जेनरिक रेमडेसिवीर दवा के उत्पादन के लिए भारतीय कंपनियों को लाइसेंस जारी करे सरकार, अमेरिका में है 2.5 लाख रुपये कीमत, भारत में होगी सस्ती: माकपा
By भाषा | Published: July 6, 2020 05:02 AM2020-07-06T05:02:34+5:302020-07-06T05:02:34+5:30
कोरोना वायरस से सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अधिकतर देश प्रभावित हैं लेकिन कुछ देश काफी ज्यादा प्रभावित हैं। कई वैज्ञानिक इसकी दवा और वैक्सीन की खोज में भी लगे हैं लेकिन अभी तक कोई ठोस इलाज नहीं मिल सका है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने सरकार से कहा है कि कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज में उपयोगी दवा रेमडेसिवीर का जेनरिक प्रारूप बनाने के लिए कंपनियों को अनिवार्य लाइसेंस जारी किया जाए क्योंकि यह दवा आम आदमी के लिए “बहुत महंगी’’ है। साथ ही माकपा ने पेटेंट अधिनियम की धारा 92 लागू करने की भी मांग की।
माकपा के एक बयान में कहा गया है कि सरकार को गिलीड साइंसेज का पेटेंट एकाधिकार तोड़ने की दिशा में काम करना चाहिए। पार्टी ने कंपनी पर इस दवा की लागत से सैकड़ों गुना ज्यादा मूल्य रख कर दुनिया से वूसली करने का भी आरोप लगाया।
पार्टी ने कहा कि गिलीड साइंसेज की 'एंटी वायरल' दवा रेमडेसिवीर ने कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों पर अपना असर दिखाया है। वहीं, मीडिया में आई खबरें संकेत करती हैं कि अमेरिका ने कंपनी से अगले तीन महीने का पूरा भंडार खरीद लिया है।
वाम दल ने कहा कि अमेरिका में पांच दिन के लिये इस दवा की कीमत तीन हज़ार अमेरिकी डॉलर या 2.25 लाख रुपये है। माकपा ने बयान में कहा कि पांच भारतीय कंपनियां गिलीड के लाइसेंस के तहत रेमडेसिवीर बनाने के लिए बातचीत कर रही हैं।
भारत में इसका उत्पादन होने पर पांच दिन की दवा चार हजार डॉलर या 30-35 हजार रुपये की कीमत पर उपलब्ध होगी। बयान में कहा गया है, “ विशेषज्ञों के मुताबिक रेमडेसिवीर की पांच दिनों की दवा बनाने की लागत अमेरिका में 10 डॉलर या 750 रुपये से भी कम है और भारत में करीब 100 रुपये हैं। गिलीड पेटेंट एकाधिकार के कारण ऊंची कीमत रख कर दुनिया से वूसली कर रही है जो लागत से सैकड़ों गुना ज्यादा है।"