों के साथ ही सरकारी कर्मियों की मौजूदगी नगण्य ही थी

Jammu and Kashmir government employees to attend Republic Day functions terrorism ghulam nabi azad | J&K: गणतंत्र दिवस समारोह में सरकारी कर्मचारियों की उपस्थिति का विवाद नहीं है नया, जानिए कब हुई इसकी शुरुआत

J&K: गणतंत्र दिवस समारोह में सरकारी कर्मचारियों की उपस्थिति का विवाद नहीं है नया, जानिए कब हुई इसकी शुरुआत

गणतंत्र दिवस पर समारोह स्थलों पर सरकारी कर्मियों की उपस्थिति अनिवार्य बनाए जाने संबंधी जारी सरकारी अध्यादेश कोई नया नहीं है। कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआत के साथ ही यह विवाद आरंभ हुआ था जो आज भी जारी है।

ऐसे आदेश को सख्ती से लागू करने का कार्य वर्ष 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की सरकार के दौरान हुआ था जिन्होंने तब स्थानीय विधायकों को भी सख्त ताकिद की थी कि अगर उनके इलाके के सरकारी कर्मचारी अनुपस्थित हुए तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।

आजाद के ही मुख्यमंत्रित्व काल में ही आम नागरिकों को गणतंत्र व स्वतंत्रता दिवस सामारोहों की ओर आकर्षित करने के इरादों से मुफ्त सरकारी बसों की व्यवस्था आरंभ हुई थी और अखबारों तथा अन्य संचार माध्यमों में विज्ञापन देकर उनमें जोश भरने की कवायद भी।

दरअसल, कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआत के साथ ही 15 अगस्त तथा 26 जनवरी को होने वाले सरकारी समारोह सिर्फ और सिर्फ सुरक्षाबलों के बन कर रह गए थे क्योंकि आतंकी चेतावनियों और धमकियों के चलते आम नागरिकों के साथ ही सरकारी कर्मियों की मौजूदगी नगण्य ही थी जबकि जो नागरिक इसमें शामिल होने की इच्छा रखते थे उन्हें लंबे और भयानक सुरक्षा व्यवस्था के दौर से गुजरना पड़ता था।

और वर्ष 1995 में जम्मू के एमए स्टेडियम में तत्कालीन राज्यपाल केवी कृष्णाराव की मौजूदगी में हुए क्रमवार बम विस्फोटों के बाद तो ऐसे समारोहों की ओर नागरिकों का रुख ही पलट गया। सरकारी कर्मियों को समारोहस्थलों तक लाने की कवायद हमेशा ही औंधे मुंह गिरी थी।

वर्ष 2009 में तत्कालीन सरकार ने बकायदा आदेश जारी कर सरकारी कर्मियों की उपस्थिति अनिवार्य बनाने की कवायद तो की, पर नतीजा शून्य रहा था। तब कुछ सरकारी कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की खानापूर्ति जरूर की गई पर सरकारी कर्मियों को खासकर कश्मीर के समारोहस्थलों तक लाने में सरकार कामयाब नहीं हो पाई थी।

इस बार भी वही कवायद आरंभ हुई है। राज्यपाल शासन मानता है कि जम्मू संभाग में यह मुश्किल नहीं है पर कश्मीर में यह कामयाब होती नहीं दिख रही है।

Web Title: Jammu and Kashmir government employees to attend Republic Day functions terrorism ghulam nabi azad

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