LAC पर तनाव जारी, सैनिकों की वापसी की ज्यादा उम्मीद नहीं, हिन्द-चीन अड़े
By सुरेश एस डुग्गर | Published: September 22, 2020 01:57 PM2020-09-22T13:57:34+5:302020-09-22T13:57:34+5:30
पहल कौन करे। इस पर छठे दौर की वार्ता में शामिल भारतीय सेनाधिकारियों का कहना था कि समझौते चीन की सेना ने तोड़े हैं तो पहल भी उसे ही करनी होगी।
जम्मूः हिन्द-चीन की सेनाओं के बीच छठे दौर की वार्ता के बेनतीजा रहने के उपरांत भारत को इसके प्रति कोई उम्मीद नहीं है कि चीनी सैनिक लद्दाख के विवादित क्षेत्रों से पीछे हटेंगे।
ऐसे में अब एलएसी पर लंबे समय तक टिके रहने और भयानक सर्दी से बचाव की योजनाएं लागू की जाने लगी हैं। रक्षा सूत्रों के बकौल, चीनी सैनिकों की वापसी का मामला दो बिंदुओं पर ही अटका हुआ है। पहला, पहल कौन करे। इस पर छठे दौर की वार्ता में शामिल भारतीय सेनाधिकारियों का कहना था कि समझौते चीन की सेना ने तोड़े हैं तो पहल भी उसे ही करनी होगी।
दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा जिस पर सहमति नहीं बन पाई कि इस बात की आखिर क्या गारंटी है कि चीनी सेना पुनः लद्दाख के इलाकों में घुसपैठ कर विवाद खड़ा नहीं करेगी। यह भारतीय सेना के अधिकारियों की चिंता का विषय इसलिए भी है क्योंकि पिछले कई सालों से यही हो रहा है कि चीन भी अब पाकिस्तान की ही तरह समझौतों की लाज नहीं रख रहा है।
सोमवार को भारत चीन के बीच शीर्ष सैन्य कमांडर स्तर की बातचीत हुई
एलएसी पर जारी तनातनी के बीच सोमवार को भारत चीन के बीच शीर्ष सैन्य कमांडर स्तर की बातचीत हुई। इस बातचीत के दौरान भारत की तरफ से चीन को दो टूक कहा गया है कि वह पैंगांग झील समेत एलएसी पर सभी स्थानों पर अप्रैल की स्थिति बहाल करे और अपनी सेना को तुरंत पीछे हटाए।
भारत की तरफ से बैठक का नेतृत्व 14वीं कोर कमांडर प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह द्वारा किया गया। लेफ्टिनेंट जनरल सिंह के अलावा इस बैठक में लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन भी शामिल हुए। अक्तूबर में लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन ही 14वीं कोर कमांडर के प्रमुख बनेंगे।
सेना के कई वरिष्ठ अधिकारी भी बैठक में शामिल रहे
इनके अलावा विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव, आईटीबीपी के एक अधिकारी दीपम सेठ और सेना के कई वरिष्ठ अधिकारी भी बैठक में शामिल रहे। ऐसे हालात में लद्दाख के करीब 8 विवादित क्षेत्रों में भारतीय सेना ने भयानक सर्दी में भी टिके रहने की खातिर योजनाएं अमल में लानी शुरू कर दी हैं।
एक सेनाधिकारी के बकौल, चीन सीमा पर सबसे बड़ा खतरा चीनी सैनिक नहीं बल्कि मौसम है जिससे बचाव का प्रबंध उन्हें ठीक उसी प्रकार करना है जिस तरह से सियाचिन हिमखंड पर किया जा रहा है। यह सच है कि कुदरत की मार इस इलाके में दोनों ही सेनाओं पर पड़नी आरंभ हो चुकी है।
मिलने वाले समाचार कहते हैं कि फिलहाल सर्दी से बचाव के वे उपाय नहीं हो पाए हैं जिनकी जरूरत है और सर्दी ने अपना प्रकोप दिखाना भी आरंभ कर दिया है। जिस कारण दोनों ही सेनाओं के कई जवान बीमार पड़ने लगे हैं।