‘चंद्रयान-2’ पर टूट रहा है इसरो का दिल, आप कल्पना कर सकते हैं कि हर गुजरते घंटे के साथ काम मुश्किल होता जा रहा है

By भाषा | Published: September 13, 2019 07:54 PM2019-09-13T19:54:26+5:302019-09-13T19:54:26+5:30

गत सात सितंबर को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की प्रक्रिया के दौरान अंतिम क्षणों में ‘विक्रम’ का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था। यदि यह ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में सफल रहता तो इसके भीतर से रोवर बाहर निकलता और चांद की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देता।

ISRO's heart is breaking on 'Chandrayaan-2', you can imagine that with each passing hour the work is getting difficult | ‘चंद्रयान-2’ पर टूट रहा है इसरो का दिल, आप कल्पना कर सकते हैं कि हर गुजरते घंटे के साथ काम मुश्किल होता जा रहा है

सात सितंबर की घटना के बाद से लगभग एक सप्ताह निकल चुका है तथा अब इसरो के पास मात्र एक सप्ताह शेष बचा है।

Highlightsलैंडर को चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के लिए डिजाइन किया गया था।इसके भीतर बंद रोवर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है।

चंद्रयान-2’ के लैंडर ‘विक्रम’ से पुन: संपर्क करने और इसके भीतर बंद रोवर ‘प्रज्ञान’ को बाहर निकालकर चांद की सतह पर चलाने की संभावनाएं हर गुजरते दिन के साथ क्षीण होती जा रही हैं।

उल्लेखनीय है कि गत सात सितंबर को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की प्रक्रिया के दौरान अंतिम क्षणों में ‘विक्रम’ का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था। यदि यह ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में सफल रहता तो इसके भीतर से रोवर बाहर निकलता और चांद की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देता।

लैंडर को चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के लिए डिजाइन किया गया था। इसके भीतर बंद रोवर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है। सात सितंबर की घटना के बाद से लगभग एक सप्ताह निकल चुका है तथा अब इसरो के पास मात्र एक सप्ताह शेष बचा है।

इसरो ने कहा था कि वह 14 दिन तक लैंडर से संपर्क साधने की कोशिश करता रहेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों की तमाम कोशिशों के बावजूद लैंडर से अब तक संपर्क स्थापित नहीं हो पाया है।

हालांकि, ‘चंद्रयान-2’ के ऑर्बिटर ने ‘हार्ड लैंडिंग’ के कारण टेढ़े हुए लैंडर का पता लगा लिया था और इसकी ‘थर्मल इमेज’ भेजी थी। भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिक लैंडर से संपर्क साधने की हर रोज कोशिश कर रहे हैं, लेकिन प्रत्येक गुजरते दिन के साथ संभावनाएं क्षीण होती जा रही हैं।

इसरो के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘उत्तरोत्तर, आप कल्पना कर सकते हैं कि हर गुजरते घंटे के साथ काम मुश्किल होता जा रहा है। बैटरी में उपलब्ध ऊर्जा खत्म हो रही होगी और इसके ऊर्जा हासिल करने तथा परिचालन के लिए कुछ नहीं बचेगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘प्रत्येक गुजरते मिनट के साथ स्थिति केवल जटिल होती जा रही है...‘विक्रम’ से सपंर्क स्थापित होने की संभावना कम होती जा रही है।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या संपर्क स्थापित होने की थोड़ी-बहुत संभावना है, अधिकारी ने कहा कि यह काफी दूर की बात है। यहां स्थित इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क में एक टीम लैंडर से पुन: संपर्क स्थापित करने की लगातार कोशिश कर रही है।

अधिकारी ने कहा कि सही दिशा में होने की स्थिति में यह सौर पैनलों के चलते अब भी ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है और बैटरियों को पुन: चार्ज कर सकता है। लेकिन इसकी संभावना, उत्तरोत्तर कम होती जा रही है। इसरो के एक अन्य शीर्ष अधिकारी ने कहा कि चंद्र सतह पर ‘विक्रम’ की ‘हार्ड लैंडिंग’ ने इससे पुन: संपर्क को कठिन बना दिया है क्योंकि हो सकता है कि यह ऐसी दिशा में न हो जिससे उसे सिग्नल मिल सकें। उन्होंने चंद्र सतह पर लगे झटके से लैंडर को नुकसान पहुंचने की भी आशंका जतायी। 

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